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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


(5)
भामा ह्रादिनी – तरंग, तडिन्माला है,
वह नहीं काम की लता, वीर बाला है,
आधी हालाहल – धार अर्ध हाला है।
जब भी उठती हुंकार युद्ध-ज्वाला है,
चण्डिका कान्त को मुण्ड-माल देती है ;
रथ के चक्के में भुजा डाल देती है ।

(6)
खोजता पुरुष सौन्दर्य, त्रिया प्रतिभा को,
नारी चरित्र-बल को, नर मात्र त्वचा को।
श्री नहीं पाणि जिसके सिर पर धरती है,
भामिनी हृदय से उसे नहीं वरती है।
पाओ रमणी का हृदय विजय अपना कर,
या बसो वहाँ बन कसक वीर-गति पा कर।

(7)
जिसकी बाँहें बलमयी, ललाट अरुण है,
भामिनी वही तरुणी, नर वही तरुण है।
है वही प्रेम जिसकी तरंग उच्छल है,
वारुणी-धार में मिश्रित जहाँ गरल है।
उद्दाम प्रीति बलिदान-बीज बोती है;
तलवार प्रेम से और तेज होती है।

(8)
पी जिसे उमड़ता अनल, भुजा भरती है,
वह शक्ति सूर्य की किरणों में झरती है।
मरु के प्रवाह में छिपा हुआ जो रस है,
तूफान-अन्धड़ों में जो अमृत-कलस है,
उस तपन-तत्त्व से हृदय-प्राण सींचो रे !
खींचो, भीतर आँधियाँ और खींचो रे !

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