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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

इमीलिया : क्या वे ईर्ष्यालु नहीं हैं?

डैसडेमोना : ऐसा तो मैंने कभी नहीं देखा! निश्चय ही रूमाल में कुछ अद्भुत बात अवश्य है। मुझे उसके खो जाने का अत्यन्त खेद है।

इमीलिया : एक-दो बरस में मनुष्य की असली प्रकृति का परिचय नहीं हो जाता। सारे पुरुष पेट हैं और सारी स्त्रियाँ भोजन हैं। वे बड़ी भूख से हमें खाते हैं और जब पेट भर जाता है तब हमें छोड़ देते हैं। वह लो! मेरे पति और कैसियो आ रहे हैं।

(कैसियो और इआगो का प्रवेश)

इआगो : और कोई तरीका नहीं है। बस ये ही कर सकती हैं। लो तुम्हारा सौभाग्य! जाओ प्रार्थना करो!

डैसडेमोना : कैसे हो वीर कैसियो! क्या समाचार है?

कैसियो : देवी! मेरी वही प्रार्थना है। मैं अनुनय करता हूँ कि आपकी सशक्त सहायता से मैं फिर स्वामी का प्रेम और विश्वास प्राप्त कर सकूँ। मैं उनका हृदय से सम्मान करता हूँ। मैं तो बुरे से बुरे परिणाम को भी शीघ्र जानना चाहता हूँ। यदि मेरा अपराध इतना बड़ा है कि न मेरी अतीत की सेवाएँ काम आती हैं, न वर्तमान का दुर्भाग्य ही, न भविष्य में मर्यादा से रहने की मेरी प्रतिज्ञा ही, न मेरा पश्चात्ताप ही मुझे उनके प्रेम का पात्र फिर से बना सकता है, तो कम से कम इतना अधिकार तो मैं चाहता ही हूँ कि इस विषय में जो भी हो वह तो मुझे बता दिया जाए! उससे यह तो होगा कि मैं सन्तुष्ट हो जाऊँगा और परिस्थितियों के सामने समर्पण कर दूँगा, चाहे भाग्य ने मेरे लिए कैसी भी भिक्षा क्यों न आयोजित कर रखी हो!

डैसडेमोना : हाय वीर कैसियो! मैंने स्वामी से प्रार्थना की, किन्तु उन पर प्रभाव नहीं पड़ा। वे वैसे नहीं हें जैसे पहले थे। यदि अपनी बदलती प्रकृति के अनुरूप ही उनकी आकृति में भी परिवर्तन आ गया होता तो मैं उन्हें पहचान भी नहीं पाती। तुम्हारी ओर से मैं जो कुछ कह सकती थी वह सब कह चुकी हूँ और बार-बार कहने से वे क्रुद्ध ही हुए हैं। इसलिए तुम्हें कुछ दिन धैर्य से काम लेना चाहिए। जो कुछ कर सकती हूँ अवश्य करूँगी। तुम्हारे लिए इतना करूँगी जितना अपने लिए भी नहीं करती। बस अब यही समझ लो!

इआगो : क्या स्वामी आज अत्यन्त क्रुद्ध हैं?

इमीलिया : वे यहाँ से बहुत ही अस्त-व्यस्त-से असन्तुष्ट-से गए हैं।

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