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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...
सोफिस्ट दार्शनिक
सुकरात के प्रारंभिक काल में ज्ञान के साधन सीमित थे। ऐसे में विद्वान विचारकों की प्रसिद्धि शीघ्र फैल जाती थी। इन प्रसिद्ध विचारकों की प्रसिद्धि से प्रभावित ज्ञानपिपासु युवक विद्यार्थी दूर-दूर से यात्रा कर इनके व्याख्यान सुनने आते थे। दर्शन के अतिरिक्त दूसरे अन्य विषयों में भी युवकों ने परामर्श लेना प्रारंभ कर दिया था। प्राचीन यूनानियों के जीवन में, विभिन्न स्थानों में स्थित देववाणियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था। ऐसे में भविष्य के विषय में सलाह देने वाले दार्शनिकों का महत्व बढ़ जाना स्वाभाविक था। ऐसे दार्शनिकों की मांग बढ़ने के कारण पांचवी शताब्दी ई0पू0 के मध्य के लगभग यूनान में एक पेषेवर दार्शनिक वर्ग का उदय हुआ जो इधर-उधर भ्रमण करते हुए, शुल्क लेकर, युवकों को शिक्षा-दीक्षा देने लगा। ये व्यावसायिक दार्शनिक चलती-फिरती देववाणियों के सदृष थे। कुलीन एवं समृद्ध यूनानी अपनी संतानों को शिक्षा दिलवाने के लिए इनके पास भेजने लगे। इन दार्शनिकों को ‘सोफिस्ट’ की संज्ञा दी गई जिसका यूनानी भाषा में अर्थ है ‘बुद्धिमान’ अथवा किसी भी विषय में प्रवीण व्यक्ति। दर्शन, तर्क विद्या, वाक्पटुता आदि विषय थे इनके। एथेंस के प्रजातंत्र में वाक् निपुण व्यक्ति सरलता से सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकता था।
सोफिस्ट संज्ञा किसी विषिष्ट विचारधारा को नहीं बल्कि व्यवसाय को दी जाती है। अंध विश्वास और आस्था के स्थान पर सोफिस्टों ने तर्क और विवेक को स्थान दिया परंतु इनका निर्बल पक्ष था कि कभी-कभी नकारात्मक विचारों को तर्क के बल पर स्वीकार्य बनाना। इन्होंने नैतिकता के सभी बंधनों को तोड़ कर निकृष्ट उद्देश्यों को उत्तम बनाकर दिखाया।
सोफिस्ट दार्शनिकों में प्रोटागोरस (481-411 ई0पू0) अत्यधिक प्रसिद्ध था। शिष्य उसे घेरे बैठे रहते थे। प्रोटागोरस की प्रसिद्ध उक्ति थी-‘मनुष्य सभी वस्तुओं का मापदंड है।’ प्रोटागोरस ने शंकावाद को जन्म दिया। उसका कहना था कि जो एक दृष्टि से सत्य है वह दूसरी दृष्टि से असत्य हो सकता है, जो एक देश में सत्य है वह दूसरे देश में असत्य हो सकता है। ऐसे विचार कोई निश्चित दिशा नहीं देते। विद्यार्थी शुल्क के बदले सीखता था मात्र व्यर्थ का शब्द जाल। अन्य उल्लेखनीय सोफिस्ट थे गोर्गीअस (483-375 ई0पू0), प्रोडीकस (490-421 ई0पू0), एंटीफोन, लिक्रोफोन, अल्किदामस, हिप्पीआस आदि। इनका तत्कालीन कुलीन युक्कों पर अत्यधिक प्रभाव था।
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