ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
पिशाचनाथ कह रहा था- 'इस तरह से वे चारों ऐयार यह सोच रहे थे कि उन्होंने मुझे धोखा दे दिया है-- किन्तु हकीकत ये थी कि मैंने उन्हें बहुत बुरी तरह फांसा था। मैंने उन पर ऐसा जाहिर किया मानो उन पर मैं बेहद यकीन करने लगा हूं - तथा अपने शागिर्दों में मुझे वे ही सबसे ज्यादा प्यारे हैं ओर इसी धोखे में डालकर मैंने उन्हें रक्तकथा का पता दिया। मैंने उन्हें बता दिया कि रक्तकथा तक पहुंचने के लिए रास्ता मेरे घर में बनी हनुमान की मूर्ति में से जाता है। अंत में रक्तकथा एक करामाती बंदर के हाथ में है। अगरर मैं उन्हें उस करामाती बंदर से वह रक्तकथा वापिस लेने की तरकीब न बताता, तब वे नहीं ले पाते, मगर मैंने उन्हें वह तरकीब भी बताई कि उस करामाती बंदर के हाथ में से रक्तकथा किस ढंग से ली जा सकती है। उन्हें मैंने यह भी बताया कि यह रास्ता किस तरह से सोनिया के खण्डहर में खुलेगा। मतलब ये कि मैंने उन्हें सारी बातें बता दीं। वे समझते रहे कि पिशाचनाथ हमारे धोखे में आकर हमें सबकुछ बता रहा है, जबकि हकीकत ये थी कि वे उस रक्तकथा को निकालकर गौरवसिंह के पास चले जाएं, यही मैं चाहता था और यही मेरी साजिश थी।'
'क्यों...? तुम ऐसा क्यों चाहते थे...?' धन्नो ने पूछा!
'इसलिए कि उस बंदर के हाथ में जो रक्तकथा थी, वह नकली थी।' पिशाचनाथ ने जवाब दिया।
'क्या?' धन्नो उछली।
'हां...!' पिशाचनाथ बोला- 'उन्हें धोखा देने के लिए मैंने उस करामाती बंदर के हाथ में नकली रक्तकथा ही दी थी - ऊपर से देखकर कोई भी आदमी यह न ताड़ सके कि रक्तकथा नकली है, इसलिए मैंने असली रक्तकथा की जिल्द जितने कागजों को सिलकर रक्तकथा जितनी मोटी किताब बनाकर उस पर चढ़ा दी थी। ऊपर से देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि वह नकली है। असली रक्तकथा तो मैंने कहीं दूसरी ही जगह रख दी जो - जहां अभी भी रखी है।'
'लेकिन तुम्हारा इस तरह नकली रक्तकथा बनाकर बंदर के हाथ में देने का सबब?'
ताकि उस रक्तकथा की चोरी के बाद - मैं ये कहकर छूट सकूं कि दलीपसिंह ने मुझे जो रक्तकथा दी भी - वह वही थी...।'
'तुमने उस संगमरमर के बंदर की सारी करामातें मुझे बता दी हैं।' धन्नो ने कहा- 'मगर मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि आखिर वह कौन-सी तरकीब हो सकती है- जिसके जरिए बंदर से रक्तकथा ली जा सके।'
पिशाचनाथ बड़े गहरे ढंग से मुस्कराया और बोला- 'खुद ही सोचकर देखो।'
हो सकता है कि उस हाल में कोई ऐसी गुप्त कील अथवा खूंटी हो, जिसको किसी खास ढंग से दबाने से बंदर का घूमना और उसमें दौड़ता करेंट खत्म हो जाता हो। उसके बाद रक्तकथा आराम से ली जा सकती हो।'
'नहीं...!' उसी गहरी मुस्कान के साथ पिशाचनाथ बोला- 'अगर इस तरह का कोई साधन होता तो फिर उसमें तरकीब वाली बात ही क्या हुई? फिर तो उन्हें यह भेद बताना था कि इस तरह से बंदर का घूमना बंद हो सकता है। मैंने कहा था ना कि बंदर की सारी हरकतें भी यूं ही रहेंगी - और फिर तब कोई ऐसी तरकीब है कि रक्तकथा उसके हाथ में से ली जा सके।'
'ऐसी भला क्या तरकीब हो सकती है?'
'तरकीब है - और बहुत साधारण-सी है - मगर केवल दिमाग में आने की बात है!' पिशाचनाथ ने कहा- 'बंदर के हाथ से रक्तकथा हासिल करना केवल उसी वक्त तक कठिन है - जब तक कि वह तरकीब दिमाग में न आ जाए? दिमाग में यह छोटी-सी बात आने के बाद तो उसे हासिल करना बहुत आसान है...!'
'कुछ बताओगे भी कि वह क्या तरकीब है?' उतावली होकर बोली धन्नो।
'सुनो...!' बड़ी प्यारी मुस्कान के साथ बोला पिशाच- 'उस हॉल की चारों दीवारों पर जगह-जगह अनेक किस्म के हथियार टंगे हुए हैं। तलवार, भाले, त्रिशूल, हर्वे इत्यादि सभी तरह के हथियार वहां हैं। उस हॉल में कुल मिलाकर छत्तीस खूंटियां हैं और हर खूंटी पर एक हथियार है। उन्हीं छत्तीस में से एक खूंटी पर धनुष और तीरों का भरा तरकस टंगा हुआ है।'
'ओह!' एकदम चौंककर धन्नो बोली- 'अच्छा, हां.. मैं समझ गई।'
'यही तो वह छोटी-सी बात है, जिसके दिमाग में आते ही हर कोई समझ जाता है कि रक्तकथा वहां से किस तरह निकाली जाएगी।'' पिशाचनाथ पहले की तरह ही मुस्कराता हुआ बोला- 'धनुष और तीर का नाम आते ही सब समझ जाते हैं कि खूंटी से धनुष उतारकर उसकी डोरी पर एक तीर चढ़ाना है और बंदर के हाथ में दबी रक्तकथा का निशाना लेकर चलाना है। जिसका निशाना सही होगा, वह एक तीर में रक्तकथा बंदर के हाथ से निकालकर संगमरमर के चबूतरे से नीचे गिरा देगा। अगर किसी का निशाना इतना सटीक नहीं है तो उसे कई औरों की जरूरत होगी...अत: वह तरकस में से और तीर ले सकता है। अगर रक्तकथा बंदर के हाथ से निकलकर संगमरमर के चबूतरे पर गिर जाए, तब भी चबूतरे पर बढ़ने की जरूरत नहीं है। तीरों के जरिए ही उसे चबूतरे से नीचे डालकर उठा लो।'
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