शब्द का अर्थ
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चतुर्थ :
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वि० [सं० चतुर+डट्, थुक् आगम] क्रम या गिनती में चार की संख्या पर पड़नेवाला। चौथा। जैसे–चतुर्थ आश्रम, चतुर्थ श्रेणी। पुं० एक प्रकार का चौताला ताल (संगीत)। |
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चतुर्थ-काल :
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पुं० [कर्म० स०] १. दिन का चौथा पहर। २. सन्ध्या का समय। |
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चतुर्थ-भाज् :
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वि० [सं० चतुर्थ√भज् (ग्रहण करना+ण्वि, उप० स०] प्रजा द्वारा उपजाये हुए अन्न आदि में से कर स्वरूप एक चौथाई अंश पानेवाला (अर्थात् राजा)। |
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चतुर्थक :
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पुं० [सं० चतुर्थ+कन्] वह बुखार जो हर चौथे दिन आता हो। चौथिया ज्वर। |
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चतुर्थांश :
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पुं० [चतुर्थ-अंश, कर्म० स०] १. किसी चीज के चार बराबर भागों में से हर एक। चौथाई। २. [ब० स०] चार अंशों या भागों में से किसी एक अंश या भाग का मालिक। |
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चतुर्थांशी(शिन्) :
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वि० [सं० चतुर्थाश+इनि] चतुर्थाश पानेवाला। |
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चतुर्थांश्रम :
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पुं० [सं० चतुर्थ-आश्रम, कर्म० स०] आश्रमों में चौथा, अर्थात् संन्यास। |
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चतुर्थिका :
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स्त्री० [सं० चतुर्थ+कन्, टाप्, इत्व] एक परिमाण जो ४ कर्ष के बराबर होता है। पल। |
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चतुर्थी :
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स्त्री० [सं० चतुर्थ+ङीष्] १. चांद्रमास के किसी पक्ष की चौथी तिथि। चौथ। २. संस्कृत व्याकरण में संप्रदान कारक या उसमें लगनेवाली विभक्ति। |
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चतुर्थी-कर्म(र्मन्) :
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पुं० [मध्य० स०] विवाह के चौथे दिन के कृत्य जिनमें स्थानिक देवता, नदी आदि के पूजन होते हैं। |
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चतुर्थी-क्रिया :
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स्त्री० [मध्य० स०] किसी की मृत्यु के चौथे दिन होनेवाले कृत्य। |
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चतुर्थी-तत्पुरुष :
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पुं० [तृ० त०] तत्पुरुष समास का वह प्रकार या भेद जिसमें चौथी विभक्ति का लोप होता है। |
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