ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3 देवकांता संतति भाग 3वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''खैर, अब कोई इतनी मुश्किल वाली बात नहीं है।'' करतारसिंह ने कहा- 'जोरावरसिंह से जितना डर हमें उस समय भरतपुर में था, उतना अब नहीं है। ऐसा तो है नहीं कि पूरी सेना ही उसका पक्ष लेगी। वहां तो यह डर था कि सुरेन्द्रसिंह भी उससे मिले हुए थे अर्थात् अगर हमारी सेना में से आधी सेना भी जोरावर का साथ देती तो सुरेन्द्रसिंह की मदद से वह हमें खत्म कर देता, किन्तु यहां इतना डर नहीं है.. हम क्यों न आज ही की रात जोरावरसिंह को गिरफ्तार कर लें?''
''लेकिन यह काम इस तरह होना चाहिए नलकूराम, कि हम लोगों के अलावा किसी को जोरावरसिंह की गिरफ्तारी का पता न लग सके।'' सुखदेव बने गोपालदास ने कहा- ''जब तक हम राजगढ़ न पहुंच जाए, उस समय तक सेना को जोरावरसिंह की गिरफ्तारी का पता न लगे, अत: हममें से किसी को नकली जोरावर बनना होगा।'' - ''मेरे दिमाग में तरकीब आ चुकी है।'' करतारसिंह ने कहा- ''सुनें.. मैं जोरावरसिंह के खेमे में जाकर उसे यह सूचना देता हूं कि महाराज ने याद किया है। इस तरह से मैं उसे यहां ले आऊंगा। यहां हम उसे धोखा देकर गिरफ्तार कर लेंगे। तब सुखदेव जोरावरसिंह बन जाएंगे और उसके खेमे में चले जाएंगे। इस तरह से किसी को जोरावरसिंह की गिरफ्तारी की कानों-कान खबर न लगेगी और हम आसानी से निर्विरोध राजगढ़ पहुंच जाएंगे।''
''लेकिन राजगढ़ तक पहुंचते-पहुंचते बाकी सेना को तो यह पता लग ही जाएगा कि यह खबर गलत थी।'' सुखदेव ने कहा- ''क्या उस समय सेना अथवा यूं कहें कि सेना में छुपे जोरावरसिंह के पक्षपाती लोग महाराज से जवाब-तलब नहीं करेंगे? इस तरह तो राजगढ़ तक पहंचते-पहुंचते स्थिति बिगड़ जाएगी।'' - ''इसका उपाय मैंने सोच लिया है।'' करतारसिंह बोला- ''आज की रात.. तुम जोरावरसिंह तो बन ही जाओगे। अत: जोरावरसिंह के पक्षपाती तुम्हें जोरावर समझकर जोरावरसिंह के पक्ष और महाराज के विपक्ष बात तुमसे करेंगे। इस तरह सुबह तक अथवा तब तक जब तक कि सेना राजगढ़ पहुंचे तुम्हें उन बहुत-से गद्दारों का पता लग जाएगा जो जोरावर के साथ हैं। राजगढ़ तक पहुंचते-पहुंचते उन सभी गद्दारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
इस तरह उस समय तक जोरावरसिंह के बहुत से साथियों को पकड़ लिया जाएगा। अधिकांश सेना हमारे ही वफादार सिपाहियों की रह जाएगी। इधर मैं खुद आज की रात ही राजगढ़ के लिए रवाना हो जाता हूं। अत: मैं पहले ही वहां पहुंच जाऊंगा। वहां जाकर मैं वहां मौजूद सेना को बता दूंगा कि जोरावरसिंह किस तरह गद्दार निकला है, और हमने किस तरह की चालाकी उसके साथ खेली है.. इस तरह मैं तुम्हें सेना को साथ लिए राजगढ़ की सीमा पर ही मिल जाऊंगा और इस सेना में जोरावरसिंह के जो बचे-खुचे पक्षपाती होंगे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। सीधी-सी चाल है कि राजगढ़ तक पहुंचते-पहुंचते जोरावरसिंह की स्थिति कमजोर कर दी जाएगी और बाद में सेना की ही मदद से बिल्कुल खत्म कर दी जाएगी। जोरावरसिंह पर काबू पाने का यही एक रास्ता है।''
चन्द्रदत, शकरदत्त और बालीदत्त को यही तरकीब अच्छी लगी और वे खुशी से तैयार हो गए। उन बेचारों को तो स्वप्न में भी गुमान नहीं था कि सुरेन्द्रसिंह के ये दो महान ऐयार किस तरह उन्हें अपने हाथ की कठपुतली बनाए हुए हैं। योजना के अनुसार करतारसिंह उठकर डेरे से बाहर चला गया। कुछ ही देर बाद वह जोरावर को साथ लेकर वापस लौटा। जोरावरसिंह ने डेरे में आते ही महाराज को सलाम किया।
''आओ जोरावर!'' उसे देखते ही चन्द्रदत्त बोले- ''बैठो.. हमें तुमसे कुछ बहुत जरूरी बातें करनी थी।'' यह कहते हुए चन्द्रदत्त ने जोरावरसिंह को अपने पास ही बैठने का इशारा किया। उसी समय सुखदेव ने अपने ऐयारी के बटुए से एक खाकी रंग की मोमबत्ती निकाली और चकमक से जलाकर एक शमादान पर जमा दी। जोरावरसिंह चन्द्रदत्त के पास ही बैठ गया। चन्द्रदत्त उसे घूरते हुए बोले-- ''जोरावर, हमें तुमसे ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी।'' - 'क्या मतलब महाराज? क्या कर दिया मैंने---कैसी उम्मीद?'' जोरावरसिंह चौंककर बोला।
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