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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

१. शरीर


शरीर के परिचय से पहले आरोग्य किसे कहते हैं, यह समझ लेना ठीक होगा। आरोग्य के मानी हैं तन्दुरुस्त शरीर। जिसका शरीर व्याधि-रहित है, जिसका शरीर सामान्य काम कर सकता है, अर्थात् जो मनुष्य बगैर थकान के रोज दस-बारह मील चल सकता है, जो बगैर थकान के सामान्य मेहनत-मज़दूरी कर सकता है, सामान्य खुराक पचा सकता है, जिसकी इन्द्रियां और मन स्वस्थ हैं, ऐसे मनुष्य का शरीर तन्दुरुस्त कहा जा सकता है। इसमें पहलवानों या अतिशय दौड़ने-कूदनेवालोंका समावेश नहीं है। ऐसे असाधारण बलवाले व्यक्तिका शरीर रोगी हो सकता है। ऐसे शरीरका विकास एकांगी कहा जायगा।

२८-८-'४२


इस आरोग्य की साधना जिस शरीर को करनी है, उस शरीरका कुछ परिचय आवश्यक है।

प्राचीन काल में कैसी तालीम दी जाती होगी, यह तो विधाता ही जाने या शोध करनेवाले लोग कुछ जानते होंगे। आधुनिक तालीम का थोड़ा-बहुत परिचय हम सबको है ही। इस तालीमका हमारे दिन-प्रतिदिनके जीवन के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। शरीर से हमें सदा ही काम पड़ता है, मगर फिर भी आधुनिक तालीम से हमें शरीरका ज्ञान नहीं-सा होता है। अपने गांव और खेतोंके बारे में भी हमारे ज्ञान के यही हाल हैं। अपने गांव और खेतोंके बारेमें तो हम कुछ भी नहीं जानते, मगर भूगोल और खगोलको तोतेकी तरह रट लेते हैं। यहां कहनेका अर्थ यह नहीं है कि भूगोल और खगोलका कोई उपयोग नहीं है, मगर हर एक चीज़ अपने स्थान पर ही अच्छी लगती है। शरीरके, घरके, गांवके, गांवके चारों ओरके प्रदेशके, गांवके खेतोंमें पैदा होनेवाली वनस्पतियों के और गांवके इतिहास के ज्ञानका पहला स्थान होना चाहिये। इस ज्ञान के पाये पर खड़ा दूसरा ज्ञान जीवनमें उपयोगी हो सकता है।

शरीर पंचभूत का पुतला है। इसी से कवि ने गाया है :

पवन, पानी, पृथ्वी, प्रकाश और आकाश,
पंचभूत के खेलसे, बना जगतका पाश।

इस शरीरका व्यवहार दस इन्द्रियों और मनके द्वारा चलता है। दस इन्द्रियोंमें पांच कर्मेन्द्रियाँ हैं, अर्थात् हाथ, पैर, मुंह, जननेन्द्रिय और गुदा। ज्ञानेन्द्रियाँ भी पांच हैं-स्पर्श करनेवाली त्वचा, देखनेवाली आंख, सुननेवाला कान, सूंघनेवाली नाक और स्वाद या रसको पहचाननेवाली जीभ। मनके द्वारा हम विचार करते हैं। कोई कोई मनको ग्यारहवीं इन्द्रिय कहते हैं। इन सब इन्द्रियोंका व्यवहार जब सम्पूर्ण रीतिसे चलता है, तब शरीर पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है। ऐसा आरोग्य बहुत ही कम देखने में आता है।

२९-८-'४२

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