शब्द का अर्थ
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कुंभ :
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पुं० [सं० कुं√उभ् (पूर्ण करना)+अच्] १. धातु मिट्टी आदि का बना हुआ पानी रखने का घड़ा। कलश। विशेष—हमारे यहाँ जल से भरा हुआ घड़ा बहुत शुभ माना जाता है और इसी दृष्टि से इसका महत्त्व है। २. प्राचीन भारत में अन्न आदि की एक तौल या माप अर्थात् एक घड़ा भर अन्न। ३. मंदिरों आदि के शिखर पर होनेवाली (धातु, पत्थर आदि की) वह रचना, जिसकी आकृति औंधें घड़े के समान होती है। ४. हाथी के मस्तक के दोनों ओर के भाग,जो देखने में घड़े के आकार के होते हैं। ५. ज्योतिष में दसवी राशि, जिसमें कुछ तारों के योग से कुंभ या घड़े की-सी आकृति बनती हैं। ६. प्रति बारहवें वर्ष लगने वाला एक प्रसिद्ध पर्व जो सूर्य और बृहस्पति के कुछ विशेष राशियों में प्रविष्ट होने के समय पड़ता है और जिसमें उज्जैन, नासिक, प्रयाग, हरद्वार आदि तीर्थों में स्नान करने वाले यात्रियों की बहुत भीड़ होती है। ७. प्राणायाम की कुंभक नामक क्रिया, जिसमें हृदय को कुंभ मानकर बाहर की हवा खींचकर उसमें भरी जाती है। ८. वर्तमान अवसरर्पिणी के उन्नीसवें अर्हत् का नाम। (जैन)। ९. गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म का एक नाम। १॰. प्रहलाद के पुत्र, दैत्य का नाम। ११. कुम्भकर्ण के एक पुत्र का नाम। १२. संगीत में एक राग जो श्रीराग का आठवाँ पुत्र कहा गया है। १३. वह व्यक्ति जिसने वेश्या रखी हो। १४. एक प्रकार का जंगली वृक्ष, जिसे कुंभी भी कहते हैं। १५. रहस्य संप्रदाय में हृदय रूपी कमल। |
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कुंभ-कर्ण :
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पुं० [ब० स०] एक प्रसिद्ध राक्षस, जो रावण का भाई और बहुत बड़ा बलवान था। |
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कुंभ-जात :
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वि० पुं० [पं० त०]=कुंभज। |
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कुंभ-दासी :
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स्त्री० [ष० त०] १. कुटनी। दूती। २. जल-कुंभी। |
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कुंभ-मंडूक :
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पुं० [स० त०] संसार के विस्तार से अपरिचित व्यक्ति। वह जो अपने ही परिमित क्षेत्र को सारा जगत् समझता हो। |
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कुंभ-योनि :
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पुं० [ब० स०] १. दे० ‘कुंभज’। २. गूमा नामक वृक्ष। |
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कुंभ-संधि :
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पुं० [स० त०] हाथी के मस्तक के बीचोबीच का गड्ढा, जिसके दोनों ओर के भाग कुंभ की तरह उठे हुए होते हैं। |
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कुंभ-संभव :
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पुं० [ब० स०] दे० ‘कुंभज’। |
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कुंभ-हनु :
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पुं० [ब० स०] रावण के दल का एक राक्षस। |
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कुंभक :
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पुं० [सं० कुंभ√कै (भासना)+क] प्राणायाम की वह क्रिया जिसमें साँस से हवा खींचकर उसे अन्दर रोक रखते हैं। |
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कुंभकार :
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पुं० [सं० कुंभ√कृ (करना)+अण्] १. मिट्टी का बर्तन तैयार करनेवाली एक जाति। कुम्हार। २. कुक्कुट। मुरगा। |
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कुंभकारिका :
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स्त्री० [सं० कुंभकारी+कन्-टाप्, ह्रस्व]=कुंभकारी। |
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कुंभकारी :
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स्त्री० [सं० कुंभकार+ङीष्] १. कुंभकार की स्त्री। २. मैनसिल। ३. कुलथी। |
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कुंभज :
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वि० [सं० कुंभ√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जिसकी उत्पत्ति घड़े से हुई हो। पुं० १. महर्षि अगस्त्य। २. वसिष्ठ। ३. द्रोणाचार्य (तीनों की उत्पत्ति घड़े से कही गई है।) |
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कुँभड़ा :
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पुं० =कुम्हाड़ा। |
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कुंभनदास :
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पुं० ब्रजभाषा के अष्टछाप के कवियों में एक प्रसिद्ध कवि तथा महात्मा। |
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कुंभरी :
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स्त्री० [सं० कुंभ√रा (देना)+क, ङीष्] दुर्गा का एक रूप। |
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कुंभरेता (तस्) :
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पुं० [ब० स०] अग्नि का रूप। |
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कुंभला :
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स्त्री० [सं० कुंभ√ला (आदाम)+क, टाप्] गोरखमुंडी। |
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कुंभा :
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स्त्री० [सं० कुंभ+टाप्] वेश्या। रंडी। |
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कुंभाड़ :
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पुं० [सं० कुंभ-अंड, ब० स०] बाणासुर का एक मंत्री। |
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कुंभार :
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पुं० =कुम्हार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुंभिक :
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पुं० [सं० कुंभ+ठन्-इक] नपुंसक पुरुष। |
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कुंभिका :
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स्त्री० [सं० कुंभिक+टाप्] १. जलाशयों में होनेवाली एक प्रकार की घास या वनस्पति, जो बहुत अधिक बढ़ती तथा फैलती है। जलकुंभी। २. वेश्या। ३. कायफल। ४. आँखों की कोरों पर होनेवाली एक प्रकार की छोटी-छोटी फुसियाँ। |
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कुंभिनी :
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स्त्री० [सं० कुंभ+इनि, ङीष्] १. पृथ्वी। २. जमालगोटा। |
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कुंभिल :
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पुं० [सं० √कुंभ्+लच् (शक०)] १. वह चोर जो किसी के घर में सेंध लगाकर घुसता हो। २. अवयस्क माता अथवा कच्चे गर्भ से उत्पन्न होनेवाला बच्चा। ३. साला। ४. एक प्रकार की मछली। |
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कुँभिलाना :
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अ०=कुम्हलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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कुंभी (भिन् :
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वि० [सं० कुंभ+इनि] १. जिसके पास कुंभ अर्थात् मिट्टी का घड़ा हो। २. जिसका आकार-प्रकार कुंभ की तरह हो। पुं० १. हाथी। २. घड़ियाल। ३. गुग्गुल का पेड़ और उसका गोंद। ४. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा। ५. बच्चों को कष्ट देनेवाला एक राक्षस। ६. एक प्रकार की मछली। ७. कुंभीपाक नामक नरक। स्त्री० [सं० कुंभ+ङीष्] १. छोटा कुंभ या घड़ा। २. कायफल गनियारी, दंती, पांडर, सलई, आदि के पेड़ जिनकी लकड़ी इमारती कामों में आती है और जिनसे सजावट की चीजें बनाई जाती है। ३. तरबूज। ४. बंसी। |
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कुंभी-धान्य (क) :
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पुं० [सं० ब० स० कप्] वह व्यक्ति जिसने कुंभ में इतना अन्न भरकर रख लिया हो जो उसके तथा उसके परिवार के छः दिन के उपभोग के लिए यथेष्ट हो। |
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कुंभी-पुर :
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पुं० [सं० कुंभीपुर] पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर का एक नाम। |
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कुंभीक :
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पुं० [सं० कुंभी√कै+क] १. एक तरह के नपुंसक। २. जलकुंभी। ३. पुन्नाग का पेड़। |
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कुंभीका :
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स्त्री० [सं० कुंभीक+टाप्] १. जलकुंभी (दे०) २. आँख में होनेवाली एक प्रकार की फुंसी। बिलनी। ३. लिंग में होनेवाला एक रोग। |
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कुंभीनस :
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पुं० [सं० ब० स०] [स्त्री० कुंभीनसा] १. कुंभ-जैसी नासिकावाला एक प्रकार का जहरीला साँप। २. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा। ३. रावण। |
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कुंभीनसि :
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पुं० [सं० ब० स०, इत्व (पृषो)] शंबर असुर का एक नाम। |
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कुंभीनसी :
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स्त्री० [सं० कुंभीनस+ङीष्] सुमाली राक्षस की एक कन्या, जो कैतुमती से उत्पन्न हुई थी और जिसके गर्भ से लवण नामक असुर उत्पन्न हुआ था। |
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कुंभीपाक :
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पुं० [सं० ] १. पुराणानुसार एक प्रसिद्ध नरक, जिसमें पशु पक्षियों को मारनेवाले लोग खौलते हुए तेल के कड़ाहों में डाले जाते हैं। २. एक प्रकार का सन्निपात रोग, जिसमें नाक से काला खून जाता है। |
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कुंभीमुख :
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पुं० [सं० ब० स०] एक तरह का घाव या फोड़ा (चरक)। |
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कुंभीर :
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पुं० [सं० कुंभित्√ईर् (गति)+अण्] १. घड़ियाल की जाति का नक्र या नाक नामक एक जल-जन्तु। २. एक प्रकार का छोटा कीड़ा। |
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कुंभीरक :
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पुं० [सं० कुंभीर+कन्] चोर। |
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कुंभीरासन :
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पुं० [सं० कुंभीर-आसन, उपमि० स०] योग में एक आसन जिसमें जमीन पर चित लेटकर और पैर दूसरे पैर पर चढ़ाकर दोनों हाथ माथे पर रखते हैं। |
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कुंभील :
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पुं० [सं० कुंभ√ईर्+अण्, र-ल] १. =कुंभीर। २. =कुंभीरक। |
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कुँभेर :
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स्त्री० [सं० कुंभ√ईर्+अच्] गँभारि का पेड़। |
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कुंभोदर :
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पुं० [सं० कुंभ-उदर, ब० स०] शिव का एक गण जिसने सिंह बनकर नन्दिनी पर आक्रमण किया था (रघुवंश)। |
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कुंभोलूक :
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पुं० [सं० कुंभ-उलूक, उपमि० स०] एक प्रकार का बहुत बड़ा उल्लू। |
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