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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

आठवाँ बयान


जिस समय भरतपुर की राजधानी के बाहर पड़ी सेना में यह घोषणा हुई कि तुरन्त राजगढ़ लौटना है तो राजधानी के अन्दर हर्षोल्लास फैल गया। मुर्दे-से नजर आने वाले चेहरे खुशी से चमक उठे। झोपड़ी से लेकर राजमहल तक खुशी की लहर दौड़ गई! महाराज सुरेन्द्रसिंह समझ गए कि शेरसिंह की ऐयारी ने अपना कमाल दिखा दिया है। सारी राजधानी में खुशी का वातावरण नजर आने लगा। दोपहर बाद जब चन्द्रदत्त की सेना कूच करके भरतपुर से बाहर निकल गई तो सुरेन्द्रसिंह ने बड़ी ही बुद्धिमानी का परिचय दिया। राजधानी का फाटक खोल दिया गया। पूरे भरतपुर में घोषणा की गई कि चंद्रदत्त ने धोखे से यह हमला किया था - इस सबब से वह यहां तक पहुंच गया। सारी रात सुरेन्द्रसिंह की अत्यन्त व्यस्तता में बीती। भरतपुर के चारों ओर सेना को भेजा गया। इस बार सेना मुस्तैद थी ... ताकि अगर चन्द्रदत्त पुन: हमले का प्रयास करे तो इस बार उसे मुंहतोड़ जबाब दिया जा सके। अर्द्ध-रात्रि तक सुरेन्द्रसिंह सारे कामों से फारिग हो गए। अब उन्हें चन्द्रदत्त के हमले का भय नहीं था - क्योंकि यह वे अच्छी तरह जानते थे कि भरतपुर की सरहदों पर खड़े उनके सिपाही अब उन्हें खदेड़ देंगे। फिर भी रात के खत्म होने तक सुरेन्द्रसिंह व्यस्त रहे। सुबह का दरबार लगा।

आज दरबार में हर चेहरा चमकता नजर आता था। सुरेन्द्रसिंह अपने सोने के जड़ाऊ सिंहासन पर विराजमान थे। अचानक यह चमत्कार कैसे हो गया - राजा सुरेन्द्रसिंह ने यह भेद अपनी समस्त रियाया को बता दिया था। सभी खुले दिल से शेरसिंह ऐयार की तारीफ कर रहे थे। सभी को शेरसिंह और गोपालदास की वापसी का इन्तजार था। रियाया के बहुत से लोग उत्तरी सीमा पर खड़े उन दोनों का इन्तजार कर रहे थे। अभी महाराज का दरबार लगे कुछ ही देर हुई थी बाहर से किसी तरह के शोर की आवाज आने लगी। एक चोबदार ने आकर खबर दी कि कुंवर बलरामसिंह महाराज के भाई हरनामसिंह और दारोगा जसवन्तसिंह, शेरसिंह और गोपालदास को लेकर आ रहे हैं। उनके साथ भरतपुर की बहुत-सी जनता है और शेरसिंह और गोपालदास के गले मालाओं से भरे पड़े हैं। जनता उनकी जय-जयकार कर रही है ... यह उसी का शोर है।

उनके आगमन की खबर ने दरबार में भी हलचल पैदा कर दी। महाराज सुरेन्द्रसिंह खुद सिंहासन से उतरे और शेरसिंह की अगवानी करने खुद महल के बाहर गए। इस तरह उन दोनों को बड़े सम्मान के साथ दरबार में लाया गया। कुछ देर तक इसी तरह खुशी का वातावरण बना रहा। फिर शेरसिंह अपने गले से मालाओं का ढेर उतारकर बोला- ''आज हम इस दरबार में एक और जबरदस्त भेद खोलने जा रहे हैं।'' शेरसिंह की आवाज सुनकर सभी शांत हो गए और अपने-अपने स्थान पर बैठ ग़ए। शेरसिंह के बैठने का स्थान आज राजा सुरेन्द्रसिंह के सिंहासन के समीप ही बनाया गया था। शेरसिंह ने दरबार में एक-एक आदमी पर दृष्टि डाली और बोला- ''बात सोचने की है कि आखिर एकदम इस तरह हमारी रियाया पर हमला करने की हिम्मत चन्द्रदत्त में कैसे आ गई? सभी जानते हैं कि हम चन्द्रदत्त से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं। यह बात खुद वह भी अच्छी तरह समझता है। एक बार हम उसे युद्ध में खदेड़ भी चुके थे, फिर भला उसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि वह भरतपुर की ओर मुंह भी कर सके? शायद महाराज भी इसी तरद्दुद में होंगे ... मैं भी इसी उलझन में था, बल्कि मैं तो ये कहता हूं कि भरतपुर का बच्चा-बच्चा इसी भेद के बारे में सोचता होगा। मैं आज भरे दरबार में वह भेद खोलना चाहता हूं? जिस वजह से चन्द्रदत्त की इतनी जुर्रत हो सकी।''

सारा दरबार वह भेद सुनने के लिए शान्त हो गया, महाराज सुरेन्द्रसिंह बोले- ''हम भी वह भेद सुनने के लिए बेचैन हैं शेरसिंह, जल्दी कहो।''

''आपको याद होगा महाराज कि जिस समय मैं रात को नलकूराम और सुखदेव को लेकर सुरंग के रास्ते से अपने घर आया था, उसी समय मैंने आपसे कहा था कि जब चन्द्रदत्त की सेनाएं भरतपुर से बाहर निकल जाएंगी - तब मैं आपको एक ऐसा भेद बताऊंगा, जिसे सुनकर आप चौंक पड़ेंगे। वह भेद यही है महाराज जिस वजह से भरतपुर पर चन्द्रदत्त की चढ़ाई करने की हिम्मत हुई। सबब ये है महाराज हमारी रियाया का एक बहुत ही खास आदमी चन्द्रदत्त से मिला हुआ है।''

''ये तुम क्या कहते हो शेरसिंह ... हमारा कोई खास आदमी और चन्द्रदत्त से मिला हुआ?'' राजा सुरेन्द्रसिंह ने चौंककर प्रश्न किया।

''जी हां...!'' शेरसिंह बोला- ''उस आदमी ने ही चन्द्रदत्त का इतना हौसला बढ़ाया कि वह भरतपुर पर हमला कर सके। उसके और चंद्रदत्त के बीच यह फैसला हुआ कि वह चन्द्रदत्त की मदद करके राजदुलारी कांता को उसे सौंपेगा और चन्द्रदत्त आपका कत्ल करके भरतपुर का राज्य उसे।''

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