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शब्द का अर्थ

पत्त  : पुं०=पत्र।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पत्तंग  : पुं० [सं० पत्रांग, पृषो० सिद्धि] पतंग नामक लकड़ी। बक्कम।
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पत्तन  : पुं० [सं०√पत्+तनन्] १. छोटा नगर। कस्बा। २. मृदंग।
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पत्तन-आयुध  : पुं० [सं० ष० त०] वे आयुध जिनसे नगर की रक्षा की जाती हो।
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पत्तन-क्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] वह पत्तन या कस्बा जिसका शासन तथा व्यवस्था वहाँ के निर्वाचित लोग करते हों। (टाउन एरिया)।
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पत्तन-पाल  : पुं० [सं०पत्तन√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्] पत्तन या कस्बे का प्रधान शासक।
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पत्तर  : पुं० [सं० पत्र] धातु आदि का कागज के समान लचीला तथा पतला टुकड़ा। स्त्री०=पत्तल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पत्तल  : स्त्री० [सं० पत्र, हिं० पत्ता] १. पलाश, महुए आदि के पत्तों को छोटी-छोटी सीकों की सहायता से जोड़कर थाली के सदृश बनाया हुआ गोलाकार आधार। कहा०—जिस पत्तल में खाना, उसी में छेद करना=अपने उपकारक, पालक, संरक्षक आदि का भी अपकार करना। पद—एक पत्तल के खानेवाले=परस्पर घनिष्ठ सामाजिक संबंध रखनेवाले। परस्पर रोटी-बेटी का व्यवहार करनेवाले। सजातीय। जूठी पत्तल=किसी की जूठी हुई भोजन सामग्री। उच्छिष्ट। मुहा०—पत्तल खोलना=जिस काम की प्रतिज्ञा की या शर्त रखी गई हो, उसके पूरे होने पर ही भोजन करना। (दे० नीचे ‘पत्तल बाँधना’) पत्तल पड़ना=भोजन के समय खानोंवालों के लिए पत्तलें क्रम से बिछाई या रखी जाना। पत्तल परसना=(क) खानेवालों के सामने पत्तलें रखना। (ख) उक्त पत्तलों पर भोजन की सामग्री रखना। पत्तल बाँधना=यह प्रतिज्ञा करना या लगाना कि जब तक अमुक काम न हो जायगा, तब तक भोजन नहीं किया जायगा। (किसी की) पत्तल में खाना=(किसी के साथ) खान-पान का संबंध करना या रखना। पत्तल लगाना=पत्तल परसना (दे० ऊपर)। २. पत्तल पर परोसे हुए खाद्य पदार्थ। क्रि० प्र०—लगाना। ३. उतना भोजन जितना एक साधारण आदमी करता हो। जैसे—जो खाने के लिए न आवे, उसके घर पत्तल भेज देना।
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पत्ता  : पुं० [सं० पत्र] [स्त्री० पत्ती] १. पेड़-पौधों आदि के तनों, शाखाओं आदि में लगनेवाले प्रायः हरे रंग के चिपटे लचीले अवयवों में से हर एक जो हवा में लहराता या हिलता-डुलता रहता है। पर्ण। मुहा०—पत्ता खड़कना=(क) किसी प्रकार की गति आदि की आहट मिलना। (ख) किसी प्रकार की आशंका या खटका होना। पत्ता तक न हिलना=हवा का इतना बंद रहना या बिलकुल न चलना कि वृक्षों के पत्ते तक न हिल रहे हों। पत्तातोड़ भागना=जान बचाने या मुँह छिपाने के लिए बहुत तेजी से भागकर दूर निकल जाना। (फल आदि में) पत्ता लगना=पत्ते से सटे रहने के कारण फल में दाग पड़ जाना या उसके कुछ अंश सड़ जाना। पत्ता हो जाना=बहुत तेजी से भागकर अदृश्य या गायब हो जाना। २. उक्त के आधार पर, चाट आदि वे वस्तुएँ जो पत्तों पर रखकर बेची जाती हैं। जैसे—एक पत्ता दही बड़ा इन्हें भी दो। मुहा०—पत्ते चाटना=बाजारी चीजें खाना। ३. पत्ते के आकार का वह चिह्न जो कपड़े, कागज आदि पर छापा, बनाया या काढ़ा जाता है। ४. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना जो बालियों में लटकाया जाता है। ५.ताश की गड्डी में का कोई एक कागज का खंड। ६. सरकारी चलनसार नोट। जैसे—दस रुपए का पत्ता,सौ रुपए का पत्ता। वि० पत्ते की तरह का बहुत पतला और हलका।
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पत्ता-फेर  : पुं०=पटा-फेर।
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पत्ति  : पुं० [सं०√पद् (जाना)+क्तिन्] १. पैदल चलनेवाला व्यक्ति। २. पैदल सिपाही। प्यादा। ३. योद्धा। वीर। ४. नायक। स्त्री० प्राचीन भारतीय सेना की एक इकाई जो सेनामुख की एक तिहाई होती थी।
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पत्ति-काय  : पुं० [ष० त०] १. पैदल सेना। २. पैदल चलने वाला सिपाही।
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पत्ति-गणक  : पुं० [ष० त०] प्राचीन भारत में, वह सैनिक अधिकारी जो पत्ति अर्थात् पैदल सेना की गणना करता था।
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पत्ति-सैन्य  : पुं० [कर्म० स०] दे० ‘पत्ति-काय’।
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पत्तिक  : वि० [सं० पत्ति+कन्] पैदल चलनेवाला।
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पत्तिगण  : पुं०=पत्ति-गणक।
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पत्तिपाल  : पुं० [सं० पत्ति√पाल् (रक्षा)+णिच्=अण्, ष० त०] पत्ति का नायक।
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पत्ती  : स्त्री० [हिं० पत्ता+ई (प्रत्य०)] १. पेड़-पौधों का बहुत छोटा पत्ता। जैसे—गेंदें, नीम या बेले की पत्ती। २. भाँग नामक पौधे में लगने वाले छोटे-छोटे पत्ते जो नशीले होते हैं। (पूरब)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) ३. तमाकू के बड़े-बड़े पत्तों का विशेष प्रक्रिया से बनाया हुआ चूरा जिसे लोग पान आदि के साथ खाते हैं। (पूरब)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) ४. फूल की पंखुड़ी। ५. लकड़ी धातु आदि का छोटा टुकड़ा। ६. लोहे का तेज धार वाला वह छोटा पतला टुकड़ा जिसकी सहायता से दाढ़ी बनाई जाती है। (ब्लेड) ७. ताश का कोई पत्ता। ८. रोजगार, व्यवसाय आदि में होनेवाला साझे का अंश। जैसे—इस व्यवसाय में इनकी भी दो आना पत्ती है।
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पत्तीदार  : वि० [हिं० पत्ती+फा० दार=रखनेवाला] १. (पौधा या वृक्ष) जिसमें पत्तियाँ हों। २. (व्यक्ति) जिसकी किसी व्यापार या सम्पत्ति में पत्ती (भाग या हिस्सा हो)।
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पत्तूर  : पुं० [सं०√पत्त+ऊर्,नि० सिद्धि] १. शांति या शालिंच नामक साक। २. जल-पीपल। ३.पाकर का पेड़। ४. शमी का पेड़। ५.पतंग या बक्कम नामक वृक्ष की लकड़ी।
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