शब्द का अर्थ
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गंगा :
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स्त्री० [सं०√गम्(जाना)+गन्–टाप्] १. भारतवर्ष की एक प्रधान और पवित्र नदी जो हरिद्वार के ऊपर से निकल कर कलकत्ते के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है। जाह्ववी। भागीरथी। मुहावरा–गंगा नहाना=किसी कर्त्तव्य का पालन करके उससे छुट्टी पाना या निश्चित होना। २. हठ-योग में, इड़ा (नाड़ी) का दूसरा नाम। ३. सहस्य संप्रदाय में, मन को शुद्ध करनेवाली पवित्र वाणी। |
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गंगा जाल :
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पुं० [हिं० गंगा+जाल] रीहा घास का बना हुआ मछुओं का जाल। (बंगाल) |
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गंगा-गति :
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स्त्री० [स० त० ] १. मृत्यु। २. मृत्यु के उपरांत होने वाली मुक्ति। मोक्ष। |
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गंगा-चिल्ली :
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स्त्री० [मध्य० स० ] जल-कुक्कुटी। (पक्षी) |
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गंगा-जमनी :
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वि० [हिं० गंगा+जमुना] १. गंगा और यमुना के मेल की तरह दो तरह का या दो रंगों का। जैसे–गंगा-जमुनी दाल=(केवटी दाल); गंगा जमुनी साड़ी। २. सोने चाँदी अथवा ताँबे और पीतल के मेल से बना हुआ, जैसे–गंगा-जमुनी कुरसी या लोटा। ३. सफेद और काला मिला हुआ। ४. अबलक। चितकबरा। स्त्री० कान में पहनने का एक प्रकार का गहना। |
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गंगा-जल :
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पुं० [ष० त०] १. गंगा नदी का जल जो बहुत पवित्र माना जाता है। २. पुरानी चाल का एक प्रकार का बढ़िया सूती कपड़ा जिसकी पगड़ियाँ बनती थीं। |
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गंगा-दत्त :
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पुं० [तृ० त०] भीष्म पितामह का एक नाम। |
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गंगा-द्वार :
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पुं० [ष० त०] हरिद्वार। |
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गंगा-धर :
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पुं० [ष० त०] १. महादेव। शिव। २. समुद्र। ३. वैद्यक में एक प्रकार का रस। ४. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में आठ रगण होते हैं। इसे खंजन और गंगोदक भी कहते हैं। |
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गंगा-पथ :
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पुं० [ष० त०] आकाश। (डिं०) |
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गंगा-पाट :
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पुं० [हिं० गंगा+पाट] घोड़े की एक भौंरी जो उसके पेट के नीचे होती हैं। |
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गंगा-पुजैया :
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स्त्री० =गंगा पूजा। |
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गंगा-पुत्र :
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पुं० [ष० त० ] १. भीष्म। २. पुराणानुसार लेट पिता और तीवरी माता से उत्पन्न एक संकर जाति। ३. ब्राह्मणों की एक जाति जो पवित्र नदियों के किनारे घाटों पर बैठकर अथवा तीर्थस्थानों में रहकर दान लेती है। ४. उक्त जाति का व्यक्ति। |
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गंगा-पूजा :
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स्त्री० [ष० त०] विवाह के बाद की एक रीति जिसमें वर और वधू को किसी तालाब या नदी के किनारे ले जाकर उनसे पूजा कराई जाती है। |
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गंगा-यात्रा :
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स्त्री० [मध्य० स० ] १. मरणासन्न व्यक्ति को मरने के लिए गंगा-तट पर या किसी पवित्र जलाशय के किनारे ले जाने की पुरानी प्रथा। २. मृत्यु। स्वर्गवास। |
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गंगा-लाभ :
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पुं० [ष० त०] मृत्यु। स्वर्गवास। |
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गंगा-सागर :
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पुं० [मध्य० स० ] १. कलकत्ते के पास वह स्थान जहाँ गंगा नदी समुद्र में मिलती है और जो एक तीर्थ माना जाता है। २. एक प्रकार की बड़ी झाड़ी। ३. खद्दर की छपी हुई आठ-नौ हाथ लंभी जनानी धोती। |
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गंगा-सुत :
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पुं० [ष० त०]=गंगा-पुत्र। |
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गंगाजली :
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स्त्री० [सं० गंगाजल] शीशे या धातु की सुराहीनुमा लुटिया जिसमें यात्री तीर्थों से पवित्र जल लाते हैं। मुहावरा–गंगाजली उठाना=हाथ में गंगाजली लेकर शपथ पूर्वक कोई बात कहना। पुं० भूरे रंग का एक प्रकार का गेहूँ। |
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गंगादह :
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पुं०=गंगाजली। |
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गंगाधार :
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पुं० [गंगा√धृ (धारण करना)+अण्] समुद्र। |
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गंगांबु :
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पुं० [सं० गंगा-अंबु ष० त० ] १. गंगाजल। २. पवित्र तथा शुद्ध जल। ३. वर्षा का जल। |
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गंगाराम :
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पुं० [हिं० गंगा+राम] तोते को संबोधित करने का एक नाम। |
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गंगाल :
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पुं० [हिं० गंगा+आलय] पानी रखने का एक प्रकार का बड़ा पात्र। कंडाल। |
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गंगाला :
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पुं० [हिं० गंगा+आलय] वह भूमि जहाँ तक गंगा के चढ़ाव का पानी पहुँचता है। कछार। |
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गंगावतरण :
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पुं० [गंगा-अवतरण, ष० त०] वह अवस्था जिसमें गंगा जी स्वर्ग से उतरकर धरती प आयी थीं। गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर आना। |
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गंगावतार :
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पुं० [गंगा-अवतार,ष० त० ] =गंगावतरण। |
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गंगावासी(सिन्) :
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वि० [सं०गंगा√वस्(बसना)+णिनि] गंगा के तट पर रहनेवाला। |
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