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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

संकेत पाकर बलदेवसिंह कमरे से बाहर निकलकर सुरंग में आ जाता है। गुरुवचनसिंह उसके पीछे ही बाहर निकलते हैं। सुरंग अंधकार में डूबी पड़ी है। गुरुवचनसिंह अपनी जेब से एक खाकी रंग की मोमबत्ती निकालकर चकमक से जलाते हैं, ताकि रोशनी उन्हें रास्ता दिखाती रहे। गुरुवचनसिंह ने एक चालाकी की है, जिसे बलदेवसिंह तो नहीं देख पाया - परन्तु हमने उन्हें बखूबी देख लिया है। हम खूब जानते हैं कि मोमबत्ती जलाने के बाद - चकमक बटुए में डालने के बहाने बटुए से कोई जड़ी-बूटी निकालकर अपने मुंह में रख ली है।

बलदेवसिंह और गुरुवचनसिंह चुपचाप साथ-साथ सुरंग में चल रहे हैं। एकाएक पन्द्रह बीस कदम चलने के बाद बलदेवसिंह को चक्कर- आया और एक सायत के लिए वह अपना माथा पकड़कर चकराया तथा फिर सुरंग की धरती पर बेहोश होकर गिर पड़ा। गुरुवचनसिंह उसके बेहोश जिस्म के पास खड़े दो सायत तक उसे देखले रहे। दाढ़ी और मूंछों के बालों के पीछे छुपे उनके होंठ मुस्करा उठे और बोले- ''माफ करना बेटे, अगर तुम हमारे साथ चालाकी न करते तो हम कदापि ऐसा नहीं करते। लेकिन इस वक्त मजबूरन हमें ऐसा करना पड़ा। हम जानते थे कि तुम हमारे साथ नेकदिली से नहीं चल रहे थे और कोई ऐसा मौका ढूंढ़ रहे थे, जब तुम्हारा मतलब भी हमसे निकल जाए और तुम हमें धोखा भी दे सको। उससे पहले हमने यही मुनासिब समझा कि तुम्हें थोड़ा-सा सबक दें। हम तुम्हारी मदद के बिना भी अलफांसे तक पहुंच सकते हैं - जब तक तुम होश में आओगे, अलफांसे हमारे पास होगा।'' इतना कहकर गुरुवचनसिंह ने वो करामाती खाकी रंग की मोमबत्ती बुझाकर दूसरी जला ली...!

बलदेवसिंह को यूं ही पड़ा छोड़कर गुरुवचनसिंह सुरंग में आगे बढ़ गए। उसके बाद वे उसी रास्ते से बाहर निकल गए, जिससे कि यहां आए थे। (इस रास्ते का मुख्तसर हाल पहले भाग के आठवें बयान में लिखा जा चुका है। यहां उसे दोहराना बेसबब है।) जब वह जंगल में खड़े पीपल की जड़ में से बाहर निकले तो रात का आखिरी पहर शुरू हो चुका था।

हम इस बयान को बेसबब ही ज्यादा लम्बा न करके, यहां पाठकों को समझाए देते हैं कि इस घटना के बाद ही गुरुवचनसिंह उस बाग में पहुंचे, जिसका हाल दूसरे भाग के दसवें बयान में आप पढ़ आए हैं। अगर हम यहां अलफांसे के साथ घटी घटनाएं लिख दें तो संतति की कहानी का एक अंश काफी हद तक साफ हो सकता है। सबसे पहले अलफांसे को उस वक्त देखा गया, जब जेम्स बांड वगैरह उसके पीछे थे। इसके बाद अलफांसे को अपने कब्जे में करने के चक्कर में नाहरसिंह, भीमसिंह, बेनीसिंह और गुलशन की लड़ाई में बेनीसिंह मारा गया। वहां बलदेवसिंह बागीसिंह के भेस में प्रकट हुआ और बाकी तीनों को एक मिट्टी के बंदर से डराकर बेहोश कर दिया...। अलफांसे को अपनी कहानी के जाल में उलझाकर वह अपने साथ ले आया।

इसी वक्त से - गुरुवचनसिंह उसके पीछे थे। अलफांसे को लेकर बलदेवसिंह मंदिर के अन्दर बनी शंकर की प्रतिमा के उस रास्ते से, जो शंकर के तीसरे नेत्र में से जाता था, गिरधारीसिंह के पास पहुंचा, जबकि वह वास्तव में उसका पिता शामासिंह था। इस तरह हमने अलफांसे को उस बाग में झरने के पास बैठा देखा था। यहीं गुरुवचनसिंह से उसकी मुलाकात हुई थी - और पाठकों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि गुरुवचनसिंह उपरोक्त घटना के मुताबिक बलदेवसिंह को उस सुरंग में बेहोश करने के बाद ही यहां अलफांसे के पास बाग में पहुंचे थे। इन दोनों की बातों का आगे का हाल भी आप दूसरे और चौथे भाग में पढ़ आए हैं। किंतु हम पाठकों को यह भी याद दिला दें तो मुनासिब होगा। गुरुवचनसिंह ने अलफांसे से मिलकर उसे यह यकीन दिलाया कि वह पूर्व जन्म का शेरसिंह है। अंत में अपने उद्योग से गुरुवचनसिंह अलफांसे को पूर्व जन्म की सारी बात याद दिलाने में सफल हो जाते हैं।

सहूलियत के लिए लिखे देते हैं कि अलफांसे का यह सारा कथानक संतति में निम्न जगहों पर है --

(पहला भाग- चौथा बयान...। इसके पश्चात--दूसरे भाग का दसवाँ बयान, और चौथे भाग का दसवाँ और ग्यारहवाँ बयान।)

 

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