बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी आओ बच्चो सुनो कहानीराजेश मेहरा
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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।
राजू के पापा ने देखा की बस आ गई है तो वो भाग कर चढ़ गए लेकिन राजू थका होने के कारण बड़ी मुश्किल से चढ़ पाया। अगले दिन राजू के पापा ने कहा कि राजू स्कूल से कल सीधे मेरे ऑफिस आना, मैं कुछ सामान दूंगा उसे लाकर अपने बाजार से ठीक करवाना है क्योंकि मैं शाम को लेट पहुँचता हूँ और सारी दुकाने बंद हो जाती हैं। राजू ने हां भरी।
अगले दिन राजू अपने पापा के ऑफिस पहुंचा। उनका ऑफिस थर्ड फ्लोर पर था। राजू लिफ्ट से जाने लगा तो लिफ्ट पर ब्रेकडाउन का बोर्ड लगा था। राजू अब परेशान हो गया था। उसने सीडियों से ऊपर चढ़ना शुरू किया तो ऊपर पहुँचते-पहुँचते वो बुरी तरह हांफने लगा और अब वो सोच रहा था कि यदि वह रोज कसरत और योग करता तो उसका ये हाल न होता।
वो ऊपर पहुंचा ही था कि एक जोर की आवाज सुनाई दी कि भागो ऑफिस में आग लगी है।
ये सुनकर सारे लोग भागने लगे। राजू की हालत ख़राब थी, वो तो अब चलने की हालत में भी नहीं था। उसने घबरा कर सीढ़ियों से नीचे उतरने की कोशिश की तो उससे चला नहीं गया।
अब केवल उसके आंसू आने बाकी थे। वो फिर भी हिम्मत करके जोर से चिल्लाया "बचाओ"। लेकिन वहाँ सुनने वाला कोई नहीं था क्योंकि सारे लोग नीचे चले गए थे।
इतने में उसने देखा कि उसके पापा अन्दर से आये और राजू से बोले, "देखा राजू, इसी इमरजेंसी के लिए हमें फिट रहना चाहिए। तभी हम अपना बचाव कर सकेंगे और दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकेंगे। मैंने तुम्हें इसीलिए अपने ऑफिस बुलाया था क्योंकि आज यहाँ पर सेफ्टी का मोकड्रिल होना था और मैंने ही उनसे तुम्हारे ऊपर आने पर ऐसा करने को कहा ताकि तुम समझ सको कि फिट रहना कितना आवश्यक है।"
राजू अब काफी शर्मिंदा था और उसने अपने पापा से वादा किया कि आज के बाद वो जल्दी उठेगा और अपने शरीर को कसरत और योग से तंदरुस्त बनाएगा। उसके पापा बड़े खुश थे कि वो आखिर में राजू को मनाने में कामयाब रहे।
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