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खौर  : पुं० [सं० क्षौर] १. मस्तक पर लगाया जानेवाला चंदन का आड़ा धनुषाकार और लहरियेदार तिलक। २. पीतल का वह टुकड़ा जिससे उक्त प्रकार के तिलक में लहरिया बनाया जाता है। ३. माथे पर पहनने का स्त्रियों का एक गहना। ४. मछली फँसाने का एक प्रकार का जाल।
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खौरना  : स० [हिं० खौर] १. चंदन का टीका या तिलक लगाकर उस पर लहरिया बनाना। २. खौर (तिलक) लगाना।
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खौरहा  : वि० [हिं० खौरा+हा (प्रत्यय)] [हिं० खौरही] १. जिसके सिर के बाल झड़ गये हों। २. जिसे खौरा नामक रोग हुआ हो।
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खौरा  : पुं० [सं० क्षौर] १. सिर के बाल झड़ने का रोग। गंज। २. कुत्ते, बिल्ली आदि को होनेवाली एक प्रकार की खुजली, जिसमें उनके सिर के बाल झड़ जाते हैं। वि० (पशु) जिसे उक्त रोग हुआ हो।
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खौरि  : स्त्री०=खौर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० खोरि (तंग गली)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खौरी  : स्त्री० [देश०] सुनारों की बोली में, राख। मुहावरा–खौरी करना=चाँदी या सोना भस्म करके उसकी राख बनाना। स्त्री०=खोरि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=खोपड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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खौरु  : पुं० [अनु०] बैल या साँड के डकारने का शब्द।
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