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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


तीसरा दर्जा शाकभाजीको और फलोंको देना चाहिये। शाक और फल हिन्दुस्तानमें सस्ते होने चाहिये, मगर ऐसा नहीं है। वे केवल शहरियोंकी खुराक माने जाते हैं। गाँवोंमें हरी तरकारी भाग्यसे ही मिलती है। और बहुत जगह फल भी नहीं मिलते। इस खुराककी कमी हिन्दुस्तानके लिए बड़ी शरमकी बात है। देहाती चाहें तो काफी शाकभाजी पैदा कर सकते हैं। फलोंके पेड़ोंके बारेमें कठिनाई जरूर है, क्योंकि जमीनकी काश्त के कानून सख्त और गरीबोंको दबानेवाले हैं। मगर यह तो हमारे विषयसे बाहरकी बात हुई।

ताजी शाकभाजीमें पत्तोवाली जो भी भाजी मिले वह काफ़ी मात्रामें हर रोज़ लेनी चाहिये। जो शाक स्टार्च-प्रधान हैं, उनकी गिनती यहाँ मैंने शाकभाजीमें नहीं की है। आलू शकरकंद, रतालू और जमींकन्द स्टार्च-प्रधान शाक है। इन्हें अनाजकी पदवी देनी चाहिये। दूसरे कम स्टार्चवाले शाक काफी मात्रामें लेने चाहिये। ककड़ी, लूनोकी भाजी, सरसोंका साग, सोपकी भाजी, टमाटर इत्यादिको पकानेकी कोई आवश्यकता नहीं रहती। उन्हें साफ करके और अच्छी तरह धोकर थोड़ी मात्रामें कच्चा खाना चाहिये।

फलोंमें मौसमके जो फल मिल सकें वे लेने चाहिये। आमके मौसममें आम, जामुनके मौसममें जामुन, इसी तरह अमरूद, पपीता, संतरा, अंगूर, मीठे नीबू (शरबती या स्वीट लाइम), मोसम्बी वगैरा फलोंका ठीक-ठीक उपयोग करना चाहिये। फल खानेंका सबसे अच्छा वक्त सुबहका है। सवेरे दूध और फलका नाश्ता करनेसे पूरा संतोष मिल जाता है। जो लोग खाना जल्दी खाते हैं; उनके लिए तो सवेरे केवल फल ही खाना अच्छा है।

केला अच्छा फल हैं। मगर उसमें स्टार्च बहुत है। इसलिए वह रोटीकी जगह लेता है। केला, दूध और भाजी संपूर्ण खुराक है।

मनुष्यकी खुराकमें थोड़ी-बहुत चिकनाईकी आवश्यकता रहती है। वह घी और तेलसे मिल जाती हैं। घी मिल सके तो तेलकी कोई आवश्यकता नहीं रहती। तेल पचनेमें भारी होते हैं और शुद्ध घीके बराबर गुणकारी नहीं होते। सामान्य मनुष्यके लिए तीन तोला घी काफी समझना चाहिये। दूधमें घी आ ही जाता है। इसलिए जिसे घी न मिल सके, वह तेल खाकर चर्बीकी मात्रा पूरी कर सकता है। तेलोमें तिलका, नारियलका और मूंगफलीका तेल अच्छा माना जाता है। तेल ताजा होना चाहिये। इसलिए देशी घानीका तेल मिल सके तो अच्छा है। जो घी और तेल आज बाजारमें मिलता है, वह लगभग निकम्मा होता है। यह दुखकी और शरमकी बात है। मगर जब तक व्यापारमें कानून या लोक-शिक्षणके द्वारा ईमानदारी दाखिल नहीं होती, तब तक लोगोंको सावधानी रखकर, मेहनत करके अच्छी और शुद्ध चीजें प्राप्त करनी होंगी। अच्छी और शुद्ध चीजके बदले कैसी भी मिले तो उससे कभी संतोष नहीं मानना चाहिये। बनावटी घी या खराब तेल खानेके बदले घी-तेलके बगैर गुजारा करनेका निश्चय ज्यादा पसन्द करने योग्य है।

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