शब्द का अर्थ
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					मर्म					 :
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					पुं० [सं०√मृ+मणिन्] १. स्वरूप। २. भेद। रहस्य। ३. संधि-स्थान। ४. किसी बात के अन्दर छिपा हुआ तत्त्व। ५. प्राणियों के शरीर में वह स्थान जहाँ आघात पहुँचने से अधिक वेदना होती है और मृत्यु तक की सम्भावना होती है। ६. हृदय।				 | 
			
			
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					मर्म-प्रहार					 :
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					पुं० [सं० स० त०] ऐसा आघात या प्रहार जो मर्म स्थान पर हो।				 | 
			
			
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					मर्म-भेद					 :
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					पुं० [ष० त०] १. मर्मस्थल पर किया जानेवाला आघात। २. दूसरों के भेद या रहस्य का किया जानेवाला उद्घाटन।				 | 
			
			
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					मर्म-भेदक					 :
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					वि० [ष० त०] १. मर्म भेदनेवाला। २. हृदय विदारक।				 | 
			
			
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					मर्म-भेदन					 :
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					पुं [ष० त०] १. मर्मस्थल पर आघात करना। २. बाण। तीर।				 | 
			
			
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					मर्म-भेदी (दिन्)					 :
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					वि० [सं० मर्म√भिद् (फाड़ना)+णिनि] १. मर्म स्थल अर्थात् हृदय पर आघात करनेवाला (शब्द या बात) २. दुःखी तथा संतृप्त करनेवाला।				 | 
			
			
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					मर्म-वचन					 :
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					पुं० [ष० त०] ऐसा कथन, बात या वचन जो मर्म या हृदय पर आघात करनेवाला हो।				 | 
			
			
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					मर्म-वाक्य					 :
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					पुं० [ष० त०] १. रहस्य की बात। २. दे० ‘मर्मवचन’।				 | 
			
			
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					मर्म-विदारण					 :
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					पुं० [ष० त०] मर्मच्छेदक।				 | 
			
			
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					मर्म-स्थल					 :
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					पुं० [ष० त०] १. शरीर का कोई ऐसा अंग जिस पर आघात लगने से बहुत अधिक पीड़ा होती है और जिससे मनुष्य मर भी सकता है। जैसे—अण्डकोश, कंठ, कपाल आदि। २. हृदय जिस पर किसी की बात का आघात लगता है।				 | 
			
			
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					मर्म-स्थान					 :
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					पुं० [स० त०] मर्म का स्थान अर्थात् मर्म। (देखें)				 | 
			
			
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					मर्मग					 :
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					वि० [सं० मर्म√गम् (प्राप्त होना)+ड] नुकीला तथा तीव्र।				 | 
			
			
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					मर्मघाती (तिन्)					 :
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					वि० [सं० मर्म√हन् (मारना)+णिनि, न्-त्] मर्म पर आघात करनेवाला।				 | 
			
			
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					मर्मघ्न					 :
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					वि० [मर्म√हन् (मारना)+टक्, ह-घ] अत्यन्त कष्टप्रद।				 | 
			
			
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					मर्मचर					 :
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					पुं० [सं० मर्म√हन् (प्राप्त होना)+ट] हृदय।				 | 
			
			
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					मर्मच्छिदक					 :
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					वि० [सं० ष० त०] मर्मभेदक। मर्म भेदनेवाला।				 | 
			
			
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					मर्मच्छेदन					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. प्राणघातक। जान लेना। २. मर्मस्थल पर ऐसा आघात करना जिससे बहुत अधिक कष्ट हो।				 | 
			
			
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					मर्मच्छेदी (दिन)					 :
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					वि० [सं० मर्म√छिद् (छेदना)+णिनि] मर्मछेदी।				 | 
			
			
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					मर्मज्ञ					 :
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					वि० [सं० मर्म√ज्ञा+क] किसी बात का मर्म या गढ़ रहस्य जानेवाला।				 | 
			
			
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					मर्मर					 :
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					पुं० [सं०√मृ+अरन्, मुट्-आगम] १. पत्तों के हिलने से होनेवाली खड़खड़ाहट। २. ऐसा कलफदार कपड़ा जिससे मर्मर शब्द निकलता हो। पुं० दे० ‘मर्मर’।				 | 
			
			
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					मर्मरित					 :
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					भू० कृ० [सं० मर्मर+इतच्] मर्मर ध्वनि करता हुआ।				 | 
			
			
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					मर्मरी					 :
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					स्त्री० [सं० मर्मरी+ङीष्] १. एक तरह का देवदारु। २. हलदी।				 | 
			
			
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					मर्मरीक					 :
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					पुं० [सं० मर्मर+ईकन्] १. निर्धन व्यक्ति। २. दुष्ट व्यक्ति।				 | 
			
			
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					मर्मविद्					 :
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					वि० [सं० मर्म√विद् (जानना)+क्विप्] मर्म या तत्त्व जाननेवाला। मर्मज्ञ।				 | 
			
			
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					मर्मवेदी (दिन्)					 :
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					वि० [सं०√मर्म√विद् (जानना)+णिनि] मर्मज्ञ।				 | 
			
			
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					मर्मवेधी (धिन्)					 :
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					वि० [सं० मर्म√विध् (छेदना)+णिनि] मर्म भेदी।				 | 
			
			
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					मर्मस्पर्शी (र्शिन्)					 :
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					वि० [सं० मर्म√स्पृश्+णिनि] [स्त्री० मर्मस्पर्शिनी, भाव० मर्मस्पर्शिता] मर्म को स्पर्श करने अर्थात् उस पर प्रभाव डालनेवाला।				 | 
			
			
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					मर्माघात					 :
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					वि० [सं० मर्म-आघात, स० त०] मर्म-स्थल पर होनेवाला आघात। हृदय पर लगने-वाली गहरी चोट।				 | 
			
			
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					मर्मातिग					 :
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					वि० [सं० मर्म√अति-गम् (जाना)+ड] भेद या रहस्य जानने के लिए की जानेवाली खोज।				 | 
			
			
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					मर्मान्तक					 :
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					वि० [सं० मर्म-अंतक, ष० त०] मर्म तक पहुँचकर उस पर अनिष्ट प्रभाव डालनेवाला। मर्मभेदक।				 | 
			
			
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					मर्माहत					 :
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					वि० [सं० मर्म-आहत, स० त०] जिसके मर्म अर्थात् हृदय को कड़ी चोट पहुँची हो।				 | 
			
			
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					मर्मिक					 :
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					वि० [सं० मर्म+ठन्—इक] मर्मविद्। मर्मज्ञ।				 | 
			
			
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					मर्मी					 :
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					वि० [सं० मर्म] मर्म या रहस्य जाननेवाला।				 | 
			
			
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					मर्मोद्धाटन					 :
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					पुं० [सं० मर्म—उद्धाटन, ष० त०] मन या रहस्य प्रकट करना।				 | 
			
			
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