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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...

हिम्मत की रौशनी

 

उसे भी देख, जो भी भरा अङ्गार है साथी !


(1)
सियाही देखता है, देखता है तू अँधेरे को,
किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को।
उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती,
दबी तेरे लहू में रौशनी की धार है साथी !

(2)
पड़ी थी नींव तेरी चाँद-सूरज के उजाले पर,
तपस्या पर, लहू पर, आग पर, तलवार-भाले पर।
डरे तू ना-उमेरी से, कभी यह हो नहीं सकता,
कि तुम में ज्योति का अक्षय भरा भण्डार है साथी !

(3)
बवण्डर चीखता लौटा, फिरा तूफान जाता है,
डराने के लिए तुझको नया भूडोल है ;
नया मैदान है राही, गरजना है नये बल से;
उठा, इस बार वह जो आखिरी हुंकार है साथी !

(4)
विनय की रागिनी में बीन के ये तार बजते हैं,
रुदन बजता, सजग हो क्षोभ-हाहाकार बजते हैं।
बजा इस बार दीपक-राग कोई आखिरी सुर में ;
छिपा इस बीन में ही आगवाला तार है साथी !

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