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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

एक सायत के लिए चन्द्रदत्त बड़े तरद्दुद में पड़ गए। वे सोचने लगे कि नलकूराम ने तो पन्नालाल के भेस में आने के लिए कहा था। फिर यह करतारसिंह का क्या चक्कर है? क्या वास्तव में राजगढ़ से कोई सूचना लेकर करतारसिंह आए हैं? अथवा नलकूराम ने पन्नालाल के स्थान पर करतारसिंह का भेस बना लिया है? कहीं वास्तव में ही तो राजगढ़ में कोई दुर्घटना नहीं हो गई है? इन्हीं विभिन्न तरह की शंकाओं ने उन्हें तरद्दुद में डाल दिया। किन्तु जब करतारसिंह आए ही थे तो उन्हें तलब तो करवाना ही था, अत: उन्होंने सिपहसालार को उन्हें पेश करने का आदेश दिया। सिपहसालार जिस तेजी से आया था, उसी तेजी के साथ वापस चला गया - किन्तु चन्द्रदत्त सोचते ही रह गए। उधर शंकरदत्त और बालीदत्त भी तरद्दुद में पड़े थे।

''पता नहीं करतारसिंह राजगढ़ से क्या सूचना लाए हैं जो इतने घबराए हुए हैं!'' जोरावरसिंह ने उन तीनों की तन्द्रा भंग की। -''जब तक हमसे मिलकर बात नहीं करता है, तब तक हम क्या कह सकते हैं!'' तरद्दुद में फंसे हुए चन्द्रदत्त बोले- ''लेकिन ऐसा तो पता लगता ही है राजगढ़, वह कोई खतरनाक पैगाम लेकर ही आया है - तभी तो जल्दी-से-जल्दी हमसे मिलना चाहता है।'' घड़ी तक उनके बीच ऐसी ही बातें होती रहीं, धीरे-धीरे समय बीता और सामने से उसी सिपहसालार के साथ करतारसिंह आते हुए दिखाई दिए। उन्हें देखते ही सबकी बातें बन्द हो गईं और बेचैनी के साथ उनके पास पहुंचने की प्रतीक्षा करने लगे। बात-की-बात में करतारसिंह उनके पास आए और सलाम किया। उनके चेहरे से ही ऐसा मालूम होता था कि वे बहुत घबराए हैं। - ''क्या बात है, करतारसिंह - इतने घबराए हुये क्यों हो?'' शंकरदत्त ने आगे बढ़कर प्रश्न किया।

''कुछ मत पूछो बड़े कुंवर - गजब हो गया।'' बदहवास-से करतारसिंह बोले- ''गजब हो गया।''

''क्या हो गया, कुछ बोलेंगे भी?'' बेचैन होकर खुद जोरावरसिंह बोला।

''आप लोग यहां भरतपुर को फतह करने और कांता को प्राप्त करने की फिक्र में लगे हुए हैं और उधर सूर्यजीत अपनी फौजों के साथ राजगढ़ की तरफ बढ़ रहा है। बल्कि बढ़ क्या रहा है - ये कहना चाहिए कि उसने राजगढ़ के कई हिस्से फतह भी कर लिए हैं। - ''तुम क्या कह रहे हो?'' एकदम शंकरदत्त बोला।

''मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं महाराज!'' करतारसिंह ने कहा- ''न जाने कैसे सूर्यजीत के ऐयारों ने यह पता लगा लिया कि आप अपनी सेना के साथ आजकल यहां हैं। उसे यह भी पता लग गया कि आजकल राजगढ़ की अधिकांश शक्ति यहां लगी हुई है - साथ ही आप भी यहां हैं। उसने राजगढ़ के राज्य और राक्षसनाथ के तिलिस्म पर कब्जा करने का यह उचित अवसर जाना और उसने हम पर चढ़ाई कर दी। उसके साथ उसका लड़का रमाकांत भी है। वह राजगढ़ को चारों ओर से घेर रहे हैं। सूर्यजीत ने घोषणा कर दी है कि या तो हम लोग उसके सामने आत्म-समर्पण कर दें अन्यथा वह पूरे राजगढ़ में कत्लेआम मचा देगा। उसका कहना है कि वह राजगढ़ को लाशों से पाट देगा। वह जिधर-जिधर से भी गुजरा है उसने राजगढ़ के निवासियों की लाशें बिछा दी हैं। मैं बड़ी होशियारी से उनके बीच से निकलकर यहां तक पहुंचा हूं। अगर जल्दी ही यहां से मदद न भेजी गई तो न केवल राजगढ़ पर सूर्यजीत का कव्जा हो जाएगा बल्कि वह राजगढ़ में कत्लेआम मचा देगा। इस समय वह वहां आपकी अनुपस्थिति का भरपूर लाभ उठा रहा है। उसकी सेनाएं राक्षसनाथ के तिलिस्म के बहुत पास पहुंच चुकी हैं। अगर उन्हें जल्दी ही नहीं रोका गया तो वे राक्षसनाथ के तिलिस्म पर कब्जा कर लेंगे। हमारा सबकुछ नष्ट हो जाएगा। बस - मुझे इतना ही कहना था।''

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