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विदा  : स्त्री० [सं०√विद्+अङ्+टाप्] बुद्धि। ज्ञान। अक्ल। स्त्री० [सं० विदाय, मि० अ० विदाअ] १. रवाना होना। प्रस्थान। २. कहीं से चलने के लिए मिली हुई अनुमति।
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विदाई  : स्त्री० [हिं० विदा+ई (प्रत्यय)] १. विदा होने की क्रिया या भाव। प्रस्थान। २. विदा होने के लिए मिली हुई अनुमति। ३. विदा होने के समय मिलनेवाला उपहार या धन। ४. किसी के बिदा होने के समय उसके प्रति शुभ कामना प्रकट करने के लिए लोगों का एकत्र होना (फ़ेयर वेल)। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—माँगना।—मिलना।
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विदाय  : पुं० [सं० ब० स०] १. विसर्जन। २. प्रस्थान। रवानगी। ३. प्रस्थान करने के लिए मिली हुई अनुमति। ४. दान। स्त्री०=विदाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदायी (यिन्)  : वि० [सं० विदाय+इनि] १. जो ठीक तरह से चलाता या रखता हो। नियामक। २. दाता। दारी। स्त्री०=विदाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदार  : पुं० [सं० वि√दृ (फाड़ना)+घञ्] १. युद्ध। समर। २. फाड़ना। विदारण।
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विदारक  : पुं० [सं० वि√दृ+ण्वुल-अक] १. वृक्ष, पर्वत आदि जो जल के बीच में हो। २. छोटी नदियों के तल में बना हुआ गड्ढा जिसमें नदी के सूखने पर भी पानी बचा रहता है। ३. नौसादार। वि० विदारण करनेवाला या फाड़नेवाला।
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विदारण  : पुं० [सं० वि√दृ+णिच्+ण्वुल्—अक] १. बीच में से अलग करके दो या अधिक टुकड़े करना। चीरना, फाड़ना, या ऐसी ही और कोई क्रिया करना। २. मार डालना। वध। ३. ध्वस्त या नष्ट करना। ४. कनेर। ५. खपरिया। ६. नौसादार।
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विदारना  : स० [हिं० विदरना] १. विदारण करना। फाड़ना।
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विदारिका  : स्त्री० [सं० वि√दृ+णिच्+ण्वुल-अक+टाप्, इत्व] १. बृहत्संहिता के अनुसार एक प्रकार की डाकिनी जो घर के बाहर अग्निकोण में रहती है। २. गंभारी नामक वृक्ष। ३. शालपर्णी। ४. कडुई तुँबी। ५. विदारी कंद।
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विदारित  : भू० कृ० [सं० वि√दृ+णिच्+क्त] जिसका विदारण हुआ हो।
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विदारी (रिन्)  : वि० [सं० वि०√दृ+णिनि] विदारक। स्त्री० [सं० वि√दृ (फाड़ना)√ णिच् +अच्+ ङीष्] १. शालपर्णी। २. भुई कुम्हड़ा। ३. विदारी कंद। ४. क्षीर काकोली। ५. ‘भाव प्रकाश’ के अनुसार अठारह प्रकार के कंठ रोगों में से एक प्रकार का कंठ रोग। ६. एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसमें बगल में फुंशी निकलती है। ७. वाग्भट्ट के अनुसार मेढ़ा, सींगी, सफेद पुनर्नवा देवदार अनन्तमूल, बृहती आदि ओषधियों का एक गण।
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विदारी गंधा  : स्त्री० [सं०] १. सुश्रुत के अनुसार शालपर्णी, भुई कुम्हला, गोखरू, शतमूली अनंतमूल, जीवंती, मुगवन, कटियारी, पुनर्नवा आदि औषधियों का एक गण। २. शालपर्णी।
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विदारी-कंद  : पुं० [सं० ब० स०, ष० त०] भुई कुम्हड़ा।
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विदाह  : पुं० [सं० वि√दह् (जलाना)+घञ्] [वि० विदाहक, विदाही] १. पित्त के प्रकोप के कारण होनेवाली जलन। २. हाथ पैरों में होनेवाली जलन।
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विदाही  : वि०=विदाहक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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