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क्रोध  : पुं० [सं०√क्रुध् (कुपित होना)+घञ्] [वि० क्रुद्ध] १. कोई अनुचित, अन्यायपूर्ण अथवा हानिकारक काम या बात होने पर मन में उत्पन्न होनेवाला वह उग्र तथा तीक्ष्ण मनोविकार जिसमें प्रवृत्त होकर मनुष्य उस अनुचित या हानिकारक काम या बात करनेवाले को कुछ कठोर दंड देना चाहता है। कोप। गुस्सा। (ऐंगर) २. साहित्य में उक्त मनोविकार का वह रूप जो रौद्र-रस का स्थायी भाव माना गया है। ३. साठ संवत्सरों में से उनसठवें संवत्सर का नाम।
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क्रोध-भवन  : पुं० =कोप भवन।
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क्रोध-मूर्च्छित  : वि० [तृ० त०] जो क्रोध में आकर आपे से बाहर हो गया हो।
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क्रोध-वश  : क्रि० वि० [ष० त०] क्रोध में होने के कारण। पुं० १. एक राक्षस का नाम। २. काद्रवेय नामक साँपों में से एक साँप का नाम।
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क्रोध-वशा  : स्त्री० [ष० त०] दक्ष प्रजापति की एक कन्या।
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क्रोधज  : वि० [सं० क्रोध√जन् (उत्पन्न होना)+ड०] क्रोध से उत्पन्न होने वाला। पुं० मोह जिसकी उत्पत्ति क्रोध से मानी गई है।
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क्रोधना  : वि० [सं०√क्रुध+युच्-अन-टाप्] क्रोधी स्वभाववाली। अ० क्रुद्ध होकर किसी पर बिगड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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क्रोधवंत  : वि० [सं० क्रोधवत्] १. क्रोध करनेवाला। २. क्रोध या गुस्से से भरा हुआ।
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क्रोधहा (हन्)  : पुं० [सं० क्रोध√हन् (मारना)+क्विप्] विष्णु।
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क्रोधा  : स्त्री० [सं० क्रोध+अच्-टाप्] दक्ष प्रजापति की एक कन्या।
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क्रोधित  : वि० [हिं क्रोध से] जो क्रोध से भरा हो। कुद्ध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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क्रोधी (धिन्)  : वि० [सं० क्रोध+अच्-टाप्] [स्त्री० क्रोधिनी] जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो। प्रायः क्रोध करनेवाला। गुस्सावर। पुं० क्रोध नामक संवत्सर। स्त्री० संगीत में गांधार की दो श्रुतियों में से अंतिम।
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