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शब्द का अर्थ

झड़  : स्त्री०=झड़ी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
झड़कना  : स०=झिड़कना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
झड़क्का  : पुं=झड़ाका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
झड़झड़ाना  : स० [अनु०] १. झड़ झड़ शब्द उत्पन्न करना। २. झड़ झड़ शब्द करते हुए कुछ गिरना, फेंकना या हटाना। झटकारना। ३. झँझोंड़ना। ४. झिड़कना। अ० १. झड़झड़ शब्द होना। २. झड़ झड़ शब्द करते हुए गिरना।
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झड़त्कार  : पुं० [सं० झणत (अव्यक्त शब्द)-कार, ब० स०] झनकार।
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झड़ना  : अ० [सं० क्षरण] १. किसी चीज में से उसके छोटे-छोटे अंगों या अंशों का टूट-टूटकर गिरना। जैसे–पेड़ में से पत्तियाँ झडना। २. ऊपर पड़े हुए बहुत छोटे-छोटे कणों का अलग होकर गिरना। जैसे–कपड़े या शरीर पर की धूल झड़ना। ३. वीर्य का स्खलित होना। (बाजारू)। अ० [हिं० झाड़ना का अ०] झाड़ा या साफ किया जाना।
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झड़प  : स्त्री० [अनु०] १. झड़पने की क्रिया या भाव। २. दो जीवों या प्राणियों में कुछ समय के लिए होनेवाली ऐसी छोटी लड़ाई जिसमें वे एक दूसरे पर रह-रहकर झपटते हों। ३. दो व्यक्तियों में उक्त प्रकार से होने वाली कहा-सुनी। आवेश और क्रोध के वश में होकर की जाने वाली अप्रिय, आक्षेपपूर्ण और कटु-बात-चीत।
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झड़पना  : अ० [अनु०] आवेश और क्रोधपूर्वक किसी पर आक्रमण करना। टूट पड़ना। स० उक्त प्रकार से आक्रमण करके किसी से कुछ छीन लेना। जैसे–लड़के के हाथ से बंदर ने अमरूद झड़प लिया।
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झड़पा-झ़ड़पी  : स्त्री० [अनु०] १. झ़ड़प। २. गुत्थमगुत्था। हाथापाई।
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झड़पाना  : स० [हिं० झड़पना] १. दो जीवों विशेषतः पक्षियों को झड़पने या झपटने में प्रवृत्त करना। २. दूसरों को लड़ने-झगड़ने में प्रवृत्त करना।
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झड़बेरी  : स्त्री० [हिं० झाड़+बेर] १. जंगली बेर का वृक्ष। २. उक्त वृक्ष का फल। पद–झड़ बेरी का काँटा=ऐसा व्यक्ति जो सदा उलझने या लड़ने-भिड़ने को तैयार रहता हो और जिससे जल्दी पीछा छुड़ाना कठिन हो।
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झड़बैरी  : स्त्री०=झड़-बेरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झड़वाई  : स्त्री० [हिं० झड़वाना] झाड़ने या झड़वाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।
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झड़वाना  : स० [हिं० झाड़ना का प्रे० रूप] १. झाड़ने का काम दूसरे से कराना। २. नजर या भूत-प्रेत आदि लगने पर ओझे से झाड़ फूँक कराना।
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झड़ाई  : स्त्री० [हिं० झाड़ना] झाड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी। स्त्री०=झड़वाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० झड़ना] झड़ने की क्रिया या भाव।
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झड़ाक  : पुं०, क्रि० वि०=झड़ाका।
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झड़ाका  : क्रि० वि० [अनु०] बहुत जल्दी। चटपट। झट से। पुं०=झड़प।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झड़ाझड़  : क्रि० वि० [अनु०] १. बराबर एक के बाद एक। निरंतर। लगातार। २. बहुत जल्दी जल्दी या तेजी से।
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झड़ी  : स्त्री० [हिं० झड़ना] १. झड़ने की क्रिया या भाव। २. कुछ समय तक लगातार झड़ते रहने की क्रिया या भाव० २. ऐसी वर्षा जो लगातार अधिक समय तक होती रहे। जैसे–तीन दिन से पानी की झड़ी लगी है। ४. लगातार एक पर एक होती रहनेवाली क्रिया या भाव। जैसे–गालियों की झड़ी, प्रश्नों की झड़ी। क्रि० प्र०–बँधना।–लगना। ५. ताले के अंदर का वह खटका जो चाबी के आघात से हटता-बढ़ता रहता है और जिसके कारण ताला खुलता और बंद होता है।
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