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और  : अव्य० [सं० अपर, प्रा० अवर] शब्दों पदो, वाक्याशों आदि को जोड़नेवाला एक संयोजक अव्यय जो कुछ अवस्थाओं में क्रिया विशेषण तथा विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त होकर नीचे लिखे अर्थ देता है—१. जिसका या जिनका उल्लेख हो चुका हो, उसके या उनके साथ। तथा। जैसे—(क) कृष्ण, मोहन और राम तीनों चले गये। (ख) गौवें, घोड़े और हिरन सभी खुरोंवाले पशु हैं। २. कथित या प्रस्तुत के अतिरिक्त या सिवा कुछ नया और विलक्षण। जैसे—लो और सुनो (अर्थात् अब तक जो सुन चुके हो, उसके अतिरिक्त कुछ नई परन्तु विलक्षण बात सुनो) उदाहरण—औरउ कथा अनेक प्रसंगा।—तुलसी। मुहावरा—और का और होना (क) बहुत अधिक उलट-फेर होना। भारी परिवर्तन होना। जैसे—देखते-देखते देश और का और हो गया। पद—और का औरजैसा होना चाहिए या जैसा पहले था,उससे बिलकुल अलग या भिन्न। और क्याइसके सिवा और कुछ नहीं, यही तो। जैसे—किसी के यह पूछने पर कि आप स्वयं वहाँ गये थे। प्रायः कहा जाता है—और क्या। और तो और औरों की बात तो जाने दो। औरों की बात दूर रही। जैसे—और तो और आप भी ऐसा कहने लगे। और तो क्या-दूसरी बड़ी बड़ी बातों की चर्चा ही व्यर्थ है। और सब तो जाने दो। जैसे—और तो क्या भला एक गिलास पानी तो पिला देते। और नहीं तो क्याऔर क्या (देखें ऊपर)। क्रि० वि० अधिक मात्रा या मान में,अथवा अधिक बल लगाकर। जैसे—और चिल्लाओ, और मारो, और रोओ आदि। उदाहरण—और आगि लागी न बुझावै सिधु सावनो।—तुलसी। वि० १. अधिक। ज्यादा। जैसे—कुछ और दाम बढ़े तो सौदा हो जाय। उदाहरण—और आस विस्वास भरोसो हरौ जीव जड़ताई।—तुलसी। २. प्रस्तुत से भिन्न। अन्य। दूसरा। जैसे—यह और बात है कि वे जरा कम समझ (या हठी) है। उदाहरण—बनि है बात उपाइ न और।—तुलसी। पद—और ही कुछ साधारण से भिन्न, परंतु अनोखा नया या निराला। जैसे—यह तो और ही कुछ निकला।
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औरंग  : पुं० [फा०] १. राज-सिंहासन। २. बुद्धिमत्ता। समझदारी। ३. औरंगजेब (बादशाह) के नाम का संक्षिप्त रूप। (मध्ययुगीन कविताओं में प्रयुक्त)।
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औरग  : वि० [सं० उरग+अण्] उरग या साँप-संबंधी। पुं० आश्लेषा।
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औरंगज़ेब  : पुं० [फा०] १. राज-सिंहासन पर बैठकर शासन करनेवाला व्यक्ति। २. मुगल वंश का प्रसिद्ध सम्राट जो शाहजहाँ का पुत्र था। (सन् १६५८-१७0७)
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औरंगजेबी  : पुं० [फा०] एक प्रकार का भीषण बड़ा फोड़ा जो जल्दी अच्छा नहीं होता। विशेष—कहते है कि औरंगजेब ने अपनी सेना लेकर बहुत दिनों तक गोलकुण्डा पर घेरा डाला था, तब उसके बहुत से सैनिकों को इस तरह का फोड़ा होने लगा था, इसलिए इसका यह नाम पड़ा।
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औरंगशाह  : पुं०=औरंगजेब।
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औरत  : स्त्री० [अ०] १. महिला। स्त्री। २. जोरू। पत्नी।
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औरस  : वि० [सं० उरस+अण्] [स्त्री० औरसी] १. उर या हृदय संबंधी। २. उर या हृदय से उत्पन्न होनेवाला। ३. जिसका जन्म स्वयं किसी के हृदय अर्थात् व्यक्तित्व से हुआ हो। जैसे—औरस पुत्र । पुं० विवाहित स्त्री से उत्पन्न पुत्र। विशेष—स्मृतियों में १२ प्रकार के जो पुत्र कहे गये है उनमें औरस सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
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औरसना  : अ० [सं० अव=बुरा+रस] अप्रसन्न या रुष्ट होना।
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औरसी  : स्त्री० [सं० औरस+ङीष्] कन्या जो विवाहित स्त्री से उत्पन्न हुई हो।
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औरस्य  : वि० [सं० उरस+यत्, उरस्य+अण्] १. (व्याकरण में ध्वनि) जिसका उच्चारण हृदय से होता हो। २. औरस।
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औरा  : प्रत्यय [सं० वटक, हिं० बड़ा] एक प्रत्यय जो कुछ संज्ञाओं में लगकर किसी विशिष्ट वस्तु से या किसी विशिष्ट रूप में बने हुए पकवानों का वाचक होता है। जैसे—तिल से तिलौरा, फूलना से फुलौरा आदि।
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औरासी  : वि० [सं० अव+राशि] [स्त्री० औरासी] १. जो निकृष्ट या बुरी राशि में हो या उससे संबंध रखता हो। २. बे-ठिकाने का। बेढंगा। बे-ढब। उदाहरण—विसर्यो सूर विरह दुःख अपनी सुवत चाल औरासी।—सूर।
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औरेब  : पुं० [सं० अव+रेवगति] १. चक्र गति। तिरछी चाल। २. ओढ़ने या पहनने के कपड़े की तिरछी काट। ३. असमंजस झंझट या संकट की अवस्था। उलझन। मुहावरा—औरेब सुधारना उलझन या संकट दूर करना। उदाहरण—राम कथा अवरेव (औरेब) सुधारी।—तुलसी। ४. चाल या पेंच की बात। ५. थोड़ी साधारण या हलकी खराबी या हानि। जैसे—(क) इस नगीने में कुछ औरेब है। (ख) गिरने से तसवीर में औरेब आ गया है।
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और्णिक  : वि० [सं० ऊर्णा+ठञ्-इक] ऊर्ण या ऊन से संबंध रखने या उससे बननेवाला। ऊनी।
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और्ध्वदे (दै) हिक  : वि० [सं० ऊर्ध्वदेह+ठञ्-इक] उस देह (या आत्मा) से संबंध रखनेवाला जिसकी गति (मृत्यु के उपरान्त) उर्ध्व दिशा में या ऊपर की ओर होती है। पारलौकिक शरीर से संबंध रखनेवाला।
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और्व  : पुं० [सं० उर्वी+अण्] १. बड़वानल। २. पुराणों के अनुसार वह दक्षिणी भाग जिसमें सब नरक हैं और जहाँ दैत्यों का निवास है। ३. पाँच प्रवर ऋषियों में से एक। ४. नोनी मिट्टी से निकला हुआ नमक।
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और्वशेय  : पुं० [सं० उर्व+ढक्-एय] १. उर्वशी के पुत्र। २. अगस्त्य मुनि। ३. वशिष्ठ।
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