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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...

खण्ड तीन

किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो?
किस नयी फसल से बीज वीर ! बोते हो?

दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम ;
यम की द्रंष्टा से खेल झूलते हैं हम।
वैसे तो कोई बात नहीं कहने को,
हम टूट रहे कोवल स्वतंत्र रहने को।

सामने देशमाता का भव्य चरण है,
जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है,
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे,
पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे।

फूटेंगी खर निर्झरी तृप्त कुण्डों से,
भर जायेगा नगराज रुण्ड-मुण्डो से।
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढेगी,
लाशों पर चढ़ कर आगे फौज बढ़ेगी।

पहली आहुति है अभी, यज्ञ चलने दो,
दो हवा, देश की आग जरा जलने दो।
जब हृदय-हृदय पावक से भर जायेगा,
भारत का पूरा पाप उतर जायेगा।

देखोगे, कैसा प्रलय चण्ड होता है !
असिवन्त हिन्द कितना प्रचण्ड होता है !

बाँहों से हम अम्बुधि अगाध चाहेंगे,
धँस जायेगी यह धरा, अगर चाहेंगे।
तूफान हमारे इंगित पर ठहरेंगे,
हम जहाँ कहेंगे, मेघ वहीं घहरेंगे।

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