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शब्द का अर्थ

संबोध  : पुं० [सं० सम्√बुध् (ज्ञान करना)+घञ्] १. सम्यक ज्ञान। पूरा बोध। २. अच्छी और पूरी जानकारी। ३. ढ़ारस। सान्त्वना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
संबोधक  : वि० [सं०] संबोधन करनेवाला।
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संबोधन  : पुं० [सं०√बुध् (ज्ञान प्राप्त करना)+ल्युट्-अन] [वि० संबोधित, संबोध्य] १. नींद से उठाना। जगाना। २. ज्ञान या बोध कराना। ३. समझाना-बुझाना। ४. आह्वान करना। पुकारना। ५. व्याकरण में वह शब्द जिसमें किसी को पुकारा जाता है। विशेष-भूल से इसकी गिनती कारकों में की जाती है, जबकि यह क्रिया के रूप का साधन नहीं करता। ६. वह स्थिति जिसमें किसी से कुछ कहने के लिए उसके प्रति ध्यान दिया या मुख किया जाता है।
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संबोधनगीति  : स्त्री० [सं०] आधुनिक साहित्य में ऐसा विशद जाति काव्य जो किसी को संबोधित करके लिखा गया हो। और उच्च भावनाओं से युक्त हो (ओड)। जैसे—दिनकर कृत ‘हिमालय’ या पंत कृत ‘भावी’ पत्नी के प्रति।
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संबोधना  : सं० [सं०] १. समझाना-बुझाना। बोध कराना। ३. ढारस या सान्त्वना देना।
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संबोधि  : स्त्री० [सं० संबोध+इनि्] पूर्ण ज्ञान (बौद्ध)।
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संबोधित  : भू० कृ० [सं०] १. जिसे संबोधन किया गया हो। २. जिसका ध्यान आकृष्ट किया गया हो। ३. जिसे बोध कराया गया हो। ४. (विषय) जिसका ज्ञान या संबोधन कराया गया हो।
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संबोध्य  : वि० [सं०] १. जिसे संबोधन किया जाय। २. जिसे बोध या ज्ञान कराया जाय।
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