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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

पहला बयान

 

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जेम्स बांड की दृष्टि जब जन्म-पत्री जैसी इस वस्तु पर पड़ी तो उसकी खोपड़ी भिन्नाकर रह गई। लगभग दस मिनट से वह निरन्तर उसी को घूर रहा था, मगर अभी तक समझ नहीं पाया था कि इसका क्या तात्पर्य है। इस अजीबोगरीब स्थान पर आकर उसने पिछले नब्बे मिनटों में ऐसे-ऐसे करिश्मे देखे थे कि वह अपने मस्तिष्क से अपना नियंत्रण खोता जा रहा था। अपनी कलाई घड़ी के अनुसार वह ठीक नब्बे मिनट पहले माइक, हुचांग, बागारोफ और टुम्बकदू के साथ था। परन्तु जब खण्डहर के चारों ओर बने उस तालाब में उतरने लगा तो चौथी सीढ़ी पर पैर रखते ही वह चकरा गया। संगमरमर के हंस ने उसे झपट लिया और फिर जब वह कुछ सोचने-समझने कि स्थिति में आया तो उसने स्वयं को एक विचित्र-सी कोठरी में पाया। कोठरी चारों ओर से बंद थी और कहीं कोई मार्ग दृष्टिगोचर नहीं होता था। वह यह भी नहीं जान सका कि किस रास्ते से इस कोठरी में आ गया।

अभी वह अधिक सोच भी नहीं पाया था कि उसकी दृष्टि कोठरी की दीवार पर टंगी एक पेंटिंग पर पड़ी और यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि वह पेन्टिंग भारत के जासूस सम्राट विजय की थी। पेन्टिंग के एक तरफ 'देव' लिखा हुआ था।'

जेम्स बांड ने उसे हर कोण से देखा और जब उसे ये विश्वास हो गया कि चित्र निस्संदेह विजय का ही है तो उसके मस्तिष्क में प्रश्न उभरा कि विजय का ये चित्र किसने बनाया है? यहां कैसे पहुंच गया और इस दीवार पर टंगे रहने का क्या रहस्य है? साथ ही यह भी सोचने का बिषय था कि पेन्टिंग के नीचे 'देव' क्यों लिखा है? यह 'देव' उस स्थान पर नहीं लिखा था, जहां चित्रकार पेन्टिंग बनाने के पश्चात आर्टिस्टिक ढंग से अपना नाम लिखा करता है, बल्कि यह नाम इस प्रकार लिखा गया था जिससे यही अनुमान लगता था कि चित्रकार इस नाम को यहां लिखकर यह दर्शाना चाहता हे कि यह चित्र 'देव' नामक किसी व्यक्ति का है। किन्तु बांड इस बात को स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं था कि यह चित्र विजय का न होकर देव नामक किसी अन्य व्यक्ति का है -- वह काफी देर तक उस चित्र को घूरता रहा और समझने की कोशिश करता रहा.. मगर अपने मस्तिष्क को थामने के अतिरिक्त वह कुछ नहीं कर सका। उलझन में फंसे बांड ने चित्र से दृष्टि हटा ली और कोठरी का निरीक्षण करने लगा।

सपाट दीवारों के अतिरिक्त उसे कोठरी में अन्य कोई वस्तु ऐसी नहीं दिखाई दी, जिसका वर्णन किया जा सके।

अन्त में वह पुन: विजय के चित्र की ओर आकर्षित हुआ और इस बार उसने चित्र को अपने हाथ से स्पर्श किया। उसका इरादा इस चित्र को दीवार से उतारकर भली प्रकार देखने का था। जैसे ही उसने चित्र को दीवार से उतारना चाहा.. कमरा एक विचित्र से संगीत की आवाज से गूंज उठा। घबराकर बांड ने एकदम चित्र से हाथ हटा लिया? आश्चर्यजनक ढंग से संगीत बन्द हो गया।

कुछ देर वह उसी स्थिति में रहकर चित्र को घूरता रहा, लेकिन जब उसे सबकुछ लाभहीन-सा लगा, तो उसने पुन: चित्र को पहले की भांति पकड़ा। पुन: उसी प्रकार कोठरी संगीत की लहरों से गूंज उठी। इस बार जेम्स बांड ने चित्र नहीं छोड़ा, संगीत उसी प्रकार बज रहा था। संगीत ऐसा बिल्कुल नहीं था कि कान के पर्दे हिलते अनुभव होते... बल्कि संगीत बेहद धीमा और मधुर था। ऐसा प्रतीत होता था, मानो किसी संगीत विशेषज्ञ के नेतृत्व में उसके अनेक शिष्य अपना-अपना साज बजा रहे हों। सबकुछ मिलाकर संगीत गजब का मधुर और मदहोश कर देने वाला. था। बांड जैसा व्यक्ति भी सबकुछ भूलकर उन संगीत की लहरों में डूबता जा रहा था।

उसकी दृष्टि विजय के चित्र पर ही जमी हुई थी। एकाएक उस क्षण वह उछल पड़ा, जब उसने विजय के चित्र के होंठ हिलते हुए देखे और साथ ही संगीत के बीच किसी मानव की आवाज उभरी-''मेरा कान पकड़कर नीचे दबाओ--मेरा कान पकड़कर नीचे दबाओ।''

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