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पंग  : वि०= [सं० पंगु] १. लँगड़ा। २. गति-हीन। निश्चल। ३. परम चकित और स्तब्ध। उदा०—सूर हरि की निरखि सोभा, भई मनसा पंग।—सूर। पुं० [?] एक प्रकार का विलायती नमक, जो पहले लिवरपूल से आता था।
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पंगत, पंगति  : स्त्री० [सं० पंक्ति] १. पंक्ति। पाँति। २. बहुत-से लोगों का साथ बैठकर भोजन करना। भोज। ३. भोज के समय भोजन करने के लिए एक साथ बैठनेवालों की पंक्ति या समूह। जैसे—संध्या में दो पंगतें तो बैठ चुकी हैं। अभी दो पंगतें और बैठेंगी। क्रि० प्र०—बैठना।—बैठाना।—लगना।—लगाना। ४. एक ही जाति या प्रकार के बहुत-से लोगों का समाज या समूह। ५. जुलाहों का एक औजार जो दो सरकंडों को एक में बाँधकर बनाया जाता है।
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पंगल  : वि० [सं० पंगु+लच्] १. जिसके हाथ-पैर टूटे हुए हों और इसीलिए जो कहीं आ-जा न सकता हो या काम-धंधा न कर सकता हो। २. बहुत बड़ा अकर्मण्य और आलसी। पुं० १. अंडी या रेंड का पेड़। २. सफेद रंग का घोड़ा।
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पंगला  : वि०=पंगुल।
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पंगा  : वि०=पंगु।
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पंगायत  : स्त्री० [हिं० पग] पैताना। (देखें) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पंगी  : स्त्री० [सं० पंक, हिं० पाँक] धान के खेतों में लगनेवाला एक प्रकार का कीड़ा। स्त्री० [?] कीर्ति। यश। उदा०—पूगी समंदाँ पार, पंगी राण प्रतापसी।—दुरसाजी।
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पंगु  : वि० [सं० √खंज् (लँगड़ा होना)-कु-पंगदेश, नुक्] [भाव० पंगुता, पंगुत्व] १. जो पैर या पैरों के टूटे हुए होने के कारण चल न सकता हो। लँगड़ा। उदा०—जौ संग राखत ही बनै तौ करि डारहु पंगु।—रहीम। २. लाक्षणिक अर्थ में, (व्यक्ति) जो ऐसा स्थिति या स्थान में लाया गया हो, जिसमें या जहाँ वह कुछ काम न कर सके। पुं० १. एक प्रकार का वात रोग जिसमें घुटने जकड़ जाते हैं और आदमी चल-फिर नहीं सकता। २. मध्य युग में एक प्रकार के साधु, जो केवल मल-मूत्र का त्याग करने या भिक्षा माँगने के लिए कुछ दूर तक जाते थे, और शेष सारा समय अपनी जगह पर बैठे-बैठे बिताते थे। ३. शनि ग्रह, जिसकी गति अपेक्षया बहुत मंद होती है।
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पंगु-गति  : स्त्री० [कर्म० स०] वार्णिक छंदों का एक दोष जो उस समय माना जाता है, जब किसी छंद में लघु के स्थान पर गुरु अथवा गुरु के स्थान आ जाता है। जैसे—‘फूटि गये श्रुति ज्ञान के केशव आँखि अनेक विवेक की फूटी।’ में ‘के’ और ‘की’ को लघु होना चाहिए।
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पंगु-ग्राह  : पुं० [कर्म० स०] १. मगर। २. मकर राशि।
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पंगु-पीठ  : पुं० [ब० स०] वह सरकारी जिसपर किसी पंगु व्यक्ति को बैठाकर कहीं ले जाया जाता है।
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पंगुक  : वि०=पंगु या पंगुल।
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पंगो  : स्त्री० [हिं० पाँक] बरसाती नदी द्वारा किनारों पर छोड़ी हुई मिट्टी।
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