ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
'तो इसका सिर काटकर तुझे क्या मिलेगा?''
'सांप को मारने से पहले उसके बच्चे को मारना भी बहुत जरूरी होता है।'' बलदेवसिंह बोला-- ''बाप के गुनाहों की सजा बेटे को भी भुगतनी ही पड़ती है। इसका बाप भी मेरे कब्जे में है। इसको मारकर आज की रात मैं उसे भी खत्म कर दूंगा।''
'बस - यही तू ऐसा पाप करेगा कि दुनिया तुझ पर थू-थू करेगी।'' गुरुवचनसिंह उसके और करीब आ गए- ''पहली बात तो तेरा बागीसिंह को ही मारना पाप होगा। इसके बाद अगर तूने गिरधारीसिंह को मारा तो सारी जिन्दगी तू तड़पेगा।''
'आप कहना क्या चाहते हैं?'' बलदेवसिंह ने पूछा- ''जरा समझाकर कहिए।''
''अगर तुम जोश को भूलकर, आराम से सुनो तो तुम मेरी बात समझ सकोगे।'' गुरुवचनसिंह बोले- ''मैं तुमसे ये नहीं कहूंगा कि तुम बागीसिंह से अपना वैर मत लो। मैं तुमसे यह भी नहीं कहूंगा कि तुम गिरधारीसिंह की जान मत लो। तुम हमारे दुश्मन राजा दलीपसिंह के ऐयार हो, इसलिए मुझे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि तुम यह पाप करो या न करो, लेकिन केवल इंसानियत के नाते मैं ये चाहता हूं कि तुम ऐसी दुष्टता ना करो कि फिर दुनिया में जी ही न सको। तुम्हें बचाने के लिए ही मैं चाहता हूं कि तलवार आराम से म्यान में रखकर मेरी कुछ बातें गौर से सुन लो - फिर अगर तुम चाहो तो मेरे ही सामने बागीसिंह का सिर कलम कर देना।''
''कहिए। आप क्या कहना चाहते हैं?'' बलदेवसिंह ने तलवार म्यान में डाल ली।
''तुम विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो कि तारा के साथ व्यभिचार इसके पिता गिरधारीसिंह ने किया था?''
''मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है।'' कहते-कहते बलदेवसिंह एक बार पुन: जोश में आ गया।
(प्रिय पाठको, हम यहां पर कुछ सायतों के लिए कथानक का सिलसिला रोककर कुछ जरूरी बातें बताना चाहते हैं। कदाचित आप अभी तक भी न समझ पाए होंगे कि उपरोक्त संवाद कहां हो रहे हैं और उनका सबब क्या है? जब तक आप यह नहीं समझेंगे तब तक आपकी दिलचस्पी अधूरी-सी ही रहेगी अगर आपने इस बयान को शुरू से ध्यानपूर्वक पढ़ा है तो कदाचित आप यह भी समझ गए होंगे कि यह बयान पहले भाग के आठवें बयान से आगे का है, उसमें हमने लिखा था कि शामासिंह के लड़के बलदेवसिंह ने बागीसिंह को कैद कर रखा है और खुद बागीसिंह बना हुआ है। उधर उसी बलदेवसिंह के पिता ने गिरधारी को अपनी कैद में डाल रखा है और खुद दुनिया के सामने गिरधारीसिंह बने बैठे हैं। उस बयान में हमने ये भी लिखा था कि गुरुवचनसिंह बलदेवसिंह का पीछा कर रहे थे। अत: उक्त बयान से पूर्व कथानक के लिए पहले भाग के आठवें बयान को पढ़ जाएं।)
'अपनी आंखों, से तूने क्या देखा?'' गुरुवचनसिंह ने पूछा।
''मैंने और मेरे पिता ने उस रात खुद इसके बाप को अपने घर की बैठक में अपनी मां से...।''
''वह सब धोखा था.. फरेब था..., एक बदचलन ऐयार की नापाक ऐयारी थी!'' गुरुवचनसिंह क्रोध में चीख पड़े।
''क्या?'' एकदम चौंका बलदेवसिह- ''मैं समझा नहीं... आप क्या कहना चाहते हैं?''
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