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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

चौथा बयान

 

कदाचित अब आप महसूस कर रहे होंगे संतति का ये उलझनपूर्ण कथानक ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रहा है.. स्पष्ट होता जा रहा है। ऊपर के तीन बयानों में हम आपको अलफांसे से संबंधित कथानक और गिरधारी, पिशाच और शामासिंह से संबंधित कथानक को स्पष्ट कर आए है। अब हम इस नए बयान में अपने खास पात्र टुम्बकटू को दिखाना चाहते हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि अंत तक पहुंचते-पहुंचते आप सबकुछ स्वयं समझ जाएंगे और तब आपको इस कथानक का असली मजा आएगा।

इस वक्त हमारा ये अजीबो-गरीब पात्र टुम्बकटू एक शिला के पास खड़ा है। न केवल खड़ा है, बल्कि एक प्रकार से नाच रहा है। कभी हाथ लचकाता है, कभी पैर, कभी गर्दन और कभी-कभी तो वह अपने सारे ही शरीर को तोड़-मरोड़ डालता है। इस तरह की अजीब हरकतें करता हुआ हमारा ये कार्टून बड़ा ही विचित्र लग रहा है। अचानक उसकी सारी हरकतें एकदम इस तरह रुक जाती हैं, मानो किसी चाबी भरे हुए खिलौने में एकदम से चाबी खत्म हो गई हो और वह रुक गया हो। अब उसके जिस्म का कोई भी अंग लेशमात्र भी नहीं हिल रहा है। उसकी आंखें उस शिला पर जमी हुई हैं, जिसके सामने वह खड़ा है। उस शिला पर कुछ लिखा है। यह शिला कुछ इस ढंग की है - जैसी सम्राट अशोक ने अपने जमाने में अहिंसा का प्रचार करने के लिए प्रयुक्त की थीं। टुम्बकटू के सामने वाली शिला पर कुछ लिखा था और टुम्बकटू उसे जोर-जोर से इस तरह पढ़ रहा था, मानो रामायण की चौपाइयां पढ़ रहा हो।

हालांकि इस वक्त उसके आस-पास कोई नहीं था...मगर वह कंठ फाड़-फाड़कर चीख रहा था-

रोये कहां रखकर पार्वती गम रंगाई।
सुराही स्मिथि लिया तिल रसकर कई।
खबर रम, रस पैगाम रख पग रली।
कोइ, चौक ले लो, काला है राम तस्वीरी।।
खई खोज रक्त तन-मन, रख पैरकर रबी।
पई रक्त कोऊ चौराहे, दल फेदकर सफाई।।

और.. ये पूरी छ: लाइनें पढ़ने के बाद टुम्बकटू एकदम चुप हो गया। मानो उसकी जुबान किसी ने जबरदस्ती पकड़ ली हो। वह एकदम शिला पर लगी इन पंक्तियों को बड़े ध्यान से घूरता रहा। ये पक्तियां पिछले पन्द्रह मिनट में कम-से-कम पांच बार पढ़ी थीं।। न जाने उसके दिमाग में क्या-क्या विचार घूमते रहे? अचानक अपने दाएं हाथ का चपत बहुत जोर से अपनी गुद्दी पर मारा ओर खुद से ही बोला- ''साला समझ में नहीं आता.. सजनवा की खोपड़ी में भुस भर गया है। खैर...कोई बात नहीं अबकी बार पूरी तरह खोपड़ी का भुस निकालकर इसे पढ़ेंगे.. फिर देखते हैं, साला समझ में क्यों नहीं आएगा।''

और.. इन शब्दों के साथ ही उसने एक जोरदार ठुमका लगाया।

अपनी दृष्टि में अब वह अपनी खोपड़ी का भुस निकालने में व्यस्त था।

भुस निकालने का ढंग!

वाह... कमाल था।

ऊटपटांग ढंग से नाचता हुआ वह अपनी खोपड़ी में भरा भुस निकालने की चेष्टा कर रहा था। उसका यह बेढंगा नाच ऐसा था कि अगर वह कब्रिस्तान में नाचने लगे, तो मुर्दे भी कब्र फाड़कर खिलखिलाने लगे।

उसी तरह की अजीबो-गरीब उछल-कूद करता हुआ टुम्बकटू अचानक अपनी फटे बांस जैसी आवाज में गाने लगा-- ''सजनवा बैरी हो गए हमार...!''

खैर... कुछ देर के लिए हम पाठकों का ध्यान उसकी तरफ से हटाकर उन्हें ये बताते हैं कि टुम्बकटू इस वक्त कहां है - और यहां तक वह किस तरह पहुंच गया? आपको अच्छी तरह याद होगा कि जेम्स बांड, माइक, हुचांग और बागारोफ को टुम्बकटू इसी टापू पर मिला था। सबसे पहले इन चार महान जासूसों को अलफांसे के पीछे लगे हुए दिखाया गया था। इनका प्रयास था कि वे अलफांसे को अपने कब्जे में कर लें, कितु विफल रहे। इन्हें टुम्बकटू मिला -- फिर ये सब एक ऐसे विशाल खंडहर के पास पहुंचे, जो एक बहुत बड़े तालाब के ठीक बीच में था। उस तालाब की सीढ़ियों के किनारे खड़े एक संगमरमर के हंस के चक्कर में उलझकर जेम्स बांड उस जन्मपत्री तक पहुंचा था, जो दूसरे भाग के पहले ही पेज पर बनी हुई है। हुचांग एक अजीबो-गरीब कोठरी में फंसा था। टुम्बकटू को एक ऐसे हॉल में हमने छोड़ा था, जिसमें खड़े आदमी को हॉल से बाहर खड़ा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं देख सकता।

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