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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

४. तेज


जैसे आकाश, हवा, पानी आदि तत्त्वोंके बिना मनुष्यका निर्वाह नहीं हो सकता वैसे ही तेज अर्थात् प्रकाशके बिना भी नहीं हो सकता। प्रकाश-मात्र सूर्यसे मिलता है। सूर्य नहीं हो तो न तो हमें गर्मी मिल सके, न प्रकाश। इस प्रकाशका हम पूरा उपयोग नहीं करते इसलिए पूर्ण आरोग्यका भी हम अनुभव नहीं करते। जैसे हम पानीका स्नान करके साफ होते हैं, वैसे ही सूर्य-स्नान करके भी हम साफ और तन्दुरुस्त हो सकते हैं। दुर्बल मनुष्य या जिसका खून सूख गया हो वह यदि प्रातःकालके सूर्यकी किरणे नंगे शरीर पर ले तो उसके चेहरेका फीकापन और दुर्बलता दूर हो जायगी और पाचन-क्रिया यदि मंद हो तो वह जाग्रत हो जायगी। सवेरे जब धूप ज्यादा न चढ़ी हो, उस वक्त यह स्नान करना चाहिये। नंगे शरीर लेटने या बैठनेमें सर्दी लगे, वह उसवश्यक कपड़े ओढ़कर लेटे या बैठे और जैसे-जैसे शरीर सहन करता जाय वैसे-वैसे कपड़े हटाता जाय। हम नंगे बदन धूपमें टहल भी सकते हैं। कोई देख न सके ऐसी जगह ढूंढ़कर यह
क्रिया की जा सकती है। अगर ऐसी सहूलियत पैदा करनेके लिए दूर जाना पड़े और इतना समय न हो तो बारीक लंगोटी से गुह्य भागोंको ढंककर सूर्य-स्नान लिया जा सकता है।

इस प्रकार सूर्य-स्नान लेनेसे बहुतसे लोगोंको लाभ हुआ है। क्षय रोगमें इसका खूब उपयोग होता है। सूर्य-स्नान अब केवल नैसर्गिक उपचारकों का विषय नहीं रहा। डॉक्टरोंकी देखरेखके नीचे ऐसे मकान बनाये गये हैं। जहां ठंडी हवामें कांचकी ओटमें सूर्य-किरणोंका सेवन किया जा सकता है।

कई बार फोड़ेका घाव भरता ही नहीं है। पर उसे सूर्य-स्नान दिया जाय तो वह भर जाता है।

पसीना लानेके लिए मैंने रोगियोंको ग्यारह बजेकी जलती धूपमें सुलाया है। इससे रोगी पसीनेसे तरबतर हो जाता है। इतनी तेज धूपमें सुलानेके लिए रोगीके सिर पर मिट्टीकी पट्टी रखनी चाहिये। उस पर केलेके या छूरे बड़े पत्ते रखने चाहिये, जिससे रोगीका सिर ठंडा और सुरक्षित रहे। सिर पर तेज धूप कभी नहीं लेनी चाहिये।

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