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छाती  : स्त्री० [सं० छादिन् छाने या छाया करनेवाला] १. जीवों के शरीर का सामने वाला वह भाग जो पेट और गरदन के बीच स्थित होता है। वक्षस्थल। २. मनुष्य के शरीर का उक्त भाग, जिसमें स्त्री जाति में स्तन होते हैं। मुहावरा–छाती डलना=अपच के कारण उक्त अंश के भीतरी भागों में जलन होना। छाती पीटना=बहुत दुःखी या शोकमग्न होने पर छाती पर हथेली से बार-बार आघात करना। छाती लगाना=आलिंगन करना। ३. स्त्रियों का स्तन। मुहावरा–छाती छुड़ाना=ऐसी क्रिया करना जिससे शिशुओं के स्तन-पान करने का अभ्यास छूटे। छाती पिलाना=स्त्री का संतान को अपना दूध पिलाना। ४. मन। हृदय। मुहावरा–छाती उमडना=प्रसन्नता से फूले न समाना। छाती जलना=कोई कष्टदायक घटना या बात होने पर संतप्त होना। छाती जुड़ाना या ठंडी होना=अभिलाषा पूर्ण होने पर मन शान्त होना। छाती पत्थर की करना=अपने हृदय को इतना कड़ा करना या बनाना कि उस पर दुख का प्रभाव न पड़े। (किसी की) छाती पर कोदों या मूँग दलना=किसी के सामने जान-बूझकर ऐसा आचरण या व्यवहार या काम करना जिससे उसका दिल दुखता हो। छाती पर पत्थर रखना=दुःखी या शोकमग्न होने पर अपने दिल को कड़ा करना। छाती पर साँप फिरना या लेटना=(क) कलेजा दहल जाना। (ख) ईर्ष्या के कारण व्यथित होना। छाती फटना=बहुत अधिक असह्र दुःख या वेदना होना। छाती भर आना=ह्रदय गद्गद हो जाना। ५. जीवट। साहस। हिम्मत।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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