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शब्द का अर्थ
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डाँड़ :
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पुं० [सं० दंडक, प्रा० डंदअ] १. लकड़ी का डंडा विशेषतः सीधा डंडा। जैसे–झंडे का बाँस, छत की धरन आदि। २. किसी चीज में उसे चलाने, पकड़ने आदि के लिए लगा हुआ डंडा। दस्ता। हत्था। ३. नाव खेने का हाँड़। ४. गदका। ५. कोई ऐसी चीज जो एक सीध में चली गई हो। जैसे–रेखा, मेड़, रीढ़ की हड्डी आदि। ६. करघे में वह ऊंची लकड़ी जिसमें ऊरी फँसाई जाती है। ७. ऊंचा स्थान। ८. समुद्र का ढालुआँ रेतीला किनारा। ९. सीमा। हद। १॰. वह मैदान जिसमें का जंगल कट गया हो। ११. कमर। १२. क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जानेवाला धन या वस्तु। दंड। १३. अर्थ-दंड। जुरमाना। १४. दे० ‘कट्ठा’। (लम्बाई का मान)। |
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डाँड़ना :
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स० [हिं० डाँड़+ना (प्रत्यय)] अर्थ-दंड से दंडित करना। जुरमाना करना। स०=डाँटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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डाँड़र :
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पुं० [हिं० डाँठ] बाजरे की फसल कट जाने पर खेत में बची रह जानेवाली उसकी खूँटी। |
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डाँड़री :
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स्त्री० [सं० दग्ध, हिं० डाढ़ा] मटर की भुनी हुई फली। |
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डाँड़ा :
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पुं० [हिं० डाँड] १. डंडा। २. वह बड़ा डंडा जिसके आगे चप्पू लगा रहता है और जिसकी सहायता से नाव खेते या चलाते हैं। डाँड़ा। ३. सीमा। हद। पद–डाँड़ा मेंढ़ा=(देखें) होली का डाँड़ा और घास=लकड़ियों फूस आदि का वह ढेर जो होली की रात को जलाने के लिए पहले से ही अपने गाँव या मुहल्ले की सीमा पर इकट्ठा किया जाता है। ४. समुद्र का ढालुआँ रेतीला किनारा। (लश०) |
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डाँड़ा-मेंड़ी :
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स्त्री०=डाँड़ा-मेंड़ा। |
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डाँड़ा-सहेल :
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पुं० [देश०] साँपों की एक जाति। |
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डाँड़ी :
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स्त्री० [हिं० डाँड़] १. पतली लंबी लकड़ी। २. वृक्ष आदि की पतली लंबी शाखा। टहनी। ३. पौधों का वह लंबा डंठल जिसमें फूल, फल आदि लगते हैं। ४. व्यवहार में लाये जानेवाले उपकरणों का वह पतला लंबोतरा अंश, जिसे पकड़कर उस उपकरण को चलाया या हिलाया-डुलाया जाता है। जैसे–कलछी या पंखे की डाँड़ी। ५. तराजू की डंडी। ६. हिंडोले में की वे चारों लकडियाँ या डोरी की लड़े जिन पर बैठने की पटरी रखी जाती है। ७. डंडे में बँधी हुई एक तरह की झोली के आकार की पहाड़ी सवारी। झप्पान। ८. जुलाहों की वह लकड़ी जो चरखी की थवनी में डाली जाती है। ९. शहनाई का वह निचला भाग जिसमें से हवा बाहर निकलती है। १॰. सीधी रेखा। ११. मर्यादा। १२. चिड़ियों के बैठने का अड्डा। उदाहरण–-औ सोनहा सोने की डाँड़ी।–जायसी। १३. अनवट नामक गहने का वह भाग जो दूसरी और तीसरी उंगिलयों के बीच में रहता है और उसे घूमने से रोकता है। पुं० १. डाँड़ खेनेवाला आदमी। (लश०) २. सुस्त आदमी। |
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