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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...
शिक्षा व्यवस्था
एथेंस के कानून के अनुसार यह अनिवार्य था कि प्रत्येक पिता अपने पुत्र को साहित्य, संगीत, नृत्य, तर्कशास्त्र, दर्शन, विज्ञान इतिहास, भूगोल, चित्रकला और मूर्तिकला जैसी किसी न किसी कला विषय या शिल्प की और साथ ही भाषा, गणित और साहित्य की शिक्षा दिलाए। होमर और हीसियड की चुनी हुई रचनाओं को विद्यार्थी के लिए कंठस्थ करना आवश्यक था। शिक्षा के लिए आवश्यक धन व्यय किया जाता था। अतः दूर दूर से मनस्वी, विचारक, कलाविद्, शिक्षक, उपदेशक, दार्शनिक, व्यवसायी आदि आत्मतुष्टि, सम्मान और अर्थाजन के लिए एथेंस में आकर एकत्र हो गए। इससे एथेंस की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
परंतु सोफिस्ट दार्शनिक शिक्षा के क्षेत्र में छा गए। अर्थलोभ में उन्होंने चमत्कारिक सिद्धांतों की शिक्षा प्रारंभ की। उनके एक सिद्धांत की प्रभा दूसरे सिद्धांत को फीका कर देती। विद्यार्थियों को परिणाम में प्रकाश नहीं अंधकार मिलता। वह विद्यार्थी जो निश्चित दिशा निर्देश के लिए उनके पास आता था, भ्रमित होकर वापस जाता था। शुल्क के बदले सीखता था मात्र व्यर्थ का शब्द जाल।
सोफिस्ट विचारक एथेंस में घूम-घूमकर जिन विचारों का दूषण फैला रहे थे वे संदेहवादी विचार थे। सोफिस्ट सभ्यता के किसी भी वस्तुगत मानदंड को स्वीकार नहीं करते थे। सत्य को वे मानव में स्थित बताकर किसी मानववाद का समर्थन नहीं कर रहे थे प्रत्युत सत्य को संदेहास्पद बनाकर समाज के नैतिक मूल्यों का क्षरण कर रहे थे।
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