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कड़ा  : वि० [सं० कडु] [स्त्री० कड़ी, भाव० कड़ाई] १. (पदार्थ) जिसके कणों, तंतुओं, संयोजक अवयवों आदि की बनावट या संघात इतना घना,ठोस या दृढ़ हो कि उसे काटा,तोड़ा,दबाया या लचाया न जा सके और इसलिए जिसमें कुछ गड़ाना या धँसाना बहुत कठिन हो। कठोर। सख्त। ‘कोमल’ या ‘मुलायम’ विपर्याय। जैसे—कड़ी जमीन, कड़ा तख्ता, कड़ा लोहा। २. (पदार्थ) जिसमें आर्द्रता या जलीय अंश सूखकर इतना कम हो या इतना कम बच रहा हो कि उसे सहज में मनमाना रूप न दिया जा सके। जैसे—कड़ा (गूँधा हुआ) आटा, कड़ा चमड़ा। ३. (अन्न या फल) जो अभी अच्छी तरह गला, घुला या पका न हो। जैसे—कड़ा आम, कड़ा केला, पकाये हुए चावल का कड़ा दाना। ४. (पदार्थ) जो अपने स्थान पर इस प्रकार गड़, जम या धँसकर बैठा हो कि सहज में इधर-उधर हटाया-बढ़ाया न जा सके। चारों ओर से अच्छी तरह कसा हुआ। ‘ढीला’ का विपर्याय। जैसे—किसी यंत्र का कोई कड़ा पुरजा या पेंच, किसी प्रकार की कड़ी गाँठ या बंधन। ५. (पदार्थ) जिसमें उग्र परिणाम या तीव्र प्रभाव उत्पन्न करने का गुण या शक्ति हो। तेज। जैसे—कड़ी दवा,कड़ी शराब। ६. (तत्त्व) जिसमें उग्रता, तीव्रता या विकटता नियमित या साधारण से अधिक हो और इसलिए जो अप्रिय, असह्य या कष्टप्रद जान पड़े। जैसे—कड़ी आँच या धूप, कड़ी गरमी, कड़ा जाड़ा। ७. जिसमें कोमलता, मधुरता सरसता आदि के बदले कठोरता, कर्कशता, रूक्षता आदि बातें अधिक हों। जैसे—कड़ा व्यवहार, कड़ा स्वभाव। ८. जिसमें कठोरता, दृढ़ता या सतर्कता का अधिक ध्यान रखा जाता हो। जैसे—कड़ी निगाह, कड़ा पहरा। ९. जो अपनी उचित,नियत या निर्धारित मात्रा, मान या सीमा से आगे बढ़ा हुआ हो। असाधारण। जैसे—कड़ी उमर, कड़ा तगादा, कड़ी मेहनत, कड़ा सूद। १॰. जिसका अनुसरण या पालन कठोरता या दृढ़तापूर्वक होता हो या होना आवश्यक या उचित हो। जिसका उल्लंघन अनुचित, दंडनीय या निंदनीय हो। जैसे—कड़ी आज्ञा, कड़ा नियम। ११. (व्यक्ति) जो नियम, परिपाटी, प्रथा, व्यवस्था आदि के पालन में उपेक्षा या शिथिलता न करता हो अथवा न सह सकता हो। जैसे—कड़ा मालिक, कडा़ हाकिम। १२. (व्यक्ति) जो सहज में भावुकता या कोमल मनोवृत्तियों से प्रभावित न होता हो अथवा जो विकट परिस्थितियों में भी बिना विचलित हुए धैर्य, साहस आदि से काम लेता हो। जैसे—कड़े दिल का आदमी। १३. (व्यक्ति) शारीरिक दृष्टि से हष्ट-पुष्ट। तगड़ा। १४. (कार्य) जिसमें विशेष आयास, परिश्रम, मनोयोग आदि की आवश्यकता हो और इसलिए जो सहज में हर किसी से न हो सकता हो। दुस्साध्य। मुश्किल। जैसे—कड़ा काम, कड़ी नौकरी। १५. (कार्य या व्यवहार) जिससे उग्रता, क्रोध, तिरस्कार या रोष सूचित होता हो। जैसे—कड़ा जवाब, कड़ी बात। पुं० [सं० कटक] [स्त्री० कड़ी] १. बड़े और मोटे छल्ले की तरह का एक प्रसिद्ध वृत्ताकार गहना जो हाथों की कलाइयों या पैरों में पिंडलियों के नीचे पहना जाता है। वलय। २. उक्त प्रकार का वह बड़ा छल्ला जो कुछ चीजों में उन्हें उठाने या पकड़ने के लिए या छतों आदि में कोई चीज लटकाने के लिए लगा रहता है। जैसे—कंडाल या कड़ाही का कड़ा। ३. छत पाटने का वह ढंग या प्रकार जिसमें वह बिना कड़ियाँ या शहतीर लगाये केवल गारे,चूने आदि से बनाई जाती है। जैसे—इस मकान के सब कमरों में कड़े की पाटन है। ४. एक प्रकार का कबूतर।
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कड़ाई  : स्त्री० [हिं० कड़ा+आई (प्रत्यय)] १. कड़े होने की अवस्था, गुण या भाव। कड़ापन २. कठोरता, सख्ती। जैसे—नौकरों के साथ की जानेवाली कड़ाई।
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कड़ाकड़  : क्रि० वि० [हिं० कड़-कड़ से अनु०] लगातार कड़-कड़ शब्द करते हुए। जैसे—कुत्ते का कड़ाकड़ हड्डी चबाना।
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कड़ाका  : पुं० [हिं० कड़ा से अनु०] १. बहुत जोर से होनेवाला कड़ शब्द जो प्रायः किसी चीज के गिरने, टूटने आदि से होता है। जैसे—बिजली का कड़ाका। पद—कड़ाके का बहुत जोर का। प्रचंड। जैसे—कड़ाके की गरमी या सरदी। २. उपवास। फाका।
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कड़ाबीन  : स्त्री० [तु० कराबीन] एक प्रकार का छोटा बंदूक जो प्रायः कमर में बाँधी या लटकाई जाती है। झोंका।
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कड़ाहा  : पुं० [सं० कटाह, प्रा० कड़ाह] [स्त्री० अल्पा० कड़ाही] पीतल लोहे आदि का बना हुआ गोल पेंदे, खुले मुँह तथा ऊँची दीवारों का एक प्रसिद्ध पात्र जिसमें खाने-पीने की चीजें तली या पकाई जाती हैं।
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कड़ाही  : स्त्री० [हिं० कड़ाहा] छोटे आकार का छिछला कड़ाहा। मुहावरा—कड़ाही चढ़ना=किसी विशेष अवसर पर इष्टमित्रों को खिलाने-पिलाने के लिए पूरी, तरकारी, मिठाई आदि बनाना। कड़ाही में हाथ डालना =(क) अग्निपरीक्षा देना। (ख) जान-बूझकर संकट मोल लेना।
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