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चाय  : स्त्री० [चीनी चा] १. एक प्रसिद्ध पौधा या झाड़ जिसकी पत्तियाँ १॰-१२ अंगुल लंबी, ३-४ अंगुल चौड़ी और दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। २. उक्त पौधे की सुगन्धित और सुखाई हुई पत्तियाँ जिन्हें उबालकर पीने की चाल अब संसार भर में फैल गई है। ३. उक्त पत्तियों का उबालकर तैयार किया हुआ पेय जिसमें चीनी, दूध, आदि भी मिलाया जाता है। पुं०=चाव(चाह)। उदा०–मौन बदन उर चाय।–नागरीदास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चाय-पानी  : पुं० [हि० पद] ऐसा जल-पान जिसके साथ पेय रूप में चाय भी हो।
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चायक  : पुं० [सं०√चि (चयन करना) ण्वुल्-अक] चुननेवाला। वि० [हि० चाय=चाव या चाह] चाहने या प्रेम करने वाला।
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चायदान  : पुं० [हि० चाय+फा० दान] करवे की आकृति का एक प्रकार का चीनी-मिट्टी या धातु का एक प्रसिद्ध पात्र जिसमें चाय का गरम पानी रक्खा जाता है।
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चायदानी  : स्त्री०=चायदान।
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