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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


पापों पर बनकर प्रलय-वाण छूटेगा,
यह क्लीव धर्म पर बाज-सदृश टूटेगा।
जो रुष्ट खड्ग से हैं, उनसे रूठेगा,
कृत्रिम विभाकरों का प्रकाश लूटेगा।

वह गरुड़ देश का नाग-पाश काटेगा,
अरि-मुण्डों से खाइयाँ-खोह पाटेगा।
विद्युतित जीभ से चाट भीति हर लेगा,
वह तुम्हें आप अपने समान कर लेगा।

रह जायगा वह नहीं ज्ञान सिखला कर,
दूरस्थ गगन में इन्द्रधनुष दिखला कर।
वह लक्ष्यबिन्दु तक तुमको ले जायेगा,
उँगलियाँ थाम मंजिल तक पहुँचायेगा।

हर धड़कन पर वह सजल मेघ सिहरेगा,
गत और अनागत बीच व्यग्र बिहरेगा।
बरसेगा बन जलधार तृषित धानों पर,
बन तडिज्धार छूटेगा चट्टानों पर।

जब वह आयेगा, द्विधा-द्वन्द्व बिनसेगा,
आलिंगन में अवनी को व्योम कसेगा।
विज्ञान धर्म के धड़ से भिन्न न होगा,
भवितव्य भूत-गौरव से छिन्न न होगा।

जब वह आयेगा, खल कुबुद्धि छोड़ेंगे,
सब साँप आप ही फण अपने तोड़ेंगे,
विषवाह-अभ्र गाँधी पर नहीं घिरेंगे,
शान्ति के नीड़ में गोले नहीं गिरेंगे।

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