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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''कौन बदमाश?''

''जिन्होंने मेरे लड़के को उठा लिया हैं।'' गोवर्धनसिंह ने गिड़गिड़ाते हुए कहा- ''आप मेरे लड़के को बचा लीजिए, आई.जी. साहब। आप मुझसे यह डिबिया ले लीजिये, जो उन बदमाशों ने मुझे दी है।'' कहते हुए गोवर्धनसिंह ने बटुए में से एक डिबिया लिकाल ली।

''लाओ.. ये डिबिया हमें दिखाओ।'' कहते हुए ठाकुर साहब ने वह डिबिया ले ली। यह एक इतनी छोटी-सी, डिबिया थी जैसी काजल की होती है। ठाकुर साहब ने वह डिबिया खोली। काफी जोर लगाने पर तो वह खुली.. और खुलने पर ठाकुर साहब ने देखा कि उसमें कोई खास चीज नहीं थी। उसमें चमकीला-सा मरहम जैसा एक पदार्थ था। मरहम में से एक तेज सुगन्ध आ रही थी। यह खुशबू ठाकुर निर्भयसिंह को बहुत् ही प्यारी लग रही थी। एकाएक ही ठाकुर साहब के दिमाग में शब्द गूंजा- 'खतरा!'

लेकिन.. उस समय तक काफी देर हो चुकी थी।

वे ऐयारी के जाल में फंस गये हैं, यह ख्याल उन्हें उस समय आया, जब उनकी चेतना उनका साथ छोड़ने लगी। डिबिया उनके हाथ से छूटी और वे भी धड़ाम से फर्श पर गिरे। वे बेहोश हो चुके थे। गोवर्धनसिंह अपनी सफलता पर मुस्करा उठा था।

अजय... यानी ब्लैक-ब्वाय ने स्टीमर का प्रबंध करने के लिए सीक्रेट सर्विस के चीफ की हैसियत से सीधे गृह-मंत्रालय से बात की थी। सारा इन्तजाम करके वह अपनी कार से लौट रहा था। सुपर रघुनाथ की कोठी शहर की आबादी से अलग-थलग एक ऐसे इलाके में थी, जहां सड़कें अक्सर वीरान ही रहती थीं। ब्लैक-बॉय उस सुनसान इलाके में प्रविष्ट हो चुका था। रघुनाथ की कोठी पर पहुंचने के लिए वह जैसे ही सड़क के आखिरी मोड़ पर मुड़ा, विन्ड-स्कीन में से वह सामने का दृश्य देखते ही चोंक पड़ा। सामने से तीन गंवारू-से आदमी बेतहाशा इधर ही भागे चले आ रहे थे। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात ये थी कि उनके पीछे विजय दौड़ रहा था। ब्लैक-ब्यॉय देखते ही समझ गया कि कुछ घपला है। उसने एकदम पूरी शक्ति से गाड़ी के ब्रेक लगाये और उन तीनों के पास आने से पहले ही एक जम्प के साथ बाहर कूद पड़ा। न केवल कूद पड़ा, बल्कि उसने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया और गरजा-

''रुक जाओ--अगर भागे तो गोली मार दूंगा।''

वे तीनों एकदम ठिठक गये, जबकि उनके विजय दौड़ता हुआ चीखा- ''वाह प्यारे काले लड़के-क्या मौके पर मारा है पकौड़ी वाले को!''

और... इसके बाद उन तीनों में से किसी ने भी कोई खास विरोध नहीं किया। तीनों को गिरफ्त में ले लिया गया, ब्लैक-ब्बॉय ने विजय से पूछा- ''सर-ये लोग कौन हैं और आप इनके पीछे क्यों दौड़ रहे थे?  - 'ये सब साले वे ही हैं, जो हमें पकड़कर ले गये थे और हमें कांता से मिलाया था।'' विजय बोला- ''जिनके लिये माई डियर सन ने बताया था कि ये उमादत्त के ऐयार हैं। ये अपने तुलाराशि के घर में एक जगह छुपाकर ये डिबिया रख रहे थे कि हमने इनके दर्शन कर लिये... हमने इनसे चीखकर कहा कि हम इन्हें एक झकझकी सुनाना चाहते हैं और ये हैं कि झकझकी का नाम सुनते ही इस तरह भाग लिये।''

''डिबिया!'' ब्लैक-ब्वाय हल्के से चौंका- ''कैसी डिबिया?''

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