शब्द का अर्थ
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					मन्य					 :
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					वि० [सं०√समास के अन्त में प्रयुक्त होनेवाला पद] समस्त पदों के अन्त में अपने आपको मानने या समझनेवाला। जैसे—अहंमन्य, पंडित-मन्य।				 | 
			
			
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					मन्या					 :
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					स्त्री० [सं०√मन्+क्यप्+टाप्] गरदन की एक नस।				 | 
			
			
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					मन्या-स्तंभ					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का रोग जिसमें गले पर की मन्या नामक शिरा कड़ी हो जाती है और गरदन इधर-उधर नहीं, घूम सकती और भीषण ज्वर होता है। गरदन तोड़ बुखार (मेनेजाइटिस)।				 | 
			
			
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					मन्यु					 :
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					पुं० [सं०√मन् (ज्ञान करना)+युच्] १. स्त्तोत्र। २. कर्म। ३. दुःख या शोक। ४. यज्ञ। ५. क्रोध। गुस्सा। ६. अभिमान। अहंकार। ७. दीनता। ८. अग्नि। ९. शिव।				 | 
			
			
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					मन्यु-देव					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. क्रोध का अभिमानी देवता। २. एक प्राचीन ऋषि।				 | 
			
			
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					मन्युमान् (मत्)					 :
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					वि० [सं० मन्यु+मतुप्] क्रोध, अहंकार या दैन्य से युक्त (व्यक्ति)।				 | 
			
			
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