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गौड़  : पुं० [सं० Öगुड् (रक्षण)+घञ्] १. वंग देश का वह प्राचीन विभाग जो किसी के मत से मध्य बंगाल से उड़ीसा की उत्तरी सीमा तक और किसी के मत के वर्तमान बर्दवान के आस-पास था। २. उक्त देश का निवासी। ३. पुराणानुसार ब्राह्मणों का एक वर्ग जिसके अन्तर्गत सारस्वत, कान्यकुब्ज, उत्कल, मैथिल और गौड़ ये पाँच भेद हैं और इसी लिए जिन्हें पंच गौंड़ भी कहते हैं। ४. उक्त वर्ग के अंतर्गत ब्रह्मणों की एक जाति जो दिल्ली के आस-पास तथा राजपूताने में रहती है। ५. राजपूतों के ३६ कुलों या वर्गों में से एक। ६. कायस्थों की एक उपजाति। ७. सम्पूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं और जो तीसरे पहर तथा संध्या के समय गाया जाता है।
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गौड़-नट  : पुं० [ब० स०] गौंड़ और नट के योग से बना हुआ एक संकर राग (संगीत)।
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गौड़-पाद  : पुं० [ब० स०] स्वामी शंकराचार्य के गुरु के गुरु का नाम।
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गौड़िक  : वि० [सं० गुड़+ठक्-इक] १. गुड़-संबंधी। २. गुड़ का बना हुआ। ३. जिसमें गुड़ मिला हुआ हो। पुं० १. ईख। २. गुड़ से बनी हुई शराब।
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गौड़िया  : वि० पुं० =गौड़ीय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौड़ेश्वर  : पुं० [गौड़-ईश्वर, ष० त०] महात्मा कृष्ण चैतन्य जिन्हें गौराग महाप्रभु भी कहते हैं।
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