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व्याज  : पुं० [सं० वि√अज् (गमनादि)+घञ्] १. मन में कोई बात रख कर ऊपर से कुछ और करना या कहना। छल। कपट। फरेब। धोखा। जैसे—व्याज-निन्दा, व्याज-स्तुति। आदि। २. बाधा। विघ्न। ३. देर। विलंब। पुं०=व्याज। (सूद)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
व्याज-निंदा  : स्त्री० [सं० तृ० त०] १. छल या बहाने से की जानेवाली किसी की निंदा। २. साहित्य में एक अलंकार जो उस समय माना जाता है जब किसी एक की निंदा इस प्रकार की जाती है कि उससे किसी दूसरे की निंदा प्रतीत होने लगती है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
व्याज-स्तुति  : स्त्री० [सं० तृ० त०] १. ऐसी स्तुति जो व्याज या किसी बहाने से की जाय और ऊपर से देखने में स्तुति न जान पडे़ फिर भी उसकी स्तुति की हो। २. साहित्य में एक अलंकार जो उस समय माना जाता है जब कोई कथन अभिधा शक्ति की दृष्टि से निंदा सूचक होता है परन्तु जिसका वाक्यार्थ वस्तुतः स्तुतिपरक होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
व्याजोक्ति  : स्त्री० [सं० तृ० त०] १. वह कथन जिसमें किसी प्रकार का व्याज अर्थात् छल हो। कपट-भरी बात। २. साहित्य में एक अर्थालंकार जो उस समय माना जाता है जब कोई ऐसी बात छिपाने का प्रयत्न किया जाता है जिसका रहस्य वस्तुतः खुल चुका हो।
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