ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
उस वीर जाति को बन्दी कौन करेगा?
विकराल आग मुट्ठी में कौन धरेगा?
केवल कृपाण को नहीं, त्याग-तप को भी,
टेरो टेरो साधना, यज्ञ, जप को भी।
गरजो, तरंग से भरी आग भड़काओ,
हों जहाँ तपी, तप से तुम उन्हें जगाओ।
युग-युग से जो ऋद्धियाँ यहाँ उतरी हैं,
सिद्धियाँ धर्म क जो भी छिपी धरी हैं,
उन सभी पावकों से प्रचण्डतम रण दो,
शर और शाप, दोनों को आमन्त्रण दो।
चिन्तको ! चिन्तना की तलवार गढ़ो रे !
ऋषियों ! कृशानु-उद्दीपन मन्त्र पढ़ो रे !
योगियों ! जगो, जीवन की ओर बढ़ों रे !
बन्दूकों पर अपना आलोक मढ़ो रे !
हैं जहाँ कहीं भी तेज, हमें पाना है,
रण में समग्र भारत को ले जाना है।
पर्वतपति को आमूल डोलना होगा,
शंकर को ध्वंसक नयन खोलना होगा।
असि पर अशोक को मुण्ड तोलना होगा,
गौतम को जयजयकार बोलना होगा।
यह नहीं शान्ति की गुफा, युद्ध है, रण है,
तप नहीं, आज केवल तलवार शरण है।
ललकार रहा भारत को स्वयं मरण है,
हम जीतेंगे यह समर, हमारा प्रण है।
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