शब्द का अर्थ
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					मनु					 :
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					पुं० [सं०√मन्+उ] १. ब्रह्मा के पुत्र जो मनुष्यों के मूल पुरुष माने जाते हैं। विशेष—(क) वेदों में मनु को ही यज्ञों का आदि प्रवर्तक भी माना गया है। पुराणों में यह भी कहा गया है कि जब एक बार महाप्रलय के समय सारी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब मनु ही एक नाव पर चढ़कर डूबने से बचे थे; और उन्हीं से सारी मानव जाति उत्पन्न हुई थी। पुराणों में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक महाप्रलय के उपरांत मनु ही मानव जाति की उत्पत्ति करते हैं। इसीलिए प्रत्येक मन्वन्तर के अलग-अलग मनुओं के नाम ये हैं, स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्षसार्विण, ब्रह्मा सार्विण, धर्मसावर्णि, रुद्रसावणि, देवसार्वणि और इन्द्रसार्वणि, (ख) इस्लामी, मसीही आदि सभी पौराणिक कथा में मनु के समकक्ष नूह और नोहा है। २. विष्णु। ३. ब्रह्मा। ४. अन्तःकरण। ५. अग्नि। ६. मंत्र। ७. एक रुद्र का नाम। ८. जैनों के एक जिन देव। ९. चौदह मन्वन्तरों के मनुओं के आधार पर १४ की संख्या का सूचक शब्द। स्त्री० १. मनु की स्त्री०। मनावी। २. वन-मेथी। अव्य०=मनहुँ (मानों)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मनु-जात					 :
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					वि० [सं० पं० त०] मनु से उत्पन्न। पुं० मनुष्य।				 | 
			
			
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					मनु-युग					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] मन्वंतर।				 | 
			
			
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					मनु-श्रेष्ठ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।				 | 
			
			
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					मनु-स्मृति					 :
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					स्त्री० [सं० मध्य० स०] मनु द्वारा प्रणीत एक प्रसिद्ध ग्रंथ जिसकी गिनती धर्मशास्त्र में होती है। मानव-धर्मशास्त्र।				 | 
			
			
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					मनुआँ					 :
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					पुं०=मानव (मनुष्य)। पुं० [?] देव कपास। नरमा।				 | 
			
			
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					मनुख					 :
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					पुं०=मनुष्य।				 | 
			
			
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					मनुग					 :
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					पुं० [सं० मनु√गम् (प्राप्त होना)+ड] प्रियव्रत के पौत्र और द्युतिमान के पुत्र का नाम।				 | 
			
			
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					मनुज					 :
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					पुं० [सं० मनु [जन् (उत्पन्न करना)+ड] [स्त्री० मनुजा, मनुजी] मनुष्य।				 | 
			
			
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					मनुजाद					 :
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					वि० [सं० मनुजअद् (खाना)+अश्] नप-भक्षक। मनुष्यों को खानेवाला पुं०=राक्षस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मनुजाधिप					 :
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					पुं० [सं० मनुज-अधिप, ष० त०] राजा।				 | 
			
			
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					मनुष					 :
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					पुं० [सं० मनुष्य] १. मनुष्य। २. स्त्री० का पति। स्वामी।				 | 
			
			
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					मनुषी					 :
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					स्त्री० [सं० मनुष्य+ङीष्, य लोप] स्त्री।				 | 
			
			
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					मनुष्य					 :
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					पुं० [सं० मनु+यत्, षुक्-आगम] जरायुज जाति का एक स्तनपायी प्राणी जो अपने मस्तिष्क या बुद्धि बल की अधिकता के कारण सब प्राणियों में श्रेष्ठ है। आदमी। नर।				 | 
			
			
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					मनुष्य-गणना					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] जन-गणना।				 | 
			
			
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					मनुष्य-गति					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] जैन शास्त्रानुसार वह कर्म जिसे करने से मनुष्य बार बार मरकर मनुष्य का ही जन्म पाता है। ऐसे कर्म पर-स्त्री-गमन, माँस-भक्षण चोरी आदि बतलाये गये हैं।				 | 
			
			
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					मनुष्य-धर्मा (र्मन्)					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] कुबेर।				 | 
			
			
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					मनुष्य-यज्ञ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] मनुष्य, विशेषतः अभ्यागत व्यक्ति का किया जानेवाला आदत-सत्कार। अतिथियज्ञ। नृयज्ञ।				 | 
			
			
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					मनुष्य-रथ					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] प्राचीन काल में वह रथ जिसे मनुष्य (पशु नहीं) खींचते थे। नर-रथ।				 | 
			
			
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					मनुष्य-लोक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] यह जगत् जिसमें मनुष्य (देवता नहीं) रहते हैं। मर्त्य-लोक। भूलोक।				 | 
			
			
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					मनुष्य-शीर्ष					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार की जहरीली मछली जिसका सिर आदमी के सिर की तरह होता है (टेटाओडन)।				 | 
			
			
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					मनुष्यकार					 :
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					पुं० [सं० मनुष्य+कार] उद्योग। प्रयत्न।				 | 
			
			
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					मनुष्यता					 :
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					स्त्री० [सं० मनुष्य+तल्+टाप्] १. मनुष्य होनी की अवस्था या भाव। आदमीपन। २. सज्जन मनुष्य के लिए सभी आवश्यक और उपयोगी गुणों का समूह। २. वे बातें जो किसी मनुष्य को शिक्षित और सभ्य समाज में उठने-बैठने के लिए आवश्यक होती हैं।				 | 
			
			
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					मनुष्यत्व					 :
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					पुं० [सं० मनुष्य+त्व] १. मनुष्य होने की अवस्था या भाव। मनुष्यता। २. मनुष्यों के लिए आवश्यक और उपयुक्त गुणों (दया, प्रेम, सहृदयता आदि) से युक्त होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					मनुस (ा)					 :
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					पुं० [सं० मनुष्] [भाव० मनुसाई] १. आदमी। मनुष्य। २. नौ-जवान। युवक। ३. स्त्री० का पति। स्वामी। ४. पौरुष से युक्त व्यक्ति। मर्द।				 | 
			
			
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					मनुसाई					 :
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					स्त्री० [हिं० मनुस+आई (प्रत्य०)] १. मनुष्यत्व। २. मनुष्यों का फलतः शिष्टातापूर्ण व्यवहार। ३. पौरुष।				 | 
			
			
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					मनुसाना					 :
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					अ० [हिं० मनुस] १. पौरुष का भाव जगना। २. क्रोधान्वित होना। स० १. किसी में पौरुष का भाव जगाना। २. क्रुद्ध या क्रोधित करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मनुहर					 :
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					स्त्री०=मनुहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					मनुहार					 :
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					स्त्री० [हिं० मान+हरना] १. किसी रूठे हुए व्यक्ति को मनाने तथा उसका मान छुड़ाने के लिए की जानेवाली विनती या मीठी-मीठी बातें। २. इस प्रकार की विनती करने की क्रिया, प्रयत्न या भाव। ३. खुशामद। ४. तुष्टि। तृप्ति। ५. आदर-सत्कार।				 | 
			
			
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					मनुहारना					 :
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					स० [हिं० मनुहार] १. रूठे हुए व्यक्ति से मीठी-मीठी बातें करके उसे प्रसन्न करने का प्रयत्न करना। मनाना। २. निवेदन, प्रार्थना या विनती करना। ३. आदर-सत्कार करना। ४. खुशामद करना।				 | 
			
			
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					मनुहारी					 :
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					वि० [हिं० मन+हरना] [स्त्री० मनुहारिन] जो बात-बात पर रूठता हो तथा जिसे प्रसन्न करने के लिए बार बार मनुहारी करनी पड़ती हो। उदा०—पासा सार खेलि कित कौन मनुहारिन सो, जीति मनुहारि हारि आयो हो।—पद्माकर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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