शब्द का अर्थ
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प्रिय :
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वि० [सं०√प्री (तृप्त करना)+क] [भाव० प्रियता, प्रियत्व,] [स्त्री० प्रिया] १. जिसके प्रति बहुत अधिक प्रेम हो। बहुत प्यारा। २. पत्र लेखन में, सौजन्यपूर्वक किसी का आदर, महत्त्व आदि सूचित करने के लिए प्रयुक्त होनेवाला संबोधक विशेषण। जैसे—प्रिय महोदय। ३. मनोहर या शुभ। पुं० पति या प्रेमी। २. जामाता। दामाद। ३. ईश्वर। ४. कार्तिकेय। ५. भलाई। हित। ६. ऋद्धि नामक ओषधि। ७. जीवक नामक ओषधि। ८. कंगनी नामक कदन्न। ९. हरताल। १॰. बैंत। ११. धारा कदंब। ११. एक प्रकार का हिरन। |
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समानार्थी शब्द-
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प्रिय-काम :
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वि० [सं० ब० स०]=प्रियकांक्षी। |
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प्रिय-जन :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. स्नेहपात्र व्यक्ति। २. सगा-संबंधी। ३. सौजन्यपूर्वक श्रोताओं को संबोधित करने के लिए प्रयुक्त होनेवाला शब्द। |
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प्रिय-तोषण :
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पुं० [सं० प्रिय√तुष् (प्रीति)+णिच्+ल्युट्—अन] एक प्रकार का रतिबंध। (काम-शास्त्र) |
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प्रिय-दत्ता :
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स्त्री० [सं० तृ० त० वा च० त० ?] भूमि, विशेषतः दान की जानेवाली भूमि। |
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प्रिय-दर्शन :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० प्रियदर्शना] १. जो देखने में भला और सुखद प्रतीत होता हो। २. मनोहर। सुंदर। पुं० १. तोता। शुक। २. खिरनी का पेड़। ३. एक गंधर्व राजा। |
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प्रिय-दर्शी (र्शिन) :
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वि० [सं० प्रिय√दृश् (देखना)+णिनि] [स्त्री० प्रियदर्शिनी] प्रेमपूर्वक किसी को या दूसरों को देखनेवाला। पुं० अशोक वृक्ष। |
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प्रिय-पात्र :
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वि० [सं० कर्म० स०] प्रेम-पात्र। प्यारा। |
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प्रिय-रूप :
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वि० [सं० ब० स०] मनोहर। सुंदर। |
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प्रिय-वक्ता (क्तृ) :
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वि० [सं० ष० त० सं०]=प्रियभाषी। |
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प्रिय-वर :
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वि० [सं० स० त०] प्रिय या प्यारों में श्रेष्ठ। बहुत प्रिय। (इसका व्यवहार प्रायः पत्रों आदि में संबोधन के रूप में होता है।) |
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प्रिय-व्रत :
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पुं० [सं० ब० स०] १. स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम जो उत्तानपाद का भाई था। वि० जिसे वत प्रिय हो। |
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प्रिय-श्रवा (वस्) :
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पुं० [सं० ब० स०] १. भगवान् कृष्ण। २. विष्णु। |
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प्रिय-सख :
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पुं० [सं० कर्म० स० त० त० वा] खैर का पेड़। |
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प्रिय-संगमन :
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पुं० [सं० ब० स०] वह स्थान जहाँ प्रेमी और प्रेमिका अभिसार करते हों। संकेत-स्थल। |
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प्रिय-संदेश :
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पुं० [सं० प्रिय-सम्√दिश् (बताना)+अण,उप० स० भावे घञ्, ष० त०] चंपा का पेड़। |
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प्रियक :
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पुं० [सं० प्रिय+ककन् वा] १. पीत शालक। पीत साल। २. कदम का पेड़। ३. कँगनी नाम का अन्न। ४. केसर। ५. धारा कदंब। ६. चितकबरा हिरन। ७. शहद की मक्खी। ८. एक प्रकार का पक्षी। |
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प्रियंकर :
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वि० [सं० प्रिय√कृ+खच्, मुम्] प्रसन्न करनेवाला। |
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प्रियकांक्षी (क्षिन्) :
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वि० [सं० प्रिय√काङक्ष्, (चाहना)+णिनि] शुभाभिलाषी। हितैषी। |
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प्रियंकारी :
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स्त्री० [सं० प्रियंकर+ङीष्] १. सफेद कटेरी। २. बड़ी जीवंती। ३. असगंध। |
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प्रियकृत् :
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पुं० [सं० प्रिय√कृ+क्विप् तुक्] विष्णु। |
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प्रियंगु :
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स्त्री० [सं० प्रिय√गम् (जाना)+डु, मुम्] १. कँगनी नाम का अन्न। २. राजिका। राई। ३. पिप्पली। ४. कुटकी। |
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प्रियतम :
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वि० [सं० प्रिय√तमप्] [स्त्री० प्रियतमा] जो सबसे अधिक प्रिय हो। परम प्रिय। उदा०— प्रियतम सुअन सँदेश सुनाओ।—तुलसी। पुं० १. स्त्री० का पति। स्वामी। २. प्रेमी। ३. मोर-शिखा नामक वृक्ष। |
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प्रियतमा :
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स्त्री० [सं० प्रियतम+टाप्] १. पत्नी। २. प्रेमिका। माशूका। वि० प्रियतम का स्त्री० रूप। |
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प्रियता :
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स्त्री० [सं० प्रिय+तल्-टाप्] प्रिय होने की अवस्था, गुण या भाव। (प्रायः समस्त पदों के अंत में प्रयुक्त) जैसे—जन-प्रियता, लोक-प्रियता। |
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प्रियत्व :
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पुं० [सं० प्रिय+त्व]=प्रियता। |
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प्रियद :
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वि० [सं० प्रिय√दा (देना)+क] प्रिय वस्तु देनेवाला। |
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प्रियभाषी (षिन्) :
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वि० [सं० प्रिय√भाष् (बोलना)+णिनि] [स्त्री० प्रियभाषिणी] मधुर वचन बोलनेवाला। मीठी बात कहनेवाला। |
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प्रियंवद :
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वि० [सं० प्रिय√वद् (बोलना)+खच्, मुम्] [स्त्री० प्रियंवदा] प्रिय या मधुर बोलनेवाला। प्रिय-भाषी। पुं० चिड़िया। पक्षी। |
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प्रियंवदा :
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स्त्री० [सं० प्रियंवद+टाप्] एक प्रकार का वर्ण वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक एक नगण, मगण, जगण और रगण होता है और ४-४ पर यति होती है। |
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प्रियवादी (दिन्) :
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पुं० [सं० प्रिय√वद् (बोलना)+णिनि] [स्त्री० प्रियवादिनी] प्रिय वचन कहनेवाला। मधुर-भाषी। |
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प्रिया :
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स्त्री० [सं० प्रिय+टाप्] १. नारी। स्त्री। २. पत्नी। भार्या। ३. प्रेमिका। ४. इलायची। ५. चमेली। मल्लिका। ६. मद्य। शराब। ७. कँघनी नामक अन्न। ८. एक प्रकार का वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में रगण (ऽiऽ) होता है; इसका दूसरा नाम मृगी है। ९. चौदह मात्राओं का एक छंद। |
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प्रियाख्य :
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वि० [सं० प्रिय-आख्या ब० स०] जिसका चित्त उदार और सरल हो। |
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प्रियांबु :
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पुं० [सं० प्रिय-अम्बु ब० स०] १. आम का पेड़ या उसका फल। वि० जिसे जल बहुत प्रिय हो। |
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प्रियाल :
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पुं० [सं० प्रिय√अल् (पर्याप्त होना)+अच्] चिरौंजी का पेड़। |
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प्रियाला :
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स्त्री० [सं० प्रियाल+टाप्] दाख। |
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प्रियोक्ति :
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स्त्री [सं० प्रिया-उक्ति, कर्म० स०] १. मधुर कथन। २. चापलूसी। खुशामद। |
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