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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...



एथेंस में थिएटर (थेआतरो)

एथेंस में थिएटर बहुत लोप्रिय था क्योंकि इसे शिक्षा का माध्यम माना जाता था। सोफोक्लीज, यूरीपिदीस, रिस्तोफोनस आदि प्रसिद्ध नाटककार सुकरात के समकालीन थे। 423 ई0पू0 में मंचित अरिस्तोफोनस के नाटक ‘दि क्लाउड’ (न्यूब्स) में सुकरात का मज़ाक उड़ाया गया था।

थिएटर का विशाल प्रेक्षागार मुक्ताकाष के नीचे बना था। सामान्य दर्शकों के लिए पत्थर की बेंचे थीं और पुरोहित तथा अधिकारी वर्ग के लिए सबसे आगे विषिष्ट कुर्सियां थीं। एक बार प्रारंभ होने पर नाट्य-उत्सव कई दिनों तक चलता था। मंचन सुबह से ही प्रारंभ हो जाता। प्रतिदिन तीन नाटक मंचित किए जाते, जिनमें एक सुखांत होता। नाटक देखने के लिए कैदियों तक को रिहा कर दिया जाता था। ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को नाटक देखने के लिए प्रेरित किया जाता। गरीब दर्शकों की टिकट के पैसे वापस कर दिए जाते और उस दिन की मजदूरी की भरपाई कर दी जाती। सभी कार्यालय, अदालतें बंद रहतीं। महिलाएं, जिनका सार्वजनिक समारोहों में जाना निषिद्ध था, थिएटर में जा सकती थीं।

नाटककार को आरकन नामक आधिकारी के पास अपनी नाट्य-पांडुलिपि जमा करनी होती थी। स्वीकृत होने पर नाटक को किसी धनी नागरिक के नाम आवंटित कर दिया जाता था। वही नाटक का पूरा खर्चा उठाता था।

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पलायन

सुकरात के शिष्य प्लेटो और प्लेटो के शिष्य अरस्तू अपने शिष्य सिकंदर के विजय अभियान पर निकलते ही वे मकदूनियां से दर्शन के केन्द्र एथेंस चले आए। सिकंदर की मृत्यु के पश्चात एथेंस के शासकों में यह चिंता व्याप्त हो गई कि अरस्तू अब भी मकदूनियां के प्रति निष्ठावान बने रहेंगें। अतः उन पर एथेंस नगर राज्य के प्रति अश्रद्धा का आरोप लगाकर मुकदमा चलाने की तैयारी होने लगी। अरस्तू सुकरात की तरह जहर का प्याला नहीं पीना चाहते थे अतः वे एथेंस से पलायन करके इयोबा द्वीप के चेलकिस नामक स्थान को चले गए। कुछ ही समय बाद 322 ई0पू0 में वहीं उनकी मृत्यु हो गई।

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