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भग  : पुं० [सं० भज्+घ्] १. सूर्य। २. बारह आदमियों मे से एक। २. चंद्रमा। ४. धन-सम्पत्ति। ऐश्वर्य। ४. इच्छा। कामना। ६. माहात्म्य ७. प्रत्यन्न। ८. धर्म। मोक्ष। १॰. सौभाग्य। ११. कांति। चमक। १२. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र। १३. एक देवता। दक्ष के यज्ञ में वीरभद्र ने इनकी आँख फोड़ दी थी। १४. छह प्रकार की विभूतियाँ, सभ्यगैश्वर्य, सम्यज्वीर्य, सम्यग्यश, सम्यकश्रिव और सम्यज्ञान कहते हैं। स्त्री० [सं० भग्न] स्त्रियों की योनि।
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भग-काम  : वि० [सं० भग√कम्+णिङ्+अण्, उप० स,] संयोगसुख का इच्छुक।
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भग-भक्षक  : पुं० [सं० ष० त०] स्त्रियों का दलाल। कुटना।
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भगई  : स्त्री० [हिं० भगवा] कपड़े का वह लंबा टुकड़ा जिसे पहले कमर में लपेटक फिर लंगोटी की तरह लाँग लगाई जाती है।
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भगण  : पुं० [सं० ष० त०] १. खगोल में ग्रहों का पूरा चक्कर जो ३६॰ अंश का होता है। २. छंदशास्त्र में तीन वर्णों का एक गण जिसका आदि का वर्ण गुरु और अन्त के दोवर्ण लघु होते हैं। जैसे—कारण, पोषण।
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भगत  : वि० [सं० भक्त] [स्त्री० भगतिन] १. भक्ति करनेवाला। भक्त। २. विचारवान्। पुं० १. साधु या संन्यासी। २. वह जो धार्मिक विचार से मांस-मछली आदि न खाता हो। ३. वैष्णव जो तिलक लगाता और मांस आदि न खाता हो। ४. राजपूताने की एक जाति इस जाति की कन्याएँ वेश्यावृत्ति और नाचने-गाने का काम करती है। दे० ‘भगतिया’। ५. होली मे वह स्वांग जो भक्तों आदि का रचा जाता है। इसमें भगतों का उपहास होता है। ६. श्रंगारस प्रधान तथा लोक-कथा पर आश्रित एक प्रकार का संगीत रूपक जो प्राय नौटंकी (देखें) की तरह होता है प्रायः पुरसा भर ऊंचे मंच पर अभिनीत होता है। इसमें प्रायः व्यंग्य और हास्य का भी अच्छा मिश्रण रहता है। ७. वेश्या के साथ बाजा बजानेवाला संगतिया। (राज०) ८. मंत्र-तंत्र से भूत-प्रेत झाड़नेवाला पुरुष। ओझा। सयाना।
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भगत-बाज  : पुं० [हिं० भगत+फा० बाज] १. स्वांग भरकर लौड़ों को अनेक रूप का बनानेवाला पुरुष २. लौड़ों को नाच-गाना सिखानेवाला व्यक्ति।
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भगत-वछल  : वि० दे० ‘भक्त वत्सल’।
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भगतावना  : स०=भुगतना।
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भगति  : स्त्री०=भक्ति।
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भगतिन  : स्त्री० [हिं० भगत] भक्त स्त्री। स्त्री० [हिं० भगतिया का स्त्री०] रंडी। वेश्या।
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भगतिया  : पुं० [हिं० भक्त] [स्त्री० भगतिन] राजपूताने की एक जाति। कहते है कि ये लोग वैष्णव साधुओं की संतान है जो अब गाने-बजाने का काम करते हैं और जिनकी कन्याएं वेश्यावृत्ति करती और भगतिन कहलाती है।
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भगती  : स्त्री०=भक्ति।
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भगदड़  : स्त्री० [हिं० भागना+दौड़ना] संकट की स्थिति में भीड़ का संत्रस्त होकर इधर-उधर भागना। क्रि० प्र०—मचना।
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भगंदर  : पुं० [सं० भाग√दृ (विदारण करना)+णिच्+खश्, मुम्] एक प्रकार का फोड़ा जो गुदावर्त के किनारे होता है। यह नासूर के रूप में होता है और इतना बढ़ जाता है कि इसमें से मल-मूत्र निकलने लगता है। (फिस्च्यूला)।
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भगन  : वि० =भग्न।
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भगनहा  : पुं० [सं० भग्नहा] करेरुआ नामक कंटीली बेल।
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भगना  : अ०=भागना पुं० =भाग्नेय। (भान्जा)।
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भगनी  : स्त्री०=भगिनी। (बहन)।
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भगर  : पुं० [हिं० भगरना] १. सड़ा हुआ अन्न। २. दे० ‘भगल’। पुं० [देश] [स्त्री० भगरी] १. छल। कपट। २. ढोंग। मुहावरा—भगर भरना=ढोंग करना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भगरना  : अ० [सं० विकरण, हिं० बिगड़ना] खत्ते में गर्मी पाकर अनाज का सड़ने लगना। संयो० क्रि०—जाना।
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भगल  : पुं० [देश०] १. छल। कपट। धोखा। २. आडम्बर। ढोंग। ३. इन्दर्जाल। जादू। ४. किसी नकली चीज को असली बताकर अथवा साधारण चीज को बहुमूल्य बना देने का ढोंग रचकर दूसरों को ठगने की कला या क्रिया। जैसे—ताँबे या पीतल को सोना बनाने का प्रलोभन देकर दूसरों को ठगना (स्विंडलिंग)।
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भगलिया  : पुं० [हिं० भगल] १. ढोंगी। पाखंडी। २. कपटी। छलिय। ३. ऐंन्द्रजालिक। जादूगर। ३. वह जो लोगों का विश्वासभाजन बनकर उन्हें ठगता हो। (स्विन्डलर)
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भगली  : पुं० =भगलिया। स्त्री०=भगल।
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भगवंत  : पुं० [सं० भगवत का बहु० भगवन्त] भगवान।
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भगवती  : स्त्री० [सं० भगवत्+ङीष्] १. देवी। २. गौरी ३. सरस्वती। ४. गंगा। ५. दुर्गा।
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भगवत्  : वि० [सं० भग+मतुप्, वत्व] [स्त्री० भगवती] १. ऐश्वर्यशाली। २. पूज्य। मान्य। पुं० १. भगवान। २. विष्णु। ३. शिव। ४. गौतम बुद्ध। ५. कार्तिकेय। ६. सूर्य। ७. जैनों के जिनदेव।
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भगवदभक्त  : पुं० [सं० भगवत-भकत्, ष० त०] १. भगवान् का भक्त। ईश्वर भक्त। २. विष्णु का भक्त। ३. दक्षिण भारत के वैष्णवों का एक सम्प्रदाय।
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भगवदभक्ति  : स्त्री० [सं० भगवत-विग्रह, ष० त०] भगवान् का भक्ति।
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भगवदीय  : वि० [सं० भगवत+छ-ईय] १. भगवदभक्त। २. भगवत्-संबंधी।
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भगवद्लीला  : स्त्री० [सं० भगवत-लीला, ष० त] ईश्वरीय लीला।
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भगवद्विग्रह  : पुं० [सं० भगवत-विग्रह, ष० त०] भगवान् का विग्रह या मूर्ति।
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भगवा  : पुं० [हिं० भक्त] एक प्रकार का रंग जो गेरू के रंग की तरह का लाल होता है। वि० उक्त प्रकार के रंग के रँगा हुआ। जैसे—भगवे कपड़े, भगवा झंडा।
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भगवान  : वि०=भाग्यवान्।
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भगवान् (वत्)  : वि० [सं० दे० भगवत्] १. ऐश्वर्यशाली। २. पूज्य। मान्य। ३. कुछ क्षेत्रों में पारिभाषिक रूप में ऐश्वर्य, बल यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य से सम्पन्न। पुं० १. ईश्वर। परमेश्वर। २. शिव। ३. विष्णु। ४. गौमतबुद्ध। ५. जिनदेव। ६. कार्तिकेय। ७. कोई पूज्य और आदरणीय व्यक्ति। जैसे—भगवान वेदव्यास।
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भगहर  : स्त्री०=भगदड़। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भगहा (हन्)  : पुं० [सं० भग√हन् (मारना)+क्विप्] १. शिव। २. विष्णु।
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भगाई  : स्त्री० [हिं० भागना] १. भागने की क्रिया या भाव। २. भगदड़।
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भगांकुर  : पुं० [सं० भग-अंकुर, ष० त०] अर्श रोग। बवासीर।
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भगाड़  : पुं० [?] पोली जमीन के धँसने या बैठ जाने के फलस्वरूप होनेवाला गड्ढा।
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भगाना  : स० [सं० व्रज] १. किसी को भागने में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिससे कोई भागे। २. बच्चे स्त्री आदि को उसके अभिभावकों से चोरी उठाकर या फुसलाकर कहीं ले जाना। (ऐब्डक्शन) ३. दूर करना। हटाना। अ०=भागना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भगाल  : पुं० [सं०√भज् (सेवा कनरा)+कालन्, ज-ग] (मनुष्य की) खोपड़ी।
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भगाली  : वि० [हिं० भागल+इनि] १. भगाल-संबंधी। २. खोपड़ी धारण करनेवाला। पुं० शिव।
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भगास्त्र  : पुं० [सं० भग-अस्त्र, मध्य० स०] प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र।
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भगिना  : पुं० =भाग्नेय (भान्जा)।
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भगिनिका  : स्त्री० [सं० भगिनी+कन्+टाप्, इत्व] छोटी बहन।
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भगिनी  : स्त्री० [सं० भग+इनि+ङीष्] १. बहन। २. भाग्यवती। स्त्री।
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भगिनी-पति  : पुं० [सं० ष० त०] बहनोई।
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भगिनीय  : पुं० [सं० भगिनी+छ-ईय] बहन का लड़का। भगिनेय। भांजा।
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भगीरथ  : पुं० [सं० भ-गीर, द्व० स०, भगीर-रथ, ब० स०] अयोध्या के एक सूर्यवंशी राजा जो राजा सागर के पर-पोते थे तथा जिन्होने तपस्या करके स्वर्ग से गंगा नदी की अवतारना कराई थी। वि० [सं०] भागीरथ की तपस्या के समान बहुत बड़ा, भारी या विशाल। जैसे—भागीरथ प्रयत्न।
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भगीरथ-सुता  : स्त्री० [सं० ष० त०] गंगा।
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भगेड़  : वि० =भगेलू।
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भगेलू  : वि० [हिं० भागना+एलू (प्रत्यय)] १. जो कहीं से छिपकर भागा हो। भागा हुआ। २. जो काम करने पर भाग जाता हो। कायर।
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भगोड़ा  : पुं० [हिं० भागना+ओड़ा (प्रत्य)] १. वह जो कहीं से छिप या डरकर भाग गया हो। २. वह जो दण्ड भोगने के भय से कहीं भाग गया हो। (ऐब्सकांडर)। ३. कायर या डरपोक व्यक्ति।
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भगोल  : पुं [सं० ष० त०] नक्षत्र चक्र। खगोल।
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भगौता  : पुं०=भागवत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भगौती  : स्त्री०=भगवती।
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भगौहाँ  : वि० [हिं० भागना+औहाँ (प्रत्यय)] १. जिसमें भागने की प्रवृत्ति हो। २. कायर। डरपोक। वि० =भगवा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भग्गा  : वि० [हिं० भागना] (पशु या पक्षी) जो प्रतिद्वंन्द्वी से डरकर या पराजित होकर भाग गया हो।
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भग्गी  : स्त्री०=भगदड़
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भग्गुल  : पुं० =भगोड़ा।
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भग्गू  : वि० [हिं० भागना+ऊ (प्रत्यय)] १. जो विपत्ति देखकर भागता हो। भागनेवाला। २. कायर। डरपोक।
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भग्न  : वि० [सं०√भज् (टूटना)+क्त] १. टूटा हुआ। खंडित। २. हारा हुआ। पराजित। पुं० दे० ‘विभंग’।
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भग्न-दूत  : पुं० [सं० कर्म० स०] प्राचीन भारत में रणक्षेत्र से हारकर बागी हुई सेना जो राजा के पराजय को समाचार देने आती थी।
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भग्न-पाद  : पुं० [सं० ब० स०] फलित ज्योतिष में पुनर्वस,उत्तराषाढ़ कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वभाद्रपद और विशाखा ये छह नक्षत्र जिनमें से किसी एक मनुष्य के मरने से प्रिपाद दोष लगता है और धर्मशास्त्र के अनुसार जिसकी सान्ति करना आवश्यक होता है।
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भग्न-मना (नस्)  : वि० [सं० ब० स०] जिसका मान टूट गया हो। हतोत्साह।
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भग्न-मान  : वि० [सं० ब० स०] जिसका मान नष्ट हो चुका हो। तिरस्कृत।
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भग्नात्मा (त्मन्)  : पुं० [भगन्-आत्मन्, ब० स] चन्द्रमा।
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भग्नावशेष  : पुं० [सं० भग्न-अवेशष, ष० त०] १. किसी टूटी-फूटी चीज के बचे हुए टुकड़े। २. किसी टूटे-फूटे मकान या उजड़ी हुई बस्ती का बचा हुआ अंश। खँडहर।
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भग्नांश  : पुं० [सं० भग्न-अंश० कर्म० स०] मूल द्रव्य का कोई अलग किया हुआ भाग का अंश।
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