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वक्र  : वि० [सं०√वंक् (टेढ़ा होना)+रन्,पृषो० नलोप] [भाव० वक्रता] १. जो आड़े या बेड़े बल में हो। टेढ़ा या तिरछा। ‘ऋजु’ का विपर्याय। २. झुका हुआ। नत। ३. कुटिल और धूर्त। ४. त्रिपुर नामक असुर। ५. दे० ‘वक्र-गति’। पुं० १. नदी का मोड़। बंकर। २. मंगल ग्रह। ३. शनैश्चर ग्रह। ४. रुद्र।
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वक्र-गति  : वि० [सं० ब० स] १. टेढ़ी-मेढ़ी चालवाला। २. कुटिल। ३. उलटी गतिवाला (ग्रह)। पुं० १. ग्रह लाघव के अनुसार वे ग्रह जो सूर्य से पाँचवें, छठें, सातवें और आठवें हों। इस प्रकार मंगल ३६ दिन,बुध २१ दिन बृहस्पति १॰॰. दिन,शुक्र १२ दिन और शनि १८४ दिन वक्री होता है। २. मंगल ग्रह।
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वक्र-ग्रीव  : पुं० [सं० ब० स०] ऊँट।
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वक्र-चंचु  : पुं० [सं० ब० स०] तोता।
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वक्र-ताल  : पुं० [सं० ब० स०] वक्रनाल (बाजा)।
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वक्र-तुंड  : पुं० [सं० ब० स०] १. गणेश। २. तोता।
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वक्र-दंष्ट्र  : पुं० [सं० ब० स०] सूअर।
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वक्र-दृष्टि  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. टेढ़ी दृष्टि। २. क्रोध आदि से युक्त दृष्टि। ३. मन्द दृष्टि। वि० १. (व्यक्ति) जिसकी दृष्टि पड़ने से कुछ अमंगल होता या हो सकता हो० २. क्रोधपूर्ण दृष्टि।
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वक्र-धर  : पुं० [सं० ष० त०] द्वितीया का वक्र चन्द्रमा धारण करनेवाले शिव।
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वक्र-नक्र  : पुं० [सं० उपमति, स०] १. चुगलखोर। २. तोता।
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वक्र-नाल  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का पुराना बाजा जो मुँह से फूँककर बजाया जाता था।
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वक्र-नासिक  : वि० [सं० ब० स०] टेढ़ी नाकवाला। पुं०=उल्लू।
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वक्र-पुच्छ  : पुं० [सं० ब० स०] कुत्ता।
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वक्र-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] १. अगस्त का पेड़। २. पलास।
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वक्रअत  : स्त्री० [अ०] १. शक्ति। बल। ताकत। २. महत्व। ३. मान-मर्यादा।
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वक्रगल  : पुं० [सं० ब० स०] फूँककर बजाया जानेवाला पुरानी चाल का एक बाजा।
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वक्रगामी (मिन्)  : वि० [सं० वक्र√गम् (जाना)+णिनि] १. जिसकी गति वक्र हो। टेढ़ी चालवाला। २. कुटिल और धूर्त।
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वक्रता  : स्त्री० [सं० वक्र+तल्-टाप्] १. वक्र होने की अवस्था, गुण या भाव। टेढ़ापन। २. साहित्य में किसी रचना, वस्तु या विषय के निर्वचन और उसकी वर्णन-शैली में रहनेवाला वह अनोखा बाँकापन या उच्च कोटि का सौन्दर्य जो परम उत्कृष्ट प्रतिभा का परिचायक होता है। जैसे– वस्तु-वक्रता, वाक्य-वक्रता।
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वक्रांग  : वि० [सं० वक्र-अंग, ब० स०] जिसका कोई अंग टेढ़ा हो। पुं० १. हंस नाम का पक्षी। २. सर्प। साँप।
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वक्रित  : भू० कृ० [सं० वक्र+इतच्] टेढ़ा किया हुआ।
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वक्रिम  : वि० [सं० वंच (गमनादि)+क्रिमच्] १. टेढ़ा। २. कुटिल।
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वक्रिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० वक्र+इमनिच्]=वक्रता।
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वक्री (त्रिन्)  : वि० [सं० वक्र+इनि, दीर्घ, नलोप] जो अपना सीधा मार्ग छोड़कर इधर-उधर हट गया हो या पीछे की ओर मुड़ने लगा हो। जैसे–अब मंगल ग्रह वक्री होगा।
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वक्रोक्ति  : स्त्री० [सं० वक्र-उक्ति, कर्म० स०] १. किसी प्रकार की वक्रता से युक्त कोई चमत्कारपूर्ण उक्ति। २. काकु अलंकार से युक्त उक्ति। ३. साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें एक अभिप्राय से कही हुई बात का काकु या श्लेष के आधार पर कुछ और ही अभिप्राय निकलता या निकाला जाता है। यह अर्थ परिवर्तन शब्दों के आधार पर ही होता है, इसलिए कुछ आचार्य इसे शब्दालंकार मानते हैं।
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वक्रोक्ति-गर्विता  : स्त्री० [सं०]=गर्विता (नायिका)।
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वक्रोष्ठिका  : स्त्री० [सं० वक्र-ओष्ठ, ब० स०+कन्+टाप्,इत्व] मंद हँसी। मुसकान।
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