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गोद  : स्त्री० [सं० क्रोड़] १. बैठे हुए व्यक्ति का सामने का कमर और घुटनों के बीच का भाग जिसमें बच्चों आदि को लिया जाता है। २. खड़े हुए मनुष्य का वक्षःस्थल और कमर के बीच का वह स्थान जिस पर बच्चों को बैठाकर हाथ के घेरे से सँभाला जाता है। पद-गोद का बच्चा ऐसा छोटा बच्चा जो प्रायः गोद में ही रहता हो। मुहावरा–(किसीको) गोद बैठाना या लेनाकिसी को अपना दत्तक पुत्र बनाना। ३. स्त्रियों की साड़ी का वह भाग जो पेट तथा वक्षःस्थल पर रहता है। अंचल। मुहावरा–(किसी के आगे) गोद पसाकर बिनती करना या माँगना अत्यन्त अधीरता से माँगना या प्रार्थना करना। अपनी असहाय तथा दीन अवस्था बतलाते हुए किसी से किसी बात की प्रार्थना करना। गोद भरना (क) सौभाग्यवती स्त्रियों के अंचल में मंगल कामना से नारियल,मिठाई आदि रखना जो शुभ समझा जाता है। (ख) संतान होना। औलाद होना। ४. कोई ऐसा स्थान जहाँ किसी को माँ की गोद का सा आराम तथा सुख मिले, जैसे–प्रकृति की गोद में आपका लालन-पालन हुआ था।
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गोद-गुदाली  : पुं० [देश०] गूलू नाम का पेड़।
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गोदंत  : पुं० [ष० त०] गोदंती हरताल।
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गोदंती  : स्त्री० [सं० गोदन्त+ङीष्] वह कच्ची और सफेद हरताल जो अभी शुद्ध न की गई हो।
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गोदनहर  : स्त्री० =गोदनहारी।
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गोदनहारा  : पुं० [हिं० गोदना+हरा(प्रत्य)] १. गोदना गोदने का व्यवसाय करनेवाला व्यक्ति। २. वह व्यक्ति जो माता छापता या टीका (सूई) लगाता हो।
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गोदनहारी  : स्त्री० [हिं० गोदना+हारी(प्रत्य)] कंजड़ या नट जाति की स्त्री जो गोदना गोदती है।
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गोदना  : स० [हिं० खोदना==गड़ाना] १.कोई नुकीली तथा कड़ी चीज निरर्थक किसी कोमल तल में गड़ाना या चुभाना। जैसे–चमड़े में सूई गोदना। २. बिलकुल निरर्थक रूप में अक्षर, चिह्न आदि बनाना। जैसे–लड़का लिखता क्या है,यों ही बैठा-बैठा गोदा करता है। ३. किसी को उत्तेजित या प्रेरित करनेवाली कोई क्रिया करना या बात कहना। ४. चुभती या लगती हुई कोई कड़ुवी या कड़ी बात कहना। ५. हाथी के मस्तक में अंकुश गड़ाना। स० =गोड़ना (जमीन)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १. तिल के आकार का वह विशिष्ट प्रकार का चिन्ह्र या बिंदी जो शरीर के किसी अंग पर सुन्दरता, पहचान आदि के लिए नील या कोयले के पानी में डुबाई हुई सूई बार-बार गड़ाकर बनाई जाती है। विशेष–ऐसी एक या अनेक बिदियाँ प्रायः गाल, कलाई आदि पर यों ही अथवा कुछ विशिष्ट आकृतियों के रूप में बनाई जाती है। २. वह सूई जिसकी सहायता से अनेक प्रकार के रोगों (जैसे–प्लेग,शीतला,हैजा आदि) से रक्षित रखने के लिए कुछ विशिष्ट औषधियाँ शरीर में पृविष्ट की जाती हैं। सूई। ३. खेत गोड़ने का कोई उपकरण।
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गोदनी  : स्त्री० [हिं० गोदना] १. कोई ऐसी चीज जिससे गोदा जाय। २. गोदना गोदने की सूई।
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गोदर  : वि० [हिं० गदराना] १. गदराया हुआ। २. पूरी तरह से युवा अवस्था में आया हुआ।
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गोदा  : स्त्री० [सं० गो√दा (देना)+क-टाप्] १. गोदावरी नदी। २. गायत्री स्वरूपा महादेवी। पुं० [हिं० गोदना] चित्रकला में वे छोटे-छोटे बिन्दु जो आकृतियों आदि के स्थान और रूप-रेखा स्थिर करने के लिए लगाये जाते हैं। पुं० [?] १. कटवाँसी बाँस। २. वृक्ष की नई डाल या साखा। ३. गूलर, पीपल, बड़ आदि के पके हुए फल।
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गोदान  : स० [हिं० गोदना] (गोदना) गोदने का काम किसी से कराना।
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गोदाम  : पुं० [अं० गोडाउन] वह घर या कमरा जहाँ पर बिक्री के लिए खरीदी हुई वस्तुएँ जमा करके रखी जाती है।
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गोदावरी  : स्त्री० [सं०गो√दा(देना)+वनिप्-ङीष्,र] दक्षिण भारत की एक प्रसिद्ध पवित्र नदी जो नासिक के पास से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
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गोदिनका  : स्त्री० [बं०] बेंत की जाति का एक वृक्ष जो पूर्वीय बंगाल औरल आसाम में बहुत होता है। इसकी टहलियों से चटाइयाँ बनाई जाती हैं।
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गोदी  : स्त्री० =गोद। स्त्री० [मरा०] समुद्र का घाट जहाँ से जहाजों पर माल चढाया उतारा जाता है। (डाक) पुं० [देश] एक प्रकार का बबूल जो प्रायः नहरों केकिनारे बाँधों पर लगाया जाता है।
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गोदी-मजदूर  : पुं० [मरा०+फा०] जहाजों पर से माल उतारने तथा चढ़ाने का काम करने वाला मजदूर।
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गोदोहनी  : स्त्री० [सं० दोहन+ङीष्, गो-दोहनी, ष० त०] वह बरतन जिसमें गौ का दूध दुहा जाता है।
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