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कलह  : पुं० [सं० कल√हन् (मारना)+ड] [वि० कलहकार; कलहकारी, कलही] १. घर के लोगों में अथवा दो घरों में होनेवाला नित्य का झगड़ा या विवाद। २. युद्ध। ३. तलवार का म्यान।
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कलह-प्रिय  : वि० [ब० स०] जिसे कलह या लड़ाई झगड़ा करना ही अच्छा लगता हो। झगड़ालू। पुं० नारद मुनि का एक नाम।
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कलहकार  : वि० [सं० कलह√कृ (करना)+अण्]=कलहकारी।
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कलहकारी (रिन्)  : वि० [सं० कलह√कृ+णिनि] [स्त्री० कलहकारिणी] जो स्वभावतः दूसरों से लड़ता-झगड़ता रहता हो। झगड़ालू।
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कलहंतरिता  : स्त्री०=कलहांतरिता।
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कलहनी  : स्त्री० [हिं० कलहिनी] प्रायः कलह करनेवाली या झगड़ालू स्त्री।
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कलहांतरिता  : स्त्री० [कलह-अंतरिता, तृ० त०] साहित्य में वह नायिका जो अपने पति या प्रेमी से कलह या झगड़ा करने के उपरांत पछताती हो।
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कलहार (ा)  : वि० [स्त्री० कलहारी]=कलही। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कलहिनी  : वि० [सं० कलहिन्+ङीष्] (स्त्री) जो घर में प्रायः कलह या झगड़ा करती हो। लड़ाकी। स्त्री०=शनि की पत्नी का नाम।
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कलही (हिन्)  : वि० [सं० कलह+इनि] [स्त्री० कलहिनी] प्रायः कलह या लड़ाई-झगड़ा करता रहनेवाला। झगड़ालू।
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