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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

तीसरा बयान


संख्या में वे पांच थे। हमारे पाठक उन्हें अच्छी तरह पहचानते हैं.. उनमें से एक का नाम गोवर्धनसिंह और दूसरे का नाम रोशनसिंह है। बाकी तीनों में से किसी और के नाम से वाकिफ नहीं हैं.. लेकिन फिर भी हम अच्छी तरह जानते हैं। सम्भव है कि ऊपर लिखे दोनों नामों को पढ़कर समझ गए हों कि वे लोग कौन हैं। किन्तु अगर याद न आया हो तो हम इन पांचों की पिछली कार्यवाही का हाल मुख्तसर में लिख देते हैं, ताकि आपको किसी तरह की परेशानी न हो और आप उनका उचित परिचय जान जायें। गोवर्धनसिंह वही आदमी है, जो विजय को गौरवसिंह, विकास, रैना, रघुनाथ, अजय और ठाकुर निर्भयसिंह के बीच से निकालकर ले गया था। विजय को लेकर वह जंगल के बीच बने एक शिकारगाह में पहुंचा था। जब विजय को होश आया तो उसने अपने सामने इन्हीं पांचों को पाया था.. उनमें गोवर्धनसिंह के साथी रोशनसिंह के अलावा तीन और थे।

गोवर्धनसिंह गौरवसिंह बना हुआ था। इसी गोवर्धनसिंह ने विजय के सामने कांता को पेश किया था। लेकिन वह कांता सबको धोखा देकर विजय को बेहोश कर वहां से निकाल ले जाती है। (यह हाल आप पहले भाग बारहवें बयान में पढ़ आये हैं। विस्तार से जानने के लिये एक बार सरसरी नजर उस बयान पर मार लें।)

दूसरे भाग के दूसरे बयान में आप यह भेद भी पढ़ आये हैं कि विजय को लेकर गोवर्धन इत्यादि के बीच से भागने वाली लड़की गौरवसिंह की बहन और विजय की लड़की वंदना है। जहां से गोवर्धनसिंह विजय को लेकर भागा था, वहीं वंदना आकर उनसे मिलती है और बताती है कि गोवर्धनसिंह इत्यादि राजा उमादत्त के ऐयार हैं। गोवर्धनसिंह गौरवसिंह बनकर और गोमती को कांता बनाकर विजय को धोखा देना चाहता था। वह बताती है कि जिस समय गोवर्धनसिंह विजय को यहां से लेकर भागा था.. वह उसी समय से उसके पीछे थी... शिकारगाह पर पहुंचकर उसे गोवर्धन की सारी साजिश का पता लग गया और उसने गोमती को बेहोश करके एक तरफ डाल दिया। कांता बनकर जो काम गोमती को करना था, वह खुद वंदना ने किया। फर्क सिर्फ इतना रहा कि गोमती गोवर्धनसिंह की भलाई में यह काम करती.. परन्तु वंदना उन्हें धोखा देकर विजय को गौरवसिंह इत्यादि के पास गई। अगर अब भी याद न आया हो तो पहले भाग का बारहवाँ बयान और दूसरे भाग का दूसरा बयान एक नजर में पढ़ जायें।

गोवर्धनसिंह के दूसरे तीन साथियों के नाम लिखने की हम कोई खास जरूरत नहीं समझते। इतने से ही हमारा काम बखूबी चल सकता है कि गोवर्धनसिंह राजा उमादत्त का ऐयार है और ये सभी इसके ऐयार साथी हैं। हम इनका ये नया बयान उसी समय से लिख रहे हैं, जिस वक्त गौरवसिंह बने हुए गोवर्धनसिंह ने अपनी नजर में कांता बनी गोमती को विजय के कमरे में भेजा। उसने गोमती को समझा दिया था कि उसे विजय को यह यकीन दिला देना है कि वह उसकी पूर्व जन्म की पत्नी कांता है। अपनी चाल को कामयाब करने के लिए उसने शिकारगाह के उस हॉल कमरे का दरवाजा खुद ही बाहर से बन्द कर दिया और इस समय वे पांचों दरवाजे से कान सटाये अन्दर होने वाली आहट और वहां होने वाली बातों को सुनने की कोशिश कर रहे थे।

कुछ देर तक तो उन्हें विजय और कांता बनी गोमती की आवाजें आती रहीं, किन्तु जब आवाजें आनी अचानक बंद हो गईं तो गोवर्धनसिंह चकराया। वह कुछ देर और कान सटाये ध्यान से सुनने की कोशिश करता रहा, परन्तु जब उसे अंदर से सन्नाटा ही मिला तो बौखलाकर बोला-

''रोशनसिंह.. हमें अन्दर से किसी तरह की कोई आवाज नहीं आती है।'' - 'आवाज तो मैं भी नहीं सुनता हूं गोवर्धनसिंह।'' रोशनसिंह खुद भी तरद्दुद मैं फंसा हुआ था- ''पता नहीं गोमती को क्या हो गया है? उसे तो विजय को पूरा यकीन दिलाना था कि वही कांता है... तभी तो हम विजय को यहां से आसानी से लेकर राजा उमादत्त की खिदमत में पेश कर सकते थे।''

''मेरे ख्याल से देखना चाहिए कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है?'' गोवर्धन के तीन साथियों में से एक बोला।

''लेकिन गड़बड़ हो क्या सकती है? दूसरा बोला।

वे बोलने में ही लगे रहे और उधर गोवर्धनसिंह इतना उतावला हुआ कि एक ही झटके में उसने हॉल का दरवाजा खोल दिया।

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