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फेरना  : स० [हिं० फेर या फेरा] १. कोई चीज किसी फेरे या घेरे में बार-बार मंडालाकार अथवा किसी धुरी पर चारों ओर घुमाना। जैसे—(ख) माला फेरना (अर्थात् एक-एक दाना या मनका सरकाते हुए बार-बार नीचे करते हुए चक्कर देना)। (ख) चक्की फेरना। (ग) मुग्दर फेरना। (बार-बार घुमाते हुए शरीर के चारों ओर ले जाना और ले आना)। घोड़ा फेरना। (घोड़े की ठीक तरह से चलना सिखाने के लिए खेत या मैदान में मंडलाकार चक्कर लगाने में प्रवृत्त करना)। २. किसी तल या कोई चीज चारों ओर इधर-उधर ऊपर-नीचे ले जाना और ले आना। जैसे—(क) किसी की पीठ या सिर पर हाथ फेरना। (ख) दीवार पर चूना या रंग फेरना। (ग) पान फेरना=पान की गड्डी या ढोली के पानों को बार-बार उलट-पलटकर देखना और सड़े-गले पान निकालकर अलग करना। ३. कोई चीज लेकर चारों ओर या चक्कर सा लगाते हुए सबसे सामने जाना। जैसे—(क) अतिथियों के सामने, पान इलायची फेरना। (ख) नगर में डुग्गी या मुनादी पेरना। ४. जो वस्तु या व्यक्ति जहाँ या जिधर से आया हो, उसे लौटाते हुए वहीं या उसी ओर कर या भेज देना। वापस करना। जैसे—(क) बुलाने के लिए आया हुआ आदमी फेरना। (ख) दुकानदार से लिया हुआ माल या सौदा फेरना। ५. किसी के द्वारा भेजी हुई वस्तु न लेना और फलतः उसे लौटा देना। लौटाना। ६. किसी काम या चीज या बात की गति की दिशा बदलना। किसी ओर घुमाना या मोड़ना। जैसे—(क) गाड़ी या घोड़े को दाहिने या बाएँ फेरना। (ख) कुंजी या पेंच इधर या उधर फेरना। ७. जो चीज जिस दिशा में हो, उसका पार्श्व या मुँह उससे विपरीत दिशा में करना। जैसे—(क) किसी की ओर पीठ फेरना। (ख) किसी की ओर से मुँह फेरना। ८. जैसा पूर्व में रहा हो या साधारणतः रहता हो उससे भिन्न या विपरीत करना। उदाहरण—कूदि धरहिं कपि फेरि चलावहिँ।—तुलसी। ९. किसी चीज या बात की पहले की स्थिति बिलकुल उलट या बदल देना। जैसे—(क) जबान फेरना=बात कहकर मुकर जाना या वचन का पालन न करना। (ख) किसी के दिन फेरना=किसी को बुरी से अच्छी दशा में या प्रतिक्रमात् लाना। १॰. अभ्यास या कंठस्थ करने के लिए बार-बार उच्चारण करना या दोहराना। जैसे—लड़कों का पाठ फेरना-अच्छी तरह याद करने के लिए दोहराना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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