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शेर  : पुं० [सं० दंशेर से फा०] [स्त्री० शेरनी] १. एक प्रसिद्ध हिंसक पशु। सिंह। पद-शेर बबर, शेर बच्चा, शेरमर्द। मुहावरा—शेर और बकरी का एक घाट पर पानी पीना=ऐसी स्थिति होना जिसमें दुर्बल को सबल का कुछ भी भय न हो। २. अत्यन्त निर्भीक, वीर और साहसी पुरुष (लाक्षणिक) ३. बहुत उग्र या तीव्र पदार्थ या व्यक्ति। मुहावरा— (बत्ती) शेर करना=चिराग की बत्ती बढ़ाकर रोशनी तेज करना। वि० बहुत गहरा या चटकीला (रंग)। जैसे—शेर गुलाब या शेर लाल। पुं० [अ०] फारसी, उर्दू आदि की कविता के दो चरणों का समूह।
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शेर अफगान  : वि० [फा०] शेर को गिराने या पछाड़ने वाला।
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शेर-दरवाजा  : पुं० [फा०]=सिंह-द्वार।
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शेर-दहाँ  : वि०=शेरमुहाँ (दे०)।
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शेर-पंजा  : पुं० [फा० शेर+पंजः] शेर के पंजों के आकार का एक अस्त्र। बघनहाँ।
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शेर-बच्चा  : पुं० [फा० शेर-बच्चा] १. बहुत ही पराक्रमी तथा वीर व्यक्ति। २. पुरानी चाल की एक प्रकार की छोटी बन्दूक।
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शेर-बबर  : पुं० [फा०] सिंह। केसरी।
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शेर-मर्द  : पुं० [फा०] [भाव० शेरमर्दी] बहुत ही पराक्रमी और वीर व्यक्ति।
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शेर-मुहाँ  : वि० [फा०+हिं०] १. जिसका मुँह या अगला भाग शेर की आकृतिवाला हो। जैसे—शेरमुहाँ कड़ा। २. (जमीन या मकान) जिसका अगला भाग चौड़ा और पिछला भाग सँकरा हो। नाहर मुखी (अशुभ)।
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शेरगढ़ी  : स्त्री० [हिं०] सम्राट अशोक के स्तम्भों पर की वह आकृति जिसमें चारों ओर चार शेरों के मुँह होते हैं और जिसकी अनुकृति स्वतन्त्र भारत का राजचिन्ह है।
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शेरपा  : पुं० [फा० शेर+पा (नेपाली प्रत्यय)] १. चीता। बाघ। २. वह पहाड़ी मजदूर जो २४-२५ हजार फुट से भी अधिक ऊँचाई वाले पहाड़ों पर चढ़ने का अभ्यस्त हो। ३. साधारणतः ऊँचें पहाडों पर विशेषतः हिमालय पर चढ़नेवाला। मजदूर।
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शेरवानी  : स्त्री० [देश] मुसलमानी ढंग का एक प्रकार का अंगा।
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